प्रधान संपादक प्रवीण दत्ता की कलम से
राजकाज के सभी सुधि पाठकों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। शुभेच्छा है कि रोशनी का यह त्यौहार आप सभी के जीवन से रोग, दरिद्रता, अशिक्षा, द्वेष और तनाव जैसे सभी अंधेरों को दूर करे। हम सभी की जीवन यात्रा हो अंधकार से प्रकाश की ओर, रोग से स्वास्थ्य की ओर, निराशा से आशा की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, विपन्नता से संपन्नता की ओर, भूख से तृप्ती की ओर, बेचैनी से संतोष की ओर तथा हम सभी के प्रकर्ति के दोहन का कोई छोर हो।
चूंकि घोर चुनावी माहौल के बीच दिवाली का पर्व आया है सो आम जन चाहे दो चार दिन पटाखे चला कर, दीप जलाकर उल्लास प्रकट कर ले पर राज्य के राजनीतिक हलकों में आतिशबाजी काफी समय से चल रही है और आगे इससे और धूम-धड़ाके की उम्मीद है।
वैसे तो हर चुनाव अपने आप में अलग होता है पर इस बार के राजस्थान चुनाव में बहुत कुछ ऐसा है जो पहले शायद कभी एक साथ नहीं हुआ। वैसे यह बात और विश्वश्नीयता और तफ़सील से चुनाव के बाद कही जा सकती थी पर चुनाव के बीच आई दिवाली ने खबरों का दबाव कुछ कम किया सो आज-अभी ही ठीक है और शायद इससे राजकाज के पाठक इसके बाद होने वाले चुनाव प्रचार और दावों तथा उनके मीडिया कवरेज को अलग चश्मे से देखें।
चुनावी समर का मैदान तैयार है, सभी पार्टियों और निर्दलीयों के योद्धा नारों, वादों, छलावों और स्तरहीन हथकंडों के साथ अपना अपना भाग्य आजमा रहे हैं। एक तरफ गारंटियों की घंटी से लैस 'गांधीबलि' है तो दूसरी तरफ 'माहिष्मती' साम्राज्य में 'नाम ही गारंटी है', चेहरा ही चुनाव चिन्ह है माने 'जो कह दिया सो कह दिया'। एक अपने शासन में पूरी की !' 10 गारंटियों के ट्रैक रेकॉर्ड के बलबूते 7 और गारंटियों के दीप सजाते दिख रहे हैं तो दूसरे 'क्या करुंगा' से ज्यादा 'मगरमच्छ', 'लाल डायरी' और 'गोपाल सहस्त्रनाम में से एक' का जाप ही नहीं छोड़ रहे। ये दोनों सज्जन क्या कह रहें हैं से जरूरी है यह नोट करना कि ये दोनों एक अकेले ही कह रहे हैं।
पहले चाहे गारंटी का दीप जलाएं चाहे विघ्ननाशक से अपनी 'यात्रा' को निर्विध्न पूरी करने की प्रार्थना करें उनके 'सीज़ फायर' का सार्वजनिक ऐलान कर चुके तथाकथित 'नाकारा-निकम्मे चील गाड़ी चालक' कहीं नहीं दिखते। कल दिखे थे टीवी की एक खबर में, पीछे लगे बैनर पर, जहां उनके सिफारिशी चाकसू उम्मीदवार को एक गाँव से भगाया जा रहा था। गारंटी वाले लोग चाहे चील गाड़ी चालक का नाम लें या ना लें लेकिन कमल वालों ने पूरे पूर्वी राजस्थान में 'गुर्जरों से धोखा' का का सुबह-शाम का भागवत पाठ करवा के 'लंका काण्ड' की तैयारी कर ली है। एक अकेले 'डाग्डर साहब' इसके लिए काफी हैं।
कमल वालों की धुरी रहीं 'मैडम' एक अकेली ERCP,द्रव्यवती नदी और रिंग रोड जैसे मुद्दे उठा रहीं हैं वो भी अब तक अपने 'हाड़ौती में' बाकी पूरी पार्टी या तो 'साहब एंड पार्टी' के दौरों का इन्तजार करती है या फिर आयातित वक्ताओं से दनादन प्रेस वार्ता करवा कर सत्ताधारियों पर इतने आरोप लगा देती है कि उनके प्रेस नोट लिखवाने वाले एक अकेले 'लक्ष्मी जी' इसी असमंजस में रहते हैं कि वे पुराने आरोप को नए शब्दों में कैसे लिखें।
एक अकेले कमल अध्यक्ष जयपुर, बाहर और 'साहब' के रैली मैदानों की व्यवस्था में उलझे हैं पर हां 'कूल' हैं, आपा नहीं खोते। जो लाइन पार्टी ने दी है उसी पर चलते हैं। पूनिया जी की तरह पूर्व होने से पहले अध्यक्ष का आचरण ऐसे ही होना चाहिए। एक कमल वाले हैं जो एक अकेले शेखावाटी में 'तारों की छाँव' में संघर्षरत हैं। इन्होने 'किरोड़ी 2.0' बनने की बहुत कोशिश की लेकिन इतने में एक 'दिया' प्रज्जवलित हो गया। दिया माने दीपक - ओजपूर्ण है, सेफ है और दिवाली के बाद भी दिवाली मनाने के मूड में है क्योंकि इस धरा पर अभी वो ही 'पापा की परी' लग रहीं हैं। एक अकेले उन्होने ही तो 'सिविल लाइन्स' में 'साहब का 'पिक्चर पैलेस' संभव करवाया है। यहां ढेर सारी 'माहिष्मती साम्राज्य' शासक की तस्वीरों और बखान के अलावा एक सुव्यवस्थित प्रेस वार्ता पंडाल है, भंडारे का शामियाना है और कुछ कमरों में 'प्राइवेट चैट रुम' हैं। वैसे तो जरुरत नहीं पड़ती पर अगर 'पशु-पक्षियों, मंदिर जीर्णोद्वार' आदि जैसे मुद्दों पर पर दिमाग चलाने को कहा जाता है तो यही कहीं अंदर चर्चा होती होगी। 'पेगासस' के बाद मोबाइल फोन तो हाथ वालों और हाथ में कमल पकड़ने वालों, सभी के लिए 'अनरिलायबल' हो चुका है। दूर से राजनीति करने वाले भी इस एक अकेले मोबाइल की वजह से अकेले हो रहे हैं और एक अकेले 'सनातनी' आकाशवाणी पर डिपेंडेंट रहेंगे क्योंकि होलसेल में दूसरी पार्टियों से भर्ती करने के निरंतर अभ्यास से रिकॉर्ड संख्या में खड़े बागियों का गम कुछ कम होगा। इतने बागियों के खड़े होने की जिम्मेदारी भी एक अकेले पर डाली जा रही है और भर्ती अभियान से माहौल बनाने की रणनीति लागू करने के निर्देश भी किसी को अकेले में ही मिले थे फिर उसने सबसे अलग-अलग अकेले में यही निर्देश आगे पास कर दिए।
उधर हाथ वाले जो हर बार अपनी 'रोटी पलटने' वाले चुनावी साल में अच्छे भले पुलिस लाइन्स के पास विचार मंथन करते थे, दिल्ली वालों के चक्कर में सी स्कीम के वॉर रुम के फेर में पड़ गए हैं। धनतेरस की शाम को कांग्रेस वॉर रूम का हाल 'दीवाली हॉलिडेज़ में किसी स्कूल जैसा था। आईटी सेल वाले अपनी दिहाड़ी का हक अदा कर रहे थे और एक अकेली अमृता मैडम उसी शाम दिल्ली निकलने से पहले कुछ काम निपटा रहीं थीं बाकी किसी के होने की कोई 'गारंटी' ओहो गुंजाइश नहीं थी। सूत्रों ने बताया कि अब से रोजाना रात को वॉर रूम में एक व्यक्ति अकेले में 'मैजिक' का अभ्यास करेगा। इसलिए डिज़ाइन बॉक्स से भिड़ने वालों को भी बुलाए जाने पर ही वॉर रुम में एंट्री मिलेगी। वैसे नाम वापसी के बाद के इस 'मैजिक' में साहब पूरी तरह अभ्यस्त हैं फिर भी 'प्रैक्टिस मेक्स अ मैन परफैक्ट' सो अब 'अंधेरी रातों में, सुनसान राहों पर - एक मसीहा निकलता है, एक अकेले अपने उम्मीदवारों को बागियों और कमल से निपटने के गुर बताने को'। अब वॉर रुम अन्दर तो एंट्री है नहीं पर एक बागियों से जूझ रहे हाथ वाले उम्मीदवार ने फोन पर बताया कि साहब ने कहा है कि इस चुनाव में बागियों और बीजेपी दोनों के लिए एक ही दवाई है - गारंटी की 7 डोज़। इस दवा का कोर्स सुबह, दोपहर शाम दो और यह एक अकेली दवा पूरा आराम देगी।
साहब ने कहा बताया कि जन संपर्क पर निकलो तो मिस्ड कॉल देने वाले वोटर्स को भी चुनाव बाद का गारंटी कार्ड देकर आना। कमाल का नुस्खा है एक अकेला गारंटी कार्ड। सुना है साहब अपने प्रत्याशियों से फोन करके एक ही सवाल पूछ रहे हैं - कौन कौन सी 7 गारंटी दी हैं, बताओ। अब एक अकेला हाथ वाला उम्मीदवार 7 सक्रीय कार्यकर्ताओं के नाम तो याद नहीं रख सकता, अब ये 7 गारंटी कहां से याद रखे।
देखने वाली बात होगी पूरी तरह 'स्पॉन्सर्ड' खबरों के मायाजाल में से एक अकेला वोटर कैसे अपना भला तय करता है। क्योंकि असल में तो एक अकेला वोटर ही है जो लोकतंत्र में 'भाला फेंक' स्पर्धा में जमीन पर कंचे खेलता है।
शेष फिर, अगर आप सभी चाहेंगे तो। एक अकेला कोई कहेगा तो क्या फायदा।
0 टिप्पणियाँ