जयपुर शहर में स्थित करीब 180 साल पुराना सवाई मानसिंह टाउनहॉल (पुरानी विधानसभा) और लेखाकार कार्यालय (होमगार्ड कार्यालय) सरकार के पास ही रहेगा। इसे लेकर पूर्व राजपरिवार के सदस्यों की याचिकाएं आज राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।
जस्टिस नरेंद्र कुमार ढड्ढा की अदालत ने पद्मिनी देवी और अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यह दोनों संपत्तियां सरकार के पास ही रहेगी। अदालत ने 4 अगस्त को मामले में सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पहले जानें- पूर्व राजपरिवार का क्या था दावा
पूर्व राजपरिवार की ओर से दायर अपीलों में कहा गया था- टाउनहॉल और जलेब चौक परिसर स्थित लेखाकार कार्यालय को कोवेनेंट (अंग्रेजी शासन के दौरान बना प्रसंविदा का एक नियम) में निजी संपत्ति माना गया था। सरकार को उसके उपयोग के लिए लाइसेंस पर दिया गया था। इसके अनुसार जब तक सरकार इस संपत्ति को उपयोग में लेगी। तब तक वह इसका रखरखाव करेगी, लेकिन अब जिस उद्देश्य से यह संपत्तियां सरकार को दी गई थी। उस उद्देश्य से सरकार इनका उपयोग नहीं कर रही है। ऐसे में यह संपत्तियां वापस दिलाई जाएं।
अब जानें- राज्य सरकार का दावा
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश महर्षि ने कोर्ट में कहा कि कोवेनेंट में उपरोक्त संपत्तियां राज्य सरकार को देने के बारे में लिखा गया है। सरकार को यह संपत्ति कोवेनेंट से मिली है, न की लाइसेंस के जरिए। कोवेनेंट को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। जिस दिन कोवेनेंट लिखा गया था। उस समय वहां विधानसभा अस्तित्व में ही नहीं थी। ऐसे में सरकार उपरोक्त परिसरों का कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है।
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने 4 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए अदालत ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया।
सरकार बनाना चाहती है अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम
सवाई मानसिंह टाउनहॉल में पहले राजस्थान विधानसभा चलती थी। साल 2000 के बाद यहां से विधानसभा ज्योति नगर में नए भवन में शिफ्ट हो गई। इसके बाद राज परिवार ने 7 अगस्त 2019 को कोर्ट में दावा पेश कर सरकार से वो टाउनहॉल वापस देने को कहा। अधीनस्थ कोर्ट ने पूर्व राजपरिवार की अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना-पत्र को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ पूर्व राजपरिवार ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
अब राज्य सरकार यहां सौ करोड़ रुपए में अंतरराष्ट्रीय स्तर का म्यूजियम बनाना चाहती है। इस पर काम भी शुरू हो गया था। हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था। आज सरकार के पक्ष में फैसला आने के बाद अब वो स्टे भी हट गया है।
आजादी के बाद राज्य सरकार को कौन-कौन सी प्रमुख संपत्तियां दीं
जयपुर के पूर्व राजपरिवार ने विलय के बाद दो तरीके से अपनी संपत्तियां राज्य सरकार को हस्तांतरित की थी। एक तरीका स्थाई था, जिसे पूरी तरह से राज्य सरकार को सौंप दिया गया था। मतलब, मालिकाना हक राज्य सरकार को दे दिया। इनमें राजस्थान सरकार को स्थाई तौर पर कई संपत्तियां सौंपी गईं, जिनमें ये संपत्ति शामिल है...
- राजस्थान यूनिवर्सिटी के लिए 500 बीघा जमीन
- राजस्थान शासन सचिवालय
- एसएमएस अस्पताल
- महारानी और महाराजा कॉलेज
- सवाई मान सिंह स्टेडियम
दूसरा तरीका था कि मालिकाना हक तो पूर्व राजपरिवार का था, लेकिन राज्य सरकार को सरकारी कामकाज के लिए इस्तेमाल को दे दी गई। इसे लाइसेंस पर दी गई संपत्तियां (कोवेनेंट) माना गया, लेकिन इन संपत्तियों का मालिकाना हक राज्य सरकार को नहीं दिया गया था।
साल 1970 के बाद पूर्व राजपरिवार के ब्रिगेडियर भवानी सिंह उत्तराधिकारी बन गए। भवानी सिंह ने 1972 में महाराजा सवाई मानसिंह-द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट को कुछ संपत्तियां सौंप दीं। यह ट्रस्ट राज परिवार का ही है। ट्रस्ट में शामिल प्रमुख संपत्तियां...
- सवाई मानसिंह टाउनहॉल (पुरानी विधानसभा)
- पुराना पुलिस हेड क्वार्टर (अब हेरिटेज निगम कार्यालय)
- राजेंद्र हजारी गार्ड बिल्डिंग
- जलेब चौक परिसर स्थित संपत्तियां
- जनानी ड्योढ़ी
पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का विधानसभा में हुआ था भाषण
राजस्थान में पुरानी विधानसभा के साथ कई ऐतिहासिक बातें जुड़ी हुई हैं। साल 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन हुआ था। उस समय विधानसभा सवाई मानसिंह टाउनहॉल में चलती थी। विधानसभा मामलों के एक्सपर्ट और विधानसभा के पूर्व रिसर्च एंड रेफरेंस विंग के हेड कैलाश सैनी के मुताबिक राजस्थान विधानसभा में 1953 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण हुआ था। इसके बाद नवंबर 2001 में ज्योति नगर स्थित विधानसभा के नए भवन का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन आए थे।
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