गिरगिट अपना रंग बदलता है और सामान्यतया लोग इसको बुरा उदाहरण दे कर उपयोग में लेते
हैं परंतु गिरगिट के लिए तो यह रंग बदलना अपने अस्तित्व को बनाए रखने की सबसे बड़ी
विधा है क्योंकि यदि वह ऐसा न करेगा तो मारा जायेगा। मनुष्य भी स्थान परिवर्तन के साथ
अपनी भाषा, वेशभूषा, भोजन और व्यवहार में परिवर्तन करता है और जो व्यक्ति ऐसा जितने
अच्छे तरह से करेगा उतना ही अधिक सुरक्षित रहेगा, सफल होगा। राजनीतिक के क्षैत्र में
नकलचली लोगों की बहुतायत होती है। शीर्ष नेता की टोपी हो या जैकेट, साफा हो या गले
में झूलता कपड़ा, इन सब के लिए बिना किसी के कहे ही छुटभैया नेता और कट्टर समर्थक इन
सब को तुरंत धारण कर लेते हैं। राजनीतिक वेशभूषा और व्यवहार में परिवर्तन नकल या अनुकरण
के प्रमुख उदाहरणों में से एक हैं।
नकल सिर्फ मनुष्य जाति में ही नहीं है। जानवरों में नकलची बंदर तो सर्वविदित है परंतु
कुछ पेड़ भी होते हैं जो सूक्ष्म रूप में पशुओं या कीट की नकल करते हैं और गिरगिट कैसे
कुछ अन्य जीव पेड़ों की नकल करते हैं। पेड़ों में हम्मर आर्किड का फूल भंवरे को आकर्षित
करने के लिए मादा भंवरे का रूप धारण कर लेता है और उसी के शरीर की गंध प्रसारित करता
है ताकि परागीकरण हो सके। पेड़ परागीकरण के लिए मधुमक्खी, तितली, भंवरा और अन्य जीवों
को आकर्षित करने के लिए उनकी मनपसंद की गंद या रूप धारण करते हैं।
अनुकरण लोग विद्वानों और सफल व्यक्तियों का भी करते हैं जो एक सकारात्मक परिणाम देता
है। दूसरी तरफ अक्ल बेच कर नकल करनेवालों की भीड़ भी है और यह एक कष्टदायक बात है कि
इस भीड़ में मानवता की बहुसंख्या शामिल है। धर्म, जाति, रंग और जन्म को ले कर जो हिंसा,
असहिष्णुता, घृणा और भेदभाव का माहौल पूरी धरती पर फैला हुआ है बिना अक्ल की नकल का
परिणाम है। यहां न कोई व्यापक जानकारी या ज्ञान होता है और न ही परिणामों का कोई ध्यान।
बस चंद लोगों की नकल कर तबाही को निमंत्रण दे दिया जाता है। इसलिए यह महत्वुर्ण होता
है कि नकल किस व्यक्ति या समूह की हो रही है। स्वघाती मानव बम भी बना जा सकता है और
विद्वता एवम् मानवता की नई मिशाल भी निर्मित की जा सकती है हालांकि धर्मांधता के कारण
मानव बम ज्यादा निर्मित हो रहे हैं और विद्वानों को नेपथ्य में धकेल दिया गया है।
मनुष्य जन्म से ही दोहरी मानसिकता को साथ लिए हुए होता है। हम में से हर व्यक्ति मानव
हंता, अहंकारी और आत्ममुग्ध होने की क्षमता रखता है, हर कोई थोड़ा पागलपन लिए होता
है परंतु संस्कार और सामाजिक माहौल हम में सहानुभूति, समानुभूति, करुणा, स्नेह और भ्रात्वत्व
की भावनाओं को जम देने में सक्षम होते हैं। हम कमजोर भी हो सकते हैं, कायर भी हो सकते
हैं परंतु हम में साहस, बहादुरी और पराक्रम की कितनी ही संभावनाएं भी छुपी हुई होती
हैं। हम अंधेरे के निर्माता हैं लेकिन धवल रोशनी के स्रोत भी हम ही हैं। नकल और अनुकरण
पर्यायवाची भी हैं और विलोम के आस पास भी क्योंकि सबकुछ इस पर निर्भर करता है कि आप
नकल किस की कर रहे हैं और किस प्रयोजन के लिए कर रहे हैं।
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन
जैसी संगत बैठिए, वैसा ही
फल दीन ।।
( रहीम )
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