जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
भाजपा की दूसरी सूची में पूरा फोकस डैमेज कंट्रोल पर रहा। पहली सूची के बाद लगी विरोध की आग को प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को टिकट देकर बुझाने की कोशिश की गई है।
उम्मीदवारों के चयन में पिछली बार केंद्रीय नेतृत्व का दमखम दिखा था, इसके उलट इस बार प्रदेश के नेताओं को महत्व दिया गया।
हालांकि भाजपा ने सूची जारी करने में भी कांग्रेस से बाजी मारकर ये संदेश दिया कि उनके कॉन्सेप्ट क्लियर है। कांग्रेस की पहली सूची ही भाजपा की दूसरी सूची के कुछ मिनटों बाद आई। भाजपा 12 दिन पहले सूची जारी कर चुकी है।
इस बार खास बात ये है कि अब तक साइडलाइन रहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साधने का प्रयास किया है। एक मैसेज भी देने की कोशिश की गई है कि वे सीएम की रेस में बरकरार हैं।
पहली सूची में सात सांसदों का टिकट देने का जिस तरह विरोध हो रहा था, उसे देखते हुए इस बार किसी सांसद को टिकट नहीं दिया गया है।
गहलोत की प्रशंसा करने वालीं उम्रदराज विधायक सूर्यकांता व्यास और संघ नेता के सीडी कांड में कथित तौर पर लिप्त रहे सांगानेर से विधायक अशोक लाहोटी का टिकट काट दिया गया है।
1. दूसरी सूची की खास बात क्या है?
पहली सूची आने के बाद नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को कहना पड़ा था कि मेरा भी टिकट कटेगा तो मैं विरोध नहीं करूंगा। सवाल उठने लगे थे कि क्या बड़े नेताओं के टिकट कटेंगे? वसुंधरा, राठौड़, पूनिया, नरपत सिंह राजवी जैसे नेताओं के टिकट क्लियर कर ये मैसेज दे दिया गया है कि ऐसा कुछ नहीं होगा।
दूसरी लिस्ट में प्रदेश के प्रमुख नेताओं और सभी गुटों को प्राथमिकता दी गई हैं। इसके मायने ये हैं कि सत्ता की चाहत में सभी अपनी ताकत लगाएंगे।
2. पहली सूची में कई सांसदों और नए चेहरों को टिकट दिए गए थे, इस बार क्यों नहीं दिए?
पिछली बार जिन 41 सीटों पर टिकट दिए गए, उनमें 11 कमजोर सीटें थीं। इनमें 3 कमजोर सीटों पर 2 सांसदों और 1 पूर्व सांसद को उतारा गया। क्योंकि इनमें से कुछ सीटें भी भाजपा जीत लेती है तो फायदा ही है। आज 83 टिकट दिए गए, इनमें कोई भी कमजोर सीट शामिल नहीं है।
3. टिकट देने का क्या आधार रहा इस बार?
पहली सूची आने के बाद भाजपा आलाकमान ने अपने स्तर पर सर्वे करवा लिया था। इसके आधार पर आलाकमान ने सूची तैयार की थी। इसके बाद प्रदेश संगठन और संघ ने भी राजस्थान से सभी सीटों पर एक-एक पैनल तैयार किया था। तीनों सूचियों में जिस दावेदार का पलड़ा भारी दिखा, उसे मौका दिया गया। सर्वे के साथ संगठन-संघ दोनों के ही फीडबैक को महत्व दिया है।
4. सबसे ज्यादा किसकी चली है?
भाजपा की पहली सूची और दूसरी सूची देखकर कहा जा सकता है कि वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2018 तक के विधानसभा चुनाव में जिस तरह वसुंधरा राजे की चली, वैसी तो नहीं, लेकिन इस सूची में उनका सबसे ज्यादा प्रभाव दिख रहा है। इस सूची में समर्थकों की संख्या ठीक-ठाक है। झालावाड़ और बारां जिले की सीटों पर तो राजे का पूरा दबदबा रहा। राजे का खुलकर समर्थन करने वालों में कालीचरण सराफ, प्रताप सिंह सिंघवी, श्रीचंद कृपलानी जैसे नेताओं को मौका दिया गया है।
- नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की भी इस सूची में काफी चली है। चूरू के अलावा कुछ सीटों पर उनके पक्ष के लोग उतारे गए हैं।
5. भाजपा ने पुराने चेहरों पर ही क्यों भरोसा जताया है?
भाजपा के एक महीने पूर्व हुए सर्वे में करीब 116 सीटों पर पार्टी को कंफर्टेबल पोजिशन में बताया गया था। इस कारण मौजूदा 70 विधायकों को रिपीट करने में पार्टी को कोई दिक्कत नहीं आई। इनमें 90 फीसदी सीटों पर भाजपा अपने पक्ष में माहौल मान रही है। 5-7 सीटों को छोड़, अन्य सीटों पर एमएलए से स्थानीय लोगों को खास शिकायत नहीं थी।
6. क्या ताजा सूची में राजस्थान की कमजोर 19 सीट में से कोई सीट शामिल है?
पहली सूची में 11 कमजोर सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। इनमें दांतारामगढ़, कोटपूतली, झुंझुनूं, सांचौर, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, नवलगढ़, लालसोट, सपोटरा, बागीदौरा और बस्सी सीट थीं। ताजा सूची में बची कमजोर सीटों सरदारपुरा, बाड़मेर शहर, खेतड़ी, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, सिकराय, टोडाभीम, बाड़ी और वल्लभनगर पर प्रत्याशी घोषित नहीं किया।
7. क्या सूची में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी दिखाई दे रही है?
भाजपा की पहली सूची और दूसरी सूची देखें, तो करीब 11 फीसदी ही महिलाओं को मौका दिया गया है। 41 प्रत्याशियों की पहली सूची में 4 महिलाएं थीं। 83 प्रत्याशियों की दूसरी सूची में 10 महिलाओं के नाम हैं। ऐसे में कुल मिलाकर 124 की सूची में 14 महिला प्रत्याशी हैं।
8. संघ फैक्टर कैसे नजर आया?
जयपुर के भाजपा के मेयर वाले ग्रेटर नगर निगम में सफाई के लिए ठेका देने वाली कंपनी से कमीशन लेने के आरोप लगाए गए थे। इसमें आरएसएस के पदाधिकारी निम्बाराम का भी नाम सामने आया था। तब कांग्रेस ने आक्रामक रूप अपनाकर विधानसभा से लेकर आम सभाओं में भी भाजपा और आरएसएस को काफी कोसा था। कुछ लोगों का मानना था कि इस षड्यंत्र में भाजपा नेता और मेयर के पति का नाम खुलकर सामने आ गया था। आरोप था कि सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी भी इस षड्यंत्र में शामिल थे। इस पूरे प्रकरण से आरएसएस लाहोटी से भी नाराज चल रहा था। इसका असर लिस्ट में भी दिखा और आरएसएस से जुड़े भजनलाल शर्मा को लाहोटी का टिकट काटकर मौका दिया गया।
9. राजवी को चित्तौड़ से टिकट देने की क्या वजह है? जबकि उन्होंने दीया कुमारी के परिवार को मुगलों से जोड़ा था…
पहली सूची में विद्याधर नगर से पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के दामाद और विधायक नरपत सिंह राजवी का टिकट काटकर सांसद दीया कुमारी को दिया गया था। इसका क्षेत्र में कुछ लोग लगातार विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि भैरोंसिंह के परिवार की अनदेखी की जा रही है। 2018 में भी राजपूतों की नाराजगी से भाजपा को नुकसान हुआ था, जो वह दोहराना नहीं चाहती।
अब नाराजगी दूर करने के लिए राजवी को चित्तौड़गढ़ के मौजूदा एमएलए का टिकट काटकर प्रत्याशी बनाया गया है।
10. कोई मुस्लिम चेहरा नहीं, क्या सूची में हिंदू-मुस्लिम मुद्दा दिखाई दे रहा है?
भाजपा की जारी दोनों ही सूची में कोई मुस्लिम चेहरा नहीं है। पिछले चुनाव में 200 में से केवल एक टिकट वसुंधरा राजे समर्थक यूनुस खान को दिया गया था। यूनुस खान डीडवाना से दावेदारी जता रहे हैं। दोनों सूचियों में टोंक और डीडवाना सीटें शामिल नहीं की गई हैं। ये माना जा रहा है कि संभवत: खान को टिकट नहीं दिया जाएगा।
11. अल्पसंख्यक सीटों पर भाजपा की क्या रणनीति है?
राजस्थान में भाजपा कट्टर हिंदुत्व की रणनीति से ही चुनाव लड़ रही है। दोनों सूचियां देखें तो अल्पसंख्यक बहुल मानी जाने वाली सीटों पर दो महंतों को उतारा गया है। पहली सूची में तिजारा से बाबा बालकनाथ का नाम था। दूसरी सूची में जैसलमेर की पोकरण सीट से महंत प्रतापपुरी को प्रत्याशी बनाया गया है। अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी को रिपीट किया गया है। इनकी छवि भी हिंदूवादी नेता की है। इस विधानसभा सीट पर दरगाह क्षेत्र भी शामिल है। क्षेत्र में मुस्लिम वोटर बहुत हैं।
12. नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को क्यों सीट बदलनी पड़ी? क्या डोटासरा की बात सच साबित हुई?
सूत्रों के अनुसार सर्वे के परिणाम में राजेंद्र राठौड़ की चूरू में स्थिति कुछ कमजोर नजर आ रही थी। 2018 का चुनाव वे बहुत कम वोटों से जीते थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा लगातार दोहरा रहे थे कि राठौड़ चूरू से हारेंगे और अपनी सीट बदलेंगे। ये बात लिस्ट में सच साबित हो गई। लेकिन इसमें भी एक खास बात है।
तारानगर से राठौड़ को मौका दिया, जहां से वे पहले भी वर्ष 2008 में एमएलए रह चुके हैं। वहीं, चूरू से राठौड़ के ही करीबी पूर्व जिला प्रमुख हरलाल सहारण को टिकट गया है। वर्ष 2008 में जब राठौड़ अपनी सीट बदलकर तारानगर गए थे, तब चूरू से हरलाल को ही मौका दिया गया था, लेकिन हरलाल चुनाव हार गए थे।
13. जाट और राजपूत समाज को साधने के लिए क्या प्रयास किए?
राजवी, दीया और विश्वराज सिंह के माध्यम से राजपूतों को साधा गया है। भाजपा हनुमान बेनीवाल से नाराज थी और नागौर में बेनीवाल का विकल्प तलाश रही थी। भाजपा को विकल्प के तौर पर मारवाड़ की राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले मिर्धा परिवार की सदस्य ज्योति मिर्धा नजर आईं। मिर्धा को पार्टी में शामिल कर लिया गया और अब नागौर से टिकट भी दे दिया गया। इसके लिए मौजूदा एमएलए का टिकट भी काट दिया गया।
राजवी 20 साल बाद मैदान में
- नरपत सिंह राजवी चित्तौड़गढ़ से 20 साल बाद वापस चुनाव लड़ेंगे। सबसे पहले 1993 में चुनाव लड़े थे, तब जीते थे। 1998 में हारे और 2003 में फिर से जीते थे। परिसीमन के बाद राजवी ने अपनी सीट बदली और 2008 से वे विद्याधर नगर से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। वर्तमान में चितौड़गढ़ विधायक चंद्रभान और सीपी जोशी में हमेशा मनमुटाव रहा है। चंद्रभान का टिकट कटने का एक कारण यह भी माना जा रहा है।
धर्मगुरुओं के बीच मुकाबला
- पोकरण से BJP ने एक बार फिर महंत प्रतापपुरी को टिकट देकर रिपीट किया है। पिछले विधानसभा चुनाव में महंत कांग्रेस प्रत्याशी शाले मोहम्मद से मात्र 872 वोटों से हारे थे। एक तरफ जहां शाले मोहम्मद सिंधी मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु हैं। वहीं महंत प्रतापपुरी बाड़मेर स्थित तारातरा मठ के महंत हैं।
नाराजगी दूर करने की कोशिश
- अलवर में अब तक छह टिकट दिए हैं। इनमें से थानागाजी से हेम सिंह भड़ाना और बानसूर से देवी सिंह शेखावत को टिकट देकर बीजेपी ने बागियों को साथ ले लिया है। दोनों ने पिछली बार बागी होकर चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों दूसरे नंबर पर रहे थे। अलवर में 11 में से बीजेपी के दो विधायक हैं। दोनों को टिकट दे दिया है। मतलब मौजूदा विधायकों को टिकट देकर अन्य नेताओं की नाराजगी और खिलाफत को कम करने का प्रयास किया है।
भाजपा ने यहां चौंकाया
- उदयपुर शहर सीट पर गुलाबचंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनने के बाद से इस सीट पर कई दावेदार हो गए। भाजपा ने पार्षद ताराचंद जैन को प्रत्याशी बनाया है। जैन पहले भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे। कटारिया से बीच में कुछ दूरियां बनी थी।
- धरियावद सीट पर भाजपा उप चुनाव हारी। तब कन्हैयालाल मीणा को टिकट नहीं दिया तो विरोध भी सामने आया था। इस बार पार्टी ने दिवंगत विधायक गौतमलाल मीणा के बेटे कन्हैयालाल को टिकट दिया है। ये परिवार वसुंधरा राजे के नजदीक है।
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