चुनाव डेस्क
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 33 जिलों की 199 सीटों पर वोटिंग खत्म हो गई है। पांचवें राउंड में शाम 5 बजे तक आए मतदान प्रतिशत के अनुसार प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटिंग जैसलमेर में 76.57 प्रतिशत और सबसे कम पाली में 60.71 प्रतिशत रही। खास बात यह है कि महंत प्रतापपुरी और बालकनाथ की सीट पर बंपर वोटिंग हुई है। इसके सियासी मायने हैं।
राजस्थान में अब हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन का लगभग ट्रेंड बन गया है। वहीं, वोटिंग का प्रतिशत भी यह बताने में कामयाब रहता है कि कौन-सी पार्टी सत्ता में होगी। पिछले चार चुनावों से ऐसा ही देखने को मिल रहा है।
वोट प्रतिशत यदि 3 से 6 फीसदी तक बढ़ता है तो फायदा भाजपा को मिलता है। वहीं, वोट प्रतिशत एक प्रतिशत तक कम हुआ तो कांग्रेस की वापसी होती है। यह एक पैटर्न है, जो 1998 के इलेक्शन से देखने को मिल रहा है, इसलिए राजस्थान में वोटिंग का घटना या बढ़ना काफी हद तक रिजल्ट की दिशा तय कर देता है।
पिछले 4 चुनावों से समझिए कैसे बदलता है राजस्थान का सियासी समीकरण...
2003 में 3.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा की वापसी
साल 1998 के चुनाव में राजस्थान में 63.39 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस इलेक्शन में 200 में से 153 सीटें कांग्रेस और 33 सीटें भाजपा ने जीती थी। वहीं, 2003 में हुए इलेक्शन में कुल 67.18 प्रतिशत वोटिंग हुई। यहां 1998 के मुकाबले 3.79 फीसदी ज्यादा मतदान हुआ और सत्ता परिवर्तन भी। भाजपा ने इस चुनाव में 120 सीटें जीतकर सरकार बनाई। जबकि कांग्रेस 56 सीटों पर जीती थी। इन चुनावों में भाजपा को 39.85 फीसदी और कांग्रेस को 35.65 प्रतिशत वोट मिले।
2008 में 0.93 प्रतिशत कम वोटिंग, कांग्रेस को सत्ता
साल 2003 की तुलना में 2008 के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 0.93 प्रतिशत कम रहा। वोटिंग पर्सेंटेज गिरने के साथ भाजपा की सीटें भी कम हो गईं। साल 2003 में जहां बीजेपी को 120 सीटें मिलीं। वहीं, 2008 के चुनाव में वह 78 सीटों पर सिमट गई। जबकि कांग्रेस 56 सीटों से बढ़कर 96 सीटों पर पहुंच गई। कांग्रेस को भाजपा से 1.32 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले थे। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन फिर भी कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही।
2013 में 8.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा लौटी
साल 2013 में पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड नहीं बदला। 2013 में 75.04 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो कि 2008 में हुई वोटिंग से 8.79 फीसदी ज्यादा थी। इस चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिलीं। वहीं, कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई। भाजपा का वोट शेयर 45.50 प्रतिशत, जबकि कांग्रेस का 33.31 फीसदी रहा। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर केवल 2.29 प्रतिशत गिरा, लेकिन सीटें 75 कम हो गईं। वहीं, भाजपा का वोट शेयर 2008 के मुकाबले 8.58 फीसदी बढ़ गया। वहीं, सीटें 85 बढ़ गईं।
2018 में वोटिंग प्रतिशत गिरा, कांग्रेस जीती
वोटिंग ट्रेंड से सत्ता बदलने के संकेत इस बार भी सही साबित हुए और कांग्रेस की वापसी हुई। साल 2013 की तुलना में 2018 में वोटिंग प्रतिशत 0.98 फीसदी कम रहा। 2018 में 74.06 फीसदी वोटिंग हुई। वहीं, 2013 में वोटिंग का प्रतिशत 75.04 था। इस साल कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर वापसी की तो भाजपा को 73 सीटें मिलीं। भाजपा को इस चुनाव में 39.08 प्रतिशत वोट के साथ 73 सीटें मिलीं। वहीं, कांग्रेस का वोट शेयर 40.64 फीसदी रहा।
38 सीटों पर 3 फीसदी से कम वोटिंग ने बदला खेल
साल 2018 के चुनावों में 38 सीटें ऐसी थीं जहां जीत-हार का अंतर 3 फीसदी से कम था। कांग्रेस-भाजपा ने कई सीटें मामूली अंतर से जीतीं। इनमें पीलीबंगा, खेतड़ी, फतेहपुर, दांतारामगढ़, चौमूं, मकराना, पोकरण, मारवाड़ जंक्शन जैसी सीटों पर जीत-हार का अंतर आधा फीसदी के करीब ही रहा।
बागियों ने भी कई सीटों पर दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ा। यही कारण है कि इस बार दोनों पार्टियों ने बागियों को रोकने के लिए पूरा जोर लगाया है। भाजपा में तो प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री तक ने कई बागियों को समझाकर मैदान से हटाया है।
इस बार 4 प्रतिशत वोटर्स पर सभी की निगाहें
राजस्थान में करीब 4 फीसदी वोटर्स सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। इस बार 5 करोड़ 26 लाख वोटर्स हैं। इनमें से 22 लाख 6 हजार पहली बार मतदान करेंगे। यह आंकड़ा कुल वोटर्स का करीब 4 फीसदी है जो किसी भी दल की सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। पिछले चुनाव में दोनों दलों के बीच वोट प्रतिशत महज 1.56 फीसदी था, लेकिन सीटों में अंतर 27 का था।
सबसे कम वोटिंग 1951 में हुई
राजस्थान के चुनावी इतिहास में सबसे कम वोटिंग 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में हुई थी। इस चुनाव में सीटों की संख्या 140 थी, जबकि कुल वोटर्स 76 लाख 76 हजार थे। इनमें से करीब 35.19 प्रतिशत वोटर्स ने वोट डाला था। इस इलेक्शन में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 82 सीटें जीती थीं। वहीं, दूसरे नंबर पर निर्दलीय जीते थे। इनकी संख्या 35 थी।
सबसे अधिक वोटिंग 1967 में हुई
बीते 15 विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक वोटिंग 1967 में हुई थी। इस इलेक्शन में सीटों की संख्या 184 थी, जबकि कुल वोटर्स करीब 80 लाख 79 हजार थे। इनमें से 87.93 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। चुनाव में सबसे ज्यादा 89 सीटें कांग्रेस ने जीती। भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) ने 22 सीटों पर
1967 का चुनाव भूल नहीं सकते
राजस्थान में विधायकों की पहली बार बाड़ाबंदी 1967 में हुई। इस चुनाव में कांग्रेस को 89 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस के एक सदस्य दामोदरलाल व्यास टोंक और मालपुरा दो विधानसभा क्षेत्रों से विजयी हुए थे। उन्हें एक सीट से त्यागपत्र देना पड़ा। इसलिए कांग्रेस विधायकों की संख्या घट कर 88 हो गई। दूसरी ओर विपक्ष में स्वतंत्र पार्टी जनसंघ, वामपंथी और निर्दलीय मिलकर 95 विधायक थे।
उन्होंने संयुक्त विधायक दल (संविद) बनाकर तत्कालीन राज्यपाल संपूर्णानंद से सरकार बनाने का अवसर देने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। राज्यपाल ने मोहनलाल सुखाड़िया को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया। इसका जबरदस्त विरोध हुआ और 7 मार्च 1967 को गोलीकांड भी हुआ। उसमें नौ लोग मारे गए थे।
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