अजमेर! ब्यावर! केकड़ी!मसूदा! पुष्कर! किशनगढ में कौन बैठेगा ?कौन खड़ा रहेगा!
जानदार आंकलन! मज़े नहीं आएं तो पैसे वापस!!
✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अजमेर में नामाँकन भरने वालों ने कमाल कर दिया है। नेतागिरी के भूत और भूतनियों का मेला लगा हुआ है। पार्टी के विरोध में बग़ावतियों की महिमा तो अपार समझी जा सकती है मगर यहाँ तो निर्दलियों की लंबी फ़ौज़ मैदान में उतरने का दावा कर रही है। कुछ विधानसभाओं में तो ऐसे भी तीरंदाज़ पर्चा दाख़िल कर आए हैं जिनके बीबी बच्चे ही उनको वोट नहीं दें।
अंदाज़न 300 से अधिक नेता नामांकन भर कर अपनी दमित इच्छा पूरी कर चुके हैं। आठों विधानसभाओं में एक जैसा हाल है। सब जानते हैं कि नामांकन दाख़िल करने से उनका नाम चर्चा में आएगा। अख़बारों में भी। सो एक पर्चा भरने से क्यों चूका जाए। सुनहरा मौक़ा क्यों गंवाया जाए।
ऐसे लोग जिनको टिकिट मिलनी थी और नहीं मिली वह त्वरित नाराज़गी के तहत नामाँकन पत्र भर आए हैं। कुछ सीरियसली चुनाव लड़ने के हक़दार थे मगर पार्टी ने उनकी दावेदारी को ख़ारिज़ कर दिया और वह अधिकृत उम्मीदवार के कफ़न में कील ठोकने को खड़े हो गए हैं। कुछ ऐसे हैं जो जीतने के लिए पार्टी बाज़ों के ख़िलाफ़ मज़बूती से ताल ठोके हुए हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जिनको पता है कि उनकी ज़मानत ज़ब्त होना तय है मगर जिनको उनके दुमछलों ने भर्रे पर चढ़ा कर खड़ा करवा दिया है।
मित्रों! राजनीति एक ऐसा मच्छर है जो अगर किसी के काट जाए तो उसकी खुजली ताउम्र चलती रहती है।यह मच्छर आदमी के शरीर के एक ख़ास और कमज़ोर हिस्से में काटता है।
अजमेर में कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जिनके यह मच्छर जवानी में काटा था। बुढापा आने तक खुजली नहीं मिट रही। कोई सा भी चुनाव हो उनकी खुजली अकस्मात चलने लगती है।विधानसभा, सांसद, ज़िला प्रमुख,नगर निगम, पंचायत हर चुनाव में वह गंभीर होकर टिकिट मांगने लगता है। मच्छर पहली बार कब काटा था मालूम करो तो पता चलेगा कि पहली कक्षा में बंदे ने मॉनिटर का चुनाव लड़ लिया था।
इस बार अजमेर की आठों विधानसभा में सैंकड़ों लोगों ने नामांकन भरे हैं। इनमें सभी मच्छरों के काटने से बीमार नहीं। कुछ सीरियस उम्मीदवार भी हैं। कुछ ने मुख्य पार्टी कांग्रेस और भाजपा से टिकिट नहीं मिलने पर दूसरी पार्टियों से टिकिट ले लिया है।
मुझे इस बार लग रहा है कि आगामी 9 तारिख़ के बाद मैदान में बड़ी संख्या में पार्टी से विमुख हुए नेताओं को वापस बैठने को मज़बूर कर दिया जाएगा। इसके लिए कांग्रेस और भाजपा ने एक फुल प्रूफ़ प्लान बना लिया है।समझाईश की जाएगी। दबाव डाला जाएगा। भविष्यफल भी बताया जाएगा। साम दाम दंड भेद सारे हथकण्डे अपनाए जाएंगे। आप देख लेना कई नामधारी सिंह नामांकन वापस ले लेंगे ब्यावर, मसूदा, केकड़ी, किशनगढ़, पुष्कर, नसीराबाद अजमेर उत्तर,दक्षिण सब क्षेत्रों में भीड़ कम की जाएगी।
कौन टिकाऊ है❓️कौन जिताऊ है❓️कौन बिकाऊ है❓️कौन दबाऊ है❓️कौन हड़काऊ है❓️सब सामने आ जायेगा।
यहाँ बता दूं कि सम्मोहन मंत्र सबके लिए तैयार है। अजमेर उत्तर से सुरेन्द्र सिंह शेखावत के लिए ताबीज़ बन चुका है। उनके बारे में सबको पता है कि उनको समाज बैठा सकता है। पार्टी भी। अब यह उन पर निर्भर करता है कि उनकी बाज़ुओं में कितना ज़ोर है❓️ज्ञान सारस्वत को बैठाए जाने की उच्च स्तरीय तजवीज़ भी बैठाई जा रही है मगर लगता नहीं कि उनको बैठाया जा सकेगा। उनका भविष्य दांव पर लगा हुआ है। बैठ गए तो माना जाएगा कि उनकी ईमानदारी दांव पर लग गई है।सरपंच लाल सिंह रावत पर भी तरह तरह के सियासती दवाब बनाए जा रहे हैं। उनका बैठना सीधे तौर पर देवनानी को लाभ पहुंचाने वाला होगा। रावत मतों के मद्देनजर। उन्होंने पलाड़ा जी की जन शौर्य पार्टी से नामांकन भरा है। उनके बारे में कम से कम मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा। यदि वह नामांकन वापस लेते हैं तो लोग यह धारणा बना लेंगे कि उनको खड़ा ही बैठने के लिए होना था।
अजमेर के अन्य लोग इतने महत्वपूर्ण नहीं जो चुनाव परिणामों पर असर डालें।
पुष्कर में भाजपा के अशोक रावत और कांग्रेस के डॉ श्रीगोपाल बाहेती ऐसे बाग़ी हैं जिनको बैठाए जाने की क़वायद की जा रही होगी या की जा सकती है। इनमें अशोक रावत ने क्यों कि भाजपा छोड़ कर आर एल पी का दामन थामा है इसलिए उनके बैठने के चांसेज बहुत कम हैं। बाहेती ने अभी भी कांग्रेस नहीं छोड़ी है न उनको निकाला ही गया है।संभावना है कि पार्टी हाईकमान दिल्ली से आदेश देगा और 9 को वह नाम वापस ले लेंगे। यदि वह नहीं बैठते तो पार्टी उनको चुनाव के दौरान ही निकाल देगी। ऐसे में बाहेती चुनाव के बाद कहीं के नहीं रहेंगे। जहां तक चुनाव जीतने का सवाल है नसीम अख़्तर के रहते उनका यह सपना शायद ही पूरा हो पाए। वैश्य और ब्राह्मण समाज के बलबूते पर क्या वह चुनाव जीत जाएंगे ? यह आत्म मंथन उनको कर लेना चाहिए।
ब्यावर में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को बाग़ियों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस में पारस पंच के विरुद्ध खड़े युवा नेता मनोज चौहान ने मज़बूती से ताल ठोकी हुई हैं और उनको मैं बेहद मजबूत नेता मानता हूँ पर सवाल फिर वही कि 9 तारीख के बाद क्या वह मैदान में नज़र आएंगे❓️क्या हाईकमान उनको बिठाने में कामयाब तो नहीं हो जाएगा❓️❓️ ब्यावर में भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार शंकर सिंह रावत के सामने दो जनता के शेर दहाड़ मार रहे हैं। इंदर सिंह बागावास और महेन्द्र सिंह रावत दोनों ने ही पार्टी के प्रति अभी तक निष्ठा नहीं बदली है।ऐसे में या तो दोनों को पार्टी कोई न कोई जलवा दिखा कर बैठा देगी या फिर दोनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। देखना होगा कि ये दोनों शेर कौनसा मार्ग अपनाते है । यहाँ बता दूँ कि जनता का जितना प्यार इनको मिल रहा है उससे तो लग रहा है कि दोनों की ताक़त जीतने के मुहाने तक पहुंच सकती है।बस थोड़ा सा ज़ोर और लगाने की ज़रूरत है।
अजमेर दक्षिण में कांग्रेस को एक मज़बूत बाग़ी से मुक़ाबला करना पड़ रहा है।हेमंत भाटी अधिकृत द्रोपदी कोली के सामने फ़िलहाल खड़े हुए हैं। आगामी 9 को उनका फ़ैसला बताएगा कि उनकी नेतागिरी क्या स्वरूप लेती है❓️हाईकमान उनको बैठा देता है या उनकी ज़िद क़ायम रह पाती है❓️❓️
केकड़ी में कोई दमदार बाग़ी खड़ा नहीं। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही भीतरघात का अघोषित युध्द चल रहा है। रघु शर्मा और शत्रुघ्न गौतम दोनों ही अंदर से खोखले किए जा रहे हैं। हाल ही में चुनावों को रोचक बनाने वाले दलित नेता बाबूलाल सिंगारिया ने डॉ रघु शर्मा को सांसत में डाल दिया था। पंद्रह से सत्रह हज़ार तक वोट ले जाने वाले सिंगारिया का अब नामांकन ही रद्द हो गया है। ऐसे में रघु शर्मा का कांटा 9 से पहले ही निकल ग़या है।
नसीराबाद में कांग्रेस और भाजपा का युध्द इस बार दो अलग अलग जातीय फाड़ों में बंट गया है।कांग्रेस एक मुश्त गुर्जर तो भाजपा एक मुश्त जाट। बाक़ी मतों के लिए निर्दलीय क़द्दावर नेता भंवर सिंह पलाड़ा के पुत्र शिवराज सिंह पलाड़ा को हक़दार माना जा रहा है। राम स्वरूप लाम्बा और शिव प्रकाश गुर्जर की जीत या हार लगता है पलाड़ा के हाथ मे रहेगी। देखना यह होगा कि 9 के बाद क्या रहेगा❓️
अब रही बात किशनगढ की। यहाँ बाग़ियों या निर्दलियों के हाथ में कुछ नहीं। यहाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जाट नेताओं के क़ब्ज़े में है।विकास चौधरी अभी भाजपा के भागीरथ चौधरी के लिए गहरी खाई खोदने में क़ामयाब हो रहे हैं । दोनोँ एक दूसरे को निबटाने में व्यस्त हैं उधर निर्दलीय सुरेश टांक अन्य समाज के मतदाताओं की फसल काटने में लगे हुए हैं। यहाँ 9 तारिख़ का कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला।
तो मित्रों ! यह था 9 का आंकड़ा। आज इतना ही।कल फिर हाज़िर होऊँगा।
0 टिप्पणियाँ