ब्यावर में ऊँट किस करवट बैठेगा? शंकर सिंह रावत का चैप्टर क्लोज़ होगा या ओपन रहेगा?
पारस जैन की फूटी क़िस्मत क्या इस बार चमक पाएगी?मनोज चौहान उनको क्या ढंग से भचीड पाएंगे?
इंदर सिंह बागावास और महेंद्र सिंह रावत में से कौन ठोकेगा कफ़न में आख़री कील?
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
ब्यावर में इस बार मतदाता पूरी तरह आर पार के मूड में हैं। भाजपा के शंकर सिंह चारों तरफ से घेर लिए गए हैं मगर सच कहूँ तो आज भी वह सबसे लोहा लेकर बढ़त बनाए हुए हैं। वे जीत जाएंगे फ़िलहाल ऐसा नहीं कहा जा सकता मगर निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए कह रहा हूँ कि शंकर सिंह रावत आज दिन भी अपना दबदबा क़ायम रखे हुए हैं। यहाँ आपको बता दूँ की शंकर सिंह रावत की नज़र में सुरेन्द्र चतुर्वेदी कोबरा सांप है। उनके समर्थक मुझे फूटी आँख पसंद नहीं करते फिर भी सच कहने का साहस ही मुझे बेबाक़ और सच्चा पत्रकार बनाए हुए है।आज की तारिख़ में शंकर सिंह रावत बढ़त लिए हुए हैं मगर आने वाले समय में उनकी बढ़त किस मोड़ पर जाकर ठहरती है यह कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस से उनको ख़तरा नहीं । उनको ख़तरा है उन बागियों से जिन्होंने इस बार चील के घौंसले से मांस निकालने की शपथ ले ली है।शकंर सिंह रावत को निबटाने के लिए उनके ही कभी सिपहसालार रहे महेंद्र सिंह रावत ने कमाल की रफ़्तार पकड़ रखी है। उनकी राजनीतिक पकड़ और रण कौशल इतना मज़बूत है कि उसे रोकना शंकर सिंह रावत के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है।लगभग सभी पंचायतों में जहां शंकर सिंह रावत की मज़बूत पकड़ है वहां महेन्द्र सिंह तेज़ी से चक्रव्यूह तोड़ रहे हैं। यदि उनकी रफ़्तार यही रही तो इस बार वे जीत के बेहद क़रीब आ जाएंगे
शंकर सिंह रावत भाजपा की जिस नाव में सवार हैं उसमें एक और छेद कर दिया है इंदर सिंह बागावास ने।ब्यावर और आसपास के क्षेत्र में उनका जादू देखते ही बन रहा है। यह तय है कि इस बार यदि उनको पार्टी टिकिट दे देती तो वह कांग्रेस से लगभग 50 हज़ार मतों से जीतते । अच्छी बात यह है कि टिकिट नहीं दिए जाने से निराश होने के बावज़ूद उन्होंने पार्टी की प्रति अपनी निष्ठा नहीं बदली है। कमाल कि बात है भाजपाई मतदाताओं में उनके प्रति अटूट विश्वास देखने को मिल रहा है। हिन्दू और मुसलमानों में भी उनके उदारवादी व्यक्तित्व की चर्चा है।सभी वर्ग और समुदाय में उनका स्वागत किया जा रहा है। उनकी पकड़ जिस रफ़्तार से मज़बूत हो रही है उसे देखते हुए लग रहा है कि मतदान दिवस तक वह निर्णायक भूमिका में आ जाएंगे।
यहाँ आपको बता दूँ कि मैं बराबर ब्यावर के मतदाताओं की नब्ज़ पर हाथ रखे हुए हूँ। पल पल की सूचनाएं मुझे मिल रही हैं। इस बार मुक़ाबला भले ही कांग्रेस के पारस पंच और भाजपा के शंकर सिंह रावत के बीच माना जा रहा हो मगर सच यही है कि भाजपा के लिए चुनाव जीतना नामुमकिन तो नहीं मगर बेहद मुश्किल ज़रूर हो जाएगा।
कांग्रेस के बाग़ी मनोज चौहान को यदि गंभीरता से लिया जाए तो वह भी रावत समाज का होने से शंकर सिंह का ही ज़ियादा नुक़सान करेंगे।भले ही वह बहुत ज़ियादा न भी हो।
मगरा क्षेत्र में कभी शंकर सिंह रावत का एक छत्र राज हुआ करता था मगर इस बार इंदर सिंह बागावास और महेन्द्र सिंह रावत ने क्षेत्रीय मतदाताओं के दिल पर राज करना शुरू कर दिया है। ख़ास तौर से बागावास को अद्भुत स्नेह मिल रहा है।
यहाँ मैं अपने प्रिय पत्रकार मित्र विजेंद्र प्रजापति द्वारा भेजी रिपोर्ट पर भी चर्चा करना चाहूंगा।
ब्यावर विधानसभा से नामांकन के लिए एक और नया चेहरा मैदान में उतर रहा है। टाटगढ बडा खेडा के इस नये उम्मीदवार का नाम है देवराज जैन। यह नाम बरसों से भालिया क्षैत्र मे काफी सक्रिय रहा है ओर इस क्षैत्र में उसका खासा प्रभाव भी है। दानदाता माने जाने वाले जैन मांगट जी महाराज मंदिर से जुड़े हुए है।
यदि देवराज जैन भी खडे हो जाते हैं तो भालिया क्षेत्र जहाँ लगभग बीस हज़ार निर्णायक मत हैं उनके खड़े होने से प्रभावित होंगे। यहाँ बता दूं कि शंकर सिंह रावत इसी क्षेत्र के दम पर जीतने का दावा करते थे मगर इस बार यहाँ इंदर सिंह बागावास और महेंद्र सिंह रावत ने भी अच्छी ख़ासी सेंधमारी कर ली है।देवराज जैन यद्यपि रावत नहीं मगर सामाजिक छवि के कारण उनकी रावतों में गहरी पकड़ है।ऐसे में भालिया क्षेत्र चुनाव परिणाम में भारी फेरबदल कर सकता है।
कुल मिलाकर फ़ैसला निर्दलीय इंदर सिंह बागावास और महेन्द्र सिंह रावत ही करेंगे। रावतों के बीच मत विभाजन होगा। यह तय है। कितना होगा यह इंदर सिंह के लिए महत्वपूर्ण होगा। यदि कम हुआ तो शंकर सिंह फिर जीत जाएंगे वरना फ़ैसला चौंकाने वाला होगा।
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