मानव समाज की एक बात बड़ी विचित्र रही है कि वह अपनी प्राचीन धारणाओं को अटल सत्य मानता
रहा है। वह आधुनिक विज्ञान से सब सुख भोगेगा पर बात उन प्राचीन ग्रंथों की सत्यता की
करेगा जिनको न तो उसने देखा है और ना ही किसी निष्पक्ष सूत्र से समझा है, पढ़ने की
तो बातें करना ही कोई मतलब नहीं रखता। धन लोभी कथा वाचक, राजनीति से प्रेरित धर्म के
तथाकथित ज्ञानी धरती के हर स्थान और हर धर्म के नाम पर आम मनुष्य को ठगते रहते हैं
और वह आम मनुष्य एक अफीमची की तरह तथ्यहीन कहानियों को परम सत्य मानते हुए उन लोगों
की सेवा सुश्रुषा में लगा रहता है। लोग अकसर उन बातों को तथ्य मानने लगते हैं जिनको
बहुमत स्वीकार करता है, अंगीकार करता है। परंतु मनोवैज्ञानिक का कहना है कि बेहतर जीवन
वे लोग जीते हैं जो बहुमत की राय को अनदेखा करते हैं। स्वविवेक एवम् चेतन मन के साथ
तर्क संगत प्रामाणिकता वाले रास्तों के ये राही एक प्रतिशत से भी कम होते हैं पर ऐसे
लोग होते जरूर हैं।
मनुष्य की यह प्रवृति हर क्षैत्र की तरह चिकित्सा केंद्रों में भी पूरी पृथ्वी पर फैली
हुई है। द्वतीय विश्व युद्ध के बाद पेनिसिलिन नामक एंटीबायोटिक ने बैक्टीरिया जनित
संक्रमण के विरुद्ध चमत्कारिक असर दिखाया और मौत के मुंह में जाते रोगियों की जान बचाई।
इस सफलता का परिणाम यह हुआ कि पौराणिक ग्रंथों की अप्रमाणित सत्यता की तरह चिकित्सकों
का बहुत बड़ा बहुमत एंटीबायोटिक का आंख बंद कर उपयोग करने लगा फिर चाहे शरीर में बैक्टीरिया
की बजाय वायरस , परजीवी या फंगस का संक्रमण ही क्यों न हो। चिकित्सक से साथ साथ बीमार
भी एंटीबायोटिक की मांग करने लगे। एंटीबायोटिक दुरुपयोग स्पष्ट तौर पर इंगित कर रहा
है कि मनुष्य जाति का बहुमत तर्क आधारित जीवन से दूर झूठी आशाओं एवम् आश्वासनों पर
निर्भरता बनाए रखता है फिर चाहे लोग कितने ही शिक्षित क्यों न हो जाएं।
अभी हाल ही में ओस्लो ( नॉर्वे ) स्थित अकेरशास यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर मैग्रिट
जे होविन्द ने गंभीर रूप से बीमार श्वसन तंत्र के रोगियों पर एक लंबे अध्ययन को पूर्ण
किया है। अध्ययन में पाया गया कि जहां सिर्फ 10 प्रतिशत रोगियों को एंटीबायोटिक की
आवश्यकता थी वहां पर 70 प्रतिशत लोगों को एंटीबायोटिक की सलाह दी गई। आईसीयू में भर्ती
रोगियों पर तो बहुत महंगी और अत्याधुनिक एंटीबायोटिक दवाओं का बेधड़क परंतु बिना आवश्यकता
की पड़ताल किए उपयोग किया जा रहा है मानो आईसीयू बनी ही बे-लगाम एंटीबायोटिक उपयोग
या कहा जाए तो दुरुपयोग के लिए हो।
इन गंभीर रोगियों में चूंकि अधिकतर लोग वायरल निमोनिया से पीड़ित थे तो पाया गया कि
एंटीबायोटिक के सेवन से शून्य फायदा हुआ बल्कि एंटीबायोटिक सेवन करने वाले गंभीर रोगी
ज्यादा संख्या में तथा ज्यादा शीघ्रता से मरे। यहां यह बात भी ध्यान में रखने वाली
है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अभी हाल ही में भारत के चिकित्सकों को नाक, कान, गला
और वायरल निमोनिया में एंटीबायोटिक का उपयोग न करने की सलाह जारी की है। परंतु असंख्य
शुभ लगन शुभ मुहूर्त में संपन्न विवाहों की सर्वविदित असफलता के बावजूद लोग बिना लगन
मुहूर्त विवाह संपन्न करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते उसी तरह अधिकतर चिकित्सक एंटीबायटिक
के बिना अपने प्रिस्क्रिप्शन को अधूरा महसूस करते हैं। परिणाम बैक्टीरिया सुपर बग का
विकसित होना है जिसका इलाज ही नहीं है और जो एक दो नई विकसित एंटीबायोटिक हैं उनसे
यदि इलाज करवाना पड़े तो बात 30-40 लाख से एक करोड़ रूपये में जा कर बनती है। डॉक्टर
होविन्द के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि एंटीबायोटिक कोई रामबाण औषधि नहीं है इसलिए
इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगना चाहिए क्योंकि इस समूह की औषधियों का दुरुपयोग कई लोगों
को मृत्यु की तरफ धकेल रहा है जिसका किसी को अहसास और संदेह भी नहीं है।
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