विधानसभा चुनाव के चलते अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले का शेड्यूल 400 साल के इतिहास में पहली बार बदला गया है। इस बार पुष्कर पशु मेला 14 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर अष्टमी को सात दिन में समाप्त हो जाएगा। पहले 14 नवम्बर से शुरू होकर 29 नवम्बर तक चलना था। मामले की जानकारी श्री पुष्कर पशु मेले की संभावित कार्यक्रमों की सूची जारी होने के बाद मिली।
पशुपालन विभाग ने श्रीपुष्कर पशु मेले में 14 से 20 नवंबर के बीच होने वाले कार्यक्रमों की संभावित सूची जारी कर दी है।
- 14 नवंबर को कार्तिक शुक्ल एकम के दिन झंडा चौकी कार्यक्रम
- 15 नवंबर को स्थापना कार्यक्रम होगा ।
- 16 नवंबर को ध्वजारोहण किया जाएगा ।
- 17 नवंबर को सफेद चिट्ठी।
- 18 नवंबर को रवन्ना कटना शुरू होगा। कार्तिक शुक्ल तृतीया को गीर प्रदर्शनी का उद्घाटन होगा।
दुग्ध प्रतियोगिता 16 से 18 नवंबर
पशुपालकों के लिए दुग्ध प्रतियोगिता 16 से 18 नवंबर तक आयोजित होगी। सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय व भैंस को चयनित कर पुरस्कृत किया जाएगा। कार्तिक शुक्ल तृतीया से कार्तिक शुक्ल अष्टमी तक प्रतियोगिताओं के आयोजन होंगे । इसमें 17 को गीर एवं संकर पशु प्रतियोगिता होगी। इसी दिन भैंस वंश की प्रतियोगिता होगी। 18 नवंबर को अश्ववंश प्रतियोगिता होगी। 19 नवंबर को ऊंट और नागौरी बैल प्रतियोगिता होगी। कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन पुरस्कार वितरण समारोह के साथ श्री पुष्कर पशु मेले का समापन होगा। जानकारी के अनुसार श्री पुष्कर पशु मेला सलाहकार समिति और जिला प्रशासन द्वारा चुनाव के चलते यह निर्णय लिया गया है।सामाजिक कार्यकर्ता ने उठाई आवाज
सामाजिक कार्यकर्ता अरुण पाराशर ने सलाहकार समिति और प्रशासन के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले का आयोजन 400 वर्षों से अधिक समय से किया जा रहा है। सलाहकार समिति ने इस बार विधानसभा चुनाव के चलते बिना किसी पूर्व सूचना, बिना आमजन से विचार-विमर्श के आनन-फानन में पशु मेले के आयोजन की तिथियों में परिवर्तन कर दिया। महज रस्म अदायगी की जा रही है, जिससे पशुपालक, छोटे-बड़े दुकानदारों में भारी रोष है।इसलिए मेले के कार्यक्रमों में कटौती
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक नवीन परिहार ने बताया कि जिला कलक्टर की अध्यक्षता में 13 अक्टूबर को मेला सलाहकार समिति की बैठक में मेले को अब 14 से 20 नवम्बर तक कराने का निर्णय हुआ है। विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर ऐसा किया गया है, ताकि मतदान प्रतिशत प्रभावित न हो। इस बार मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नहीं होंगे। हालांकि धार्मिक मेला 23 से 27 नवम्बर तक ही भरेगा।पाबंदियों की मार झेल रहा पशु मेला
ग्लेंडर रोग, नोटबंदी, कोरोना और लंपी रोग की मार झेल रहा पुष्कर पशु मेले में प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार पशुओं की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। मेले में सन 2001 में ऊंट वंश की संख्या 15,460 और अश्व वंश की संख्या 1923 थी, जो सन 2021 में गिर कर ऊंट वंश 2340 और अश्व वंश की संख्या 2672 ही रह गई। इस दौरान ग्लेंडर और कोरोना के चलते 2 वर्ष पशु मेला प्रभावित रहा। वहीं सन 2022 में लंपी रोग के चलते पुष्कर पशु मेले से पशुपालकों को खदेड़ा दिया गया था। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दौर में पुष्कर का ऐतिहासिक पशु मेला का केवल नाम रह जाएगा।... तो मेले की रंगत फीकी
देश और दुनिया से हजारों पर्यटक पुष्कर मेले में राजस्थान और भारत की संस्कृति के रंग देखने आते हैं। ऐसे में भारतीय और राजस्थानी परंपराओं को प्रदर्शित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा आयोजित किए जाते हैं। विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान में चुनाव के मद्देनजर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रद्द कर दिए गए। ऐसे में इस बार देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए मेले का मजा फीका रहेगा । जिसका सीधा प्रभाव पर्यटन व्यवसाय पर पड़ेगा।
अंग्रेजों ने भी समझा था महत्वऊंट श्रृंगारक अशोक टाक ने बताया कि इस बार उन्हें मेले से भारी उम्मीद है। लगातार पाबंदियों के चलते पशुओं की आवक में कमी दर्ज की जा रही थी। इस बार भारी संख्या में पशुओं की आवक का अनुमान लगाया जा रहा है । अशोक ने बताया कि सन 1919 में पुष्कर पशु मेले के महत्व को समझते हुए अजमेर मेवाड़ के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ले.कर्नल ग्रेस बी.ए पेटर्सन ने मेले के आयोजन से कई दिनों पूर्व इश्तिहार छपवा कर मुनादी की थी। तब का ऐतिहासिक दस्तावेज आज भी उनके पास सुरक्षित पड़ा है।
अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के चलते हर वर्ष दीपावली के बाद से कार्तिक पूर्णिमा तक पुष्कर तीर्थ में श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आवक लगातार जारी रहती है। पुराने समय में जब परिवहन के साधन इतने उन्नत नहीं हुआ करते थे तब पर्यटक और श्रद्धालु अपने साथ पशुओं को लाते थे। तब से पुष्कर पशुओं के क्रय विक्रय के बड़े बाजार के रूप में स्थापित हो गया । जिसे अंतराष्ट्रीय पुष्कर पशु एवं धार्मिक मेले के रूप में जाना जाने लगा।
जहांगीर ने पुष्कर की तीन यात्रा की
पुष्कर के स्थानीय तीर्थ पुरोहित और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण पाराशर की मानें तो ऐतिहासिक दस्तावेज में 1605 से लेकर 1615 तक जहांगीर की तीन पुष्कर यात्राओं का जिक्र मिलता है । इसी दौरान मुगल सेना में बेहतर नस्ल के घोड़े शामिल करने के लिए इसे व्यवस्थित रूप दिया गया था।
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