जोधपुर/जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी केस में राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) को फटकार लगाते हुए चार्जशीट फाइल करने से रोक दिया है। इस केस में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बड़ी राहत मिली है। हाई लोरत के निर्णय को राजस्थान सरकार के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। बता दें कि इस केस में 13 अप्रैल 2023 को हाईकोर्ट ने शेखावत की गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। 

शुक्रवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान गजेंद्र शेखावत की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता वीआर बाजवा ने पैरवी की।  मामले में बहस करते हुए बाजवा ने  कहा कि एसओजी ने अगस्त 2019 में यह केस दर्ज किया था लेकिन वो साढ़े चार साल बाद भी जांच को पूरा नहीं कर पाई है। बाजवा ने इस देर का कारण राजनीतिक द्वेष को बताया और कहा कि राज्य सरकार शेखावत को गलत तरीके से फंसाना चाहती है। एक तथ्य यह सामने आया कि एसओजी ने कभी गजेंद्र सिंह शेखावत को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया और ना ही पूर्व में दायर चार्जशीटों में कहीं शेखावत का नाम अभियुक्तों में शामिल किया गया। बाजवा ने बताया कि हाईकोर्ट ने पूछा कि अगर शेखावत की संजीवनी केस में संलिप्तता थी तो एसओजी ने चार साल में कोई नोटिस क्यों नहीं दिया? कोर्ट ने यह भी पूछा कि फरवरी 2020 में चार्जशीट फाइल करने के तीन साल बाद फरवरी 2023 में दूसरे लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की, जबकि उसमें शेखावत या उनके परिवार के किसी सदस्य का नाम नहीं था। 

गौरतलब है कि करीब 900 करोड़ रुपए के संजीवनी घोटाले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्रीय मंत्री शेखावत पर आरोप लगाकर पूरे मामले को राजनीतिक रंग दे दिया था  जबकि शेखावत शुरू से कह रहे हैं कि साढ़े चार साल में इस प्रकरण की जांच न तो राज्य की एसओजी ने पूरी की और न ही इसे सीबीआई को सौंपा जा रहा है। उनका आरोप रहा कि सीएम गहलोत राजनीति करते हुए केवल जांच को भटकाने का काम कर रहे हैं। जब अशोक गहलोत ने शेखावत की मां समेत पूरे परिवार पर संजीवनी घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाए तो शेखावत ने गहलोत के खिलाफ दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में मानहानि का केस किया है, ये मामला अभी विचाराधीन है। 


इस केस में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि संजीवनी के मल्टीस्टेट सोसायटी होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से राजस्थान सरकार ने इस केस को सीबीआई को नहीं सौंपा, जबकि मल्टी स्टेट सोसाइटी होने के कारण इसकी जांच सीबीआई द्वारा नियमित जमा पर प्रतिबंध योजना अधिनियम 2019 के तहत की जानी चाहिए।