चाहे लंदन हो या नैरोबी, न्यूयॉर्क हो या नेपाल, अहमदाबाद या सिरोही, जयपुर हो या मुंबई या फिर दुनिया के अधिकतर गांव या शहर हों एक बात अब पहले की तुलना में काफी अधिक देखी जा रही है कि कुत्ते आक्रामक होते जा रहे हैं और विशेषकर गली के कुत्ते। दिल्ली में पिछले तीन सालों में 44,000 कुत्ता काटने के मामले सामने आए हैं जहां पर अपनी आदत के मुताबिक नेता लोग किसी समाधान खोजने की बजाय आपसी आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त नजर आए। हर बात का राजनीतिकरण समस्या के मूल कारणों से ध्यान हटा देता है जिसकी वजह से स्थिति ज्यों कि त्यों बनी रहती है। यहां हमें एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि पालतू कुत्ते और गली के कुत्तों के व्यवहार में बड़ा अंतर होता है।
पालतू कुत्तों की पीढियां मनुष्य के साथ रह रही होती हैं और कुछ आक्रामक प्रजातियों को छोड़ कर वे सामान्यतया इंसान पर सीधा हमला नहीं करते हैं हालांकि वे खतरनाक तरीके से भौंकते जरूर हैं। परंतु आजकल एक बुरी बात सामने आने लगी है कि नव धनाढ्य लोग फार्म डॉग्स को पालतू बना घर में रखने लगे है जोकि की एक खतरनाक और शायद गैरकानूनी बात है पर धनी भला कब और किस कानून को मानता है। घर का पालतू कुत्ता किसी ब्रीडर की सलाह से ही रखना चाहिए और बड़े कुत्तों की प्रजाति को अच्छी तरह प्रशिक्षित भी करना चाहिए। घर के पालतू को कम से कम आधा घंटा सुबह शाम दौड़ाना भी चाहिए।गली की कुत्तों का स्वभाव व जीवनशैली घरेलू कुत्तों से अलग होती है। वे पूरे दिन इधर उधर भटक कर अपना भोजन खोज पाते हैं। इस प्रयास में वे आपसी संघर्ष करते हैं, लड़ते झगड़ते और भौंकते हैं जिसके फलस्वरूप उनकी काफी ऊर्जा जाया हो जाती है। शहरों में ये कुत्ते ढाबे, रेस्टोरेंट, मंदिर, मांस की दुकान आदि के आसपास घूमते रहते हैं। गांव में चूंकि ये सब सुविधाएं कम या नहीं होती हैं तो यहां पर ये गिलहरी, खरगोश, सुअर के बच्चे या बिल्ली का शिकार करते रहते हैं या फिर घरों से मिली रोटी आदि पर निर्भर करते हैं। चूंकि जिन जंतुओं का ये शिकार करते हैं वे तीखी आवाज निकालते हैं तो छोटे बच्चे भी इनका शिकार बन सकते हैं क्योंकि बच्चे भी तीखी आवाज के साथ रोते हैं। कच्छी बस्तियों के बच्चे इस मामले में ज्यादा शिकार होते हैं।
इस समस्या का समाधान बड़ा मुश्किल प्रतीत होता है। एक तो जानवरों के स्वभाव के बारे
में लोगों में जानकारी की कमी है और हमारे शहरों, कस्बों और गांवों को बसाने में योजनाएं
त्रुटिपूर्ण हैं। हमारे यहां जानवरों विशेषकर कुत्ते जैसे जानवरों की संख्या पर कोई
कार्यक्रम नहीं नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार संख्या नियंत्रण के लिए देश के 80 प्रतिशत
कुत्तों को नशबंदी होनी चाहिए पर देश इस मामले में पूर्णतः असफल रहा है। इसके फलस्वरुप
देश में कुत्तों को संख्या बढ़ गई और स्थान की कमी से वे आक्रामक हो रहे हैं। शहरों
में लोग कुत्तों को बिस्किट्स आदि खिलाते है और अधिकतर घरों से आसानी से भोजन मिल जाता
है। ऐसा होने से वे आलसी हो जाते हैं, उनकी ऊर्जा का उपयोग नहीं होने से वे आक्रामक
हो जाते हैं। हर तरफ दौड़ते वाहनों की वजह से उनका व्यक्तिगत क्षैत्र कम हो जाने से
भी कुत्ते आक्रामक हो गए हैं। कुत्ते को कम से कम एक घंटे दौड़ना भागना चाहिए होता
है। ऐसा नहीं होने पर वे आक्रामक हो सकते हैं। इसके अलावा शहर या गांव के कुछ लोग बेवजह
कुत्तों की पिटाई करते रहते हैं जिसकी वजह से वे हिंसक हो सकते हैं। याद रखिए कि संविधान
ने हर जानवर को कुछ अधिकार दिए हैं इसलिए हमें कुत्तों का व्यवहार समझना होगा और इनकी
आबादी सीमित करनी होगी परंतु यह सब वैज्ञानिक तरीके से होना चाहिए सजा जैसा व्यवहार
वांछनीय नहीं है। कुत्ते का काटना एक ऐसी गंभीर समस्या है जिसका यदि समाधान नहीं निकला
तो समय के साथ गंभीर हो सकती है क्योंकि बड़े स्तर पर कुत्तों का संहार अमानवीय कृत
है। कुत्तों की आबादी का नियंत्रण उनकी नशबंदी से संभव है और यह कार्य बड़े स्तर पर
होना चाहिए।
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