जयपुर चुनाव डेस्क।
कहावत है "कब्बड्डी में कुण काका ?" माने जब मुकाबला हो तो कोई रिश्तेदारी मायने नहीं रखती, सिर्फ जीत- हार ही देखी जाती है। और जब बात राजनीतिक मुकाबले की हो - लक्ष्य जब विधायक-मंत्री बनना हो तो फिर सब रिश्ते-नाते ताक पर रख दिए जाते हैं। इसकी बानगी एक बार फिर राजस्थान के विधानसभा रण में सबके सामने है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार परिवारों के लोगों ने ही एक दूसरे के सामने उतकर मुकाबला रोचक बना दिया है। कई सीटें ऐसी हैं पति-पत्नी, भाभी-देवर, चाचा-भतीजे, चाचा-भतीजी के आमने-सामने चुनाव लड़ने के चलते हॉट बनी हुई हैं।
राजस्थान में ज्यादातर सीटों पर सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है। लेकिन इन सीटों पर रिश्तेदार ही एक-दूसरे के लिए चुनौती बने हुए हैं।
स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए- राजनीति की वजह से परिवार के सदस्यों ने कैसे बनाया प्रदेश का सबसे हॉट मुकाबला
चाचा-भतीजी में वर्चस्व की जंग
झुंझुनूं जिले की खेतड़ी सीट हॉट बनी हुई है। भाजपा ने धर्मपाल गुर्जर को टिकट देकर प्रत्याशी बनाया तो भतीजी मनीषा बागी हो गई। मनीषा कांग्रेस में शामिल होकर टिकट ले आई। अब चाचा-भतीजी एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे हैं।
खेतड़ी सीट से धर्मपाल गुर्जर के साथ उनके भाई दांताराम गुर्जर और उनकी बेटी मनीषा गुर्जर भी भाजपा से टिकट मांग रही थी। लेकिन भाजपा ने धर्मपाल को टिकट देकर फाइनल कर दिया।
मनीषा गुर्जर पहली बार भाजपा से प्रधान बनी थी। उन्होंने पिछली बार भी टिकट मांगा था लेकिन नहीं मिला। फिर उन्होंने निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा था और पंचायत समिति की प्रधान चुनी गई थी।
मनीषा के दादा मालाराम भी 1972 में जनसंघ से नीमकाथाना से विधायक का चुनाव जीते थे। इसके बाद 1977 में खेतड़ी से विधायक बने। लगातार तीन बार विधायक रहे। मनीषा के पिता दांताराम भी 2003 में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। तब से बीजेपी यहां जीत नहीं सकी है।
2003 में भी दोनों भाई दांताराम और धर्मपाल गुर्जर भी आमने-सामने अलग-अलग पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं। धर्मपाल ने तब निर्दलीय और दांताराम ने भाजपा से लड़ा था। 2018 में भी धर्मपाल ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था और 957 वोटों से जितेंद्र सिंह से हार गए थे।
पति-पत्नी बने एक-दूसरे के लिए चुनौती
दांतारामगढ़ दूसरी ऐसी सीट है जहां चुनावी जंग में पति-पत्नी आमने-सामने हैं। दोनों ही एक दूसरे को कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। पूर्व कांग्रेस प्रदेशध्यक्ष नारायण सिंह के बेटे और मौजूदा विधायक वीरेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर यहां चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर उनके पिता नारायण सिंह 7 बार विधायक रह चुके हैं। झुंझुनू जिला प्रमुख भी रह चुके हैं।
वीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी के बीच में पिछले कुछ समय से विवाद की बातें सामने आ रही थी। हाल ही में उनकी पत्नी रीटा सिंह ने जेजेपी पार्टी को ज्वॉइन किया और सबसे पहले दांतारामगढ़ सीट से दावेदारी जता दी। तब माना जा रहा था कि कांग्रेस उनके सामने पति को टिकट नहीं देगी। लेकिन टिकट मिलने के बाद चुनाव काफी रोमांचक हो गया।
रीटा सिंह पहले सीकर की जिला प्रमुख रह चुकी हैं। दांतारामगढ़ से उन्होंने कई चुनाव लड़े हैं। उन्होंने दावा किया था कि दांतारामगढ़ सीट पर उनका हक है। उन्होंने जनता के साथ मिलकर काफी काम किया है। अब दोनों के बीच टक्कर पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हैं।
जीजा-साली का अनोखा चुनाव
धौलपुर सीट का जीजा-साली के एक दूसरे के आमने-सामने लड़ने से रोचक बन गया है। यहां पर भाजपा से डॉ. शिवचरण कुशवाह और कांग्रेस से शोभारानी कुशवाह चुनाव लड़ रही है। दोनों ही सगे जीजा-साली है। बीएल कुशवाह ने 2013 में बसपा से चुनाव जीता था। मर्डर के केस में 2016 में जेल जाने के बाद उनकी पत्नी शोभा रानी ने भाजपा से ही पहला उपचुनाव लड़ा था। चुनाव भी जीत गई थी। लेकिन राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने के चलते उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था। अब कांग्रेस की टिकट पर शोभारानी चुनाव लड़ रही हैं।
धौलपुर में कुशवाह वोटर काफी संख्या में हैं। भाजपा ने भी इसी वजह से डॉ.शिवचरण कुशवाह को टिकट दिया। वे पिछले चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर खड़े थे। जब शोभा कांग्रेस में गई तो भाजपा ने शिवचरण को पार्टी में ज्वॉइन कराकर टिकट दे दिया। शिवचरण पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर है। पिछले चुनाव में भी दोनों आमने-सामने थे लेकिन अलग पार्टियों से। अब दोनों ने पार्टी भी बदल ली है।
चाचा-भतीजी में आमने-सामने की टक्कर
नागौर में 39 साल बाद एक ही परिवार के दो सदस्य आमने-सामने हैं। चाचा-भतीजी में आमने-सामने की टक्कर है। पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा भाजपा की टिकट पर नागौर से चुनाव लड़ रही हैं। टिकट वितरण से कुछ दिन पहले ही वे भाजपा में शामिल हुईं। तब माना जा रहा था कि उन्हें भाजपा लोकसभा चुनाव में मौका देगी। लेकिन नागौर से विधानसभा का टिकट मिल गया।
ज्योति मिर्धा के सामने कांग्रेस ने उनके चाचा हरेंद्र मिर्धा उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है। हरेंद्र मिर्धा इसी सीट पर 5 बार चुनाव लड़ चुके हैं। उन्होंने पहला चुनाव मूंडवा सीट से 1980 में लड़ा था। रामदेव चौधरी से दूसरा चुनाव हारने के बाद नागौर आ गए थे। फिर नागौर सीट से 1993 में जीतकर विधायक बने।
ऐसा नहीं है कि मिर्धा परिवार में पहली बार कोई सदस्य आमने-सामने है। हरेंद्र मिर्धा के पिता रामनिवास और ज्योति मिर्धा के दादा नाथूराम मिर्धा भी आमने-सामने चुनाव लड़ चुके हैं।
वर्ष 1984 में नाथूराम मिर्धा लोकदल से चुनाव लड़ रहे थे। उनके सामने राजीव गांधी को मजबूत प्रत्याशी की तलाश थी। तब कांग्रेस ने उनके भतीजे रामनिवास मिर्धा को उतारा था। इस चुनाव में रामनिवास मिर्धा ने चाचा नाथूराम को 48 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। नाथूराम मिर्धा ही भतीजे रामनिवास मिर्धा को राजनीति में लाए थे। उपचुनाव जिताकर पहली बार विधायक बनाया था।
भाभी भाजपा से तो देवर बसपा से चुनावी मैदान में
धौलपुर में भाभी-देवर के अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ना भी चर्चा बनी हुई है। हालांकि दोनों आमने-सामने नहीं लड़ रहे है। लेकिन घर और चुनाव कार्यालय आसपास ही हैं। भाभी भाजपा ने टिकट पर राजाखेड़ा से देवर बसपा के टिकट पर धौलपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
राजाखेड़ा सीट पर बीजेपी ने नीरजा अशोक शर्मा टिकट दिया है। पिछली बार उनके पति कांग्रेस के पूर्व मंत्री प्रद्युम्न सिंह के बेटे रोहित से हार गए थे। रोहित बोहरा ने नीरजा के पति दिवंगत अशोक शर्मा को 14 हजार 991 वोटों से हराया था। फिलहाल यहां पर दोनों में कड़ा मुकाबला बना हुआ है।
उधर नीरजा के देवर रोहित शर्मा बसपा के टिकट पर धौलपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस से दोनों जीजा-साली आमने-सामने चुनाव लड़ रहे है। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ है। रोहित दोनों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
एक भाई भाजपा से तो दूसरा जेजेपी
लक्ष्मणगढ़ में सुभाष महरिया भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं उनके भाई नंदकिशोर महरिया फतेहपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। लक्ष्मणगढ़ में सुभाष महरिया का मुकाबला कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासारा से है। इस सीट पर सभी की नजर है। वहीं टिकट नहीं मिलने से नाराज सुभाष महरिया के भाई नंदकिशोर महरिया ने भी फतेहपुर में जेजेपी से टिकट लेकर ताल ठोक रखी है।
नंदकिशोर महरिया को काफी मनाने का प्रयास किया गया लेकिन वे नहीं माने। फतेहपुर में भाजपा से सीएलसी के डायरेक्टर श्रवण चौधरी और कांग्रेस से हाकम अली चुनाव लड़ रहे हैं। नंदकिशोर महरिया के चुनाव लड़ने से दोनों प्रत्याशियों को नुकसान का अनुमान है।
चाचा-भतीजा भाजपा-कांग्रेस के टिकट लेकर आमने-सामने
भादरा से चाचा-भतीजा दोनों ही बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस से टिकट चुनाव मैदान में आमने-सामने हैं। चाचा संजीव बेनीवाल बीजेपी तो उनके भतीजे अजीत बेनीवाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है। दोनों एक ही गांव भादरा के गांधीबड़ी गांव के हैं और रिश्ते में चाचा-भतीजा लगते हैं।
संजीव बेनीवाल दो बार विधायक रह चुके हैं। वर्ष 1998 में कांग्रेस की टिकट पर जीते थे। 2003 में हार गए थे। फिर 2013 में चुनाव से एक महीना पहले भाजपा में शामिल हुए। भाजपा की टिकट पर दूसरी बार विधायक बने। लेकिन तीसरा चुनाव 2018 में हार गए थे। इनके पिता हरदत्त सिंह बेनीवाल, दादा दयाराम बेनीवाल भी विधायक रह चुके हैं।
अब संजीव बेनीवाल के भतीजे अजीत बेनीवाल भी चुनाव लड़ रहे हैं। अजीत के पिता भीम सिंह बेनीवाल ने इनैलो-भाजपा के गठबंधन में 2008 में चुनाव लड़ा था। तब उन्हें महज 3700 वोट ही मिले थे। इस सीट पर फिलहाल सीपीएम, भाजपा और माकपा में त्रिकोणीय मुकाबला है।
इन सीटों पर भी रिश्तेदारों में चुनावी जंग
- पाली जिले की सोजत सीट से पूर्व सचिन निरंजन आर्य चुनाव लड़ रहे है। वहीं उनकी रिश्तेदार शोभा चौहान भाजपा से चुनाव मैदान में उनके सामने लड़ रही हैं।
- जयपुर की बस्सी सीट से पूर्व आईएएस चंद्रमोहन मीणा भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने कांग्रेस ने उनके रिश्तेदार पूर्व आईपीएस लक्ष्मण मीणा चुनाव में उतारा है।
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