भाजपा की परिवर्तन संकल्प यात्रा बुधवार को झालावाड़ पहुँचाने पर वसुंधरा राजे की अनुपस्तिथि ने सबको आश्चर्य में दाल दिया। अब तो ये सवाल भी उठाने लगा है कि 25 सितंबर को PM की सभा में वह आएंगी या नहीं? खास बात यह है कि प्रदेश में चुनावी माहौल होने के बावजूद राजे पिछले लगभग 10 दिनों से दिल्ली में हैं। सूत्र बताते हैं कि राजे वहां कुछ सामान विचारधारा वाले केंद्रीय नेताओं के संपर्क में है।
सिर्फ राजनीतिक नहीं है राजे का दिल्ली प्रवास
वसुंधरा राजे पिछले 10 दिनों से राजस्थान में नहीं हैं। वसुंधरा खेमे से जुड़े नेताओं का कहना है कि राजे की बहू निहारिका दिल्ली में फोर्टिस अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें कैंसर है, जो फोर्थ स्टेज पर पहुंच चुका है, इस कारण वह गंभीर रूप से बीमार हैं। राजे दिल्ली में ही अपनी बहू की देखरेख कर रही हैं।
वसुंधरा राजे पिछले विधानसभा चुनावों से पहले आयोजित होने वाली भाजपा की परिवर्तन यात्रा, सुराज संकल्प यात्रा सहित अन्य यात्राओं में हमेशा नेतृत्व करती दिखाई दीं। इस बार भी उन्होंने जब चार जगह से यात्राएं शुरू हुईं तो सेंट्रल लीडरशिप के साथ मंच साझा किया।
यात्रा के पहले दिन राजे सवाई माधोपुर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ थीं और 4 सितंबर को हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी में नितिन गडकरी के साथ भी दिखीं। लेकिन उसके बाद वह करीब 18 दिन से इन यात्राओं से दूर हैं। सियासी जानकार इसे राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे को किनारे करने की रणनीति मान रहे हैं।
कहीं 'परिवर्तन' के सिम्बल के रुप में ना दिख जाएं राजे
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार परिवर्तन यात्रा शुरू होने से पहले भी वसुंधरा राजे को इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था कि इन चुनावों में उनकी क्या भूमिका होगी। इसके बाद जब यात्रा शुरू हुई, तो वे जोर-शोर से शामिल हुईं। उन्होंने शुरुआत के दौरान दिल्ली से आए नेताओं से उनकी भूमिका लेकर फिर सवाल किए, लेकिन कहीं कोई संकेत या जवाब नहीं मिला। इस कारण से राजे नाराज चल रही हैं।
सूत्रों की मानें तो जब-जब बड़े नेता परिवर्तन संकल्प यात्रा में पहुंचे, वसुंधरा राजे को सूचना दी गई, जिससे कि वह यात्रा में शामिल हो सकें, लेकिन वह शामिल नहीं हुईं। राजे इसी नाराजगी के चलते अपने गृह जिले झालावाड़ तक में इस यात्रा में शरीक नहीं हुईं। पूरे हाड़ौती में अब राजे की नाराजगी का सन्देश पहुँच चुका है। विश्लेषकों का कहना है कि हाड़ौती में भाजपा को इसकी भरी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
इसी यात्रा में शामिल होने आए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी राजे की अनुपस्थिति पर सवाल पूछे गए। इससे पहले 15 सितंबर को नागौर की यात्रा के दौरान प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने भी पार्टी में गुटबाजी की अटकलों से इनकार करते हुए कहा था कि राजे जल्द नजर आएंगी।
क्या मोदी की जयपुर सभा में पहुंचेगी वसुंधरा राजे?
सूत्रों के अनुसार राजस्थान के चुनाव से सीधे जुड़े दिल्ली के आला नेताओं और वसुंधरा राजे के बीच एक संवादहीनता की स्थिति बन गई है। मिलना मिलाना तो दूर आलाकमान और राजे दोनों के बीच किसी तरह का कोई संवाद तक नहीं हो रहा है। राजे चाह रही हैं कि 25 सितंबर को या उससे पहले इन चुनावों में उनकी भूमिका को स्पष्ट कर दिया जाए।
इस कारण यह माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की सभा में वह शामिल होंगी, लेकिन 25 सितंबर से पहले वह राजस्थान नहीं आएंगी। 25 सितंबर को भाजपा की परिवर्तन संकल्प यात्रा का समापन जयपुर में होगा। जिसमें पीएम मोदी से लेकर तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी होगी।
बड़ी पीआर कंपनियों के साथ लगातार मंथन
अशोक गहलोत या सचिन पायलट जैसे दिग्गज कांग्रेस नेता भी अपनी ब्रांडिंग के लिए बड़ी पीआर कंपनियों का सहारा ले रहे हैं। उसी तरह भाजपा में भी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में राजस्थान के बड़े नेताओं के लिए ऐसी चर्चाएं चल रही हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि वसुंधरा राजे की ओर से भी उनके स्तर पर बड़ी पीआर कंपनियों से चर्चाएं की जा रही हैं। यहां तक की कुछ कैंपेन भी डिजाइन हो चुके हैं। यानि सिर्फ मौके का इन्तजार है। जरुरत पड़ते ही कैंपेन लांच हो जाएगा। महिला अत्याचार को लेकर भाजपा जिस तरह कांग्रेस सरकार को टारगेट कर रही है, उस बीच महिला मुख्यमंत्री को लेकर भी मुद्दा उठाया जा सकता है।
राजे को क्यों किया जा रहा साइड लाइन ?
राजस्थान की ढाई दशक की राजनीति के बाद ऐसा चुनाव देखने को मिल रहा है, जिसमें भाजपा की ओर से वसुंधरा राजे की प्रभावी भूमिका नजर नहीं आ रही। वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति में वर्ष 2003 से मास लीडर या मास अपील रखने वाली कद्दावर नेता हैं। वह केंद्र में मंत्री रहीं और राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बन इतिहास में नाम दर्ज कर लिया।
भाजपा ने पिछले चार चुनाव वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़े, लेकिन इस बार परिवर्तन संकल्प यात्रा के शुरू में ही पार्टी के नेताओं ने सीएम चेहरे के सवालों पर एक जैसा ही जवाब दिया कि नरेंद्र मोदी ही उनका चेहरा हैं। अब तक ये सवाल लगातार पूछे जा रहे हैं, लेकिन पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि राजस्थान के किसी भी नेता के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा।
भाजपा का कहना है कि चुनाव परिणाम पार्टी के पक्ष में आए तो मुख्यमंत्री चेहरा जीतने के बाद घोषित कर दिया जाएगा। मतलब साफ है कि बीजेपी वसुंधरा राजे को चेहरा नहीं बनाना चाह रही। अब ये मैसेज राजस्थान की जनता के बीच भी पहुंच गया है। वे भी वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर तरह तरह की चर्चाओं में लगे हुए हैं। असल में मोदी-शाह साड़ी बिसात अपने 2024 के बाद के राजनीतिक भविष्य को लेकर बिछा रहे हैं। वे किसी भी हालत में - चाहे वे 2024 में जीतें या हारें, मोदी-शाह पार्टी के अंदर और बाहर किसी भी तरह की कोई चुनौती नहीं चाहते।
20 सितंबर को जब यात्रा झालावाड़ पहुंची तो चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बनाए गए नारायण पंचारिया भी इसका गोलमाल जवाब देते हुए दिखे। उन्होंने कहा…'वसुंधरा राजे भाजपा की बड़ी नेता हैं और उनके पास बड़ी जिम्मेदारियां हैं। उनको झारखंड की जिम्मेदारी भी दे रखी है। अभी वे दिल्ली में हैं।'
क्या है राजे के समर्थकों का मानस ?
पार्टी नेताओं और लोगों का मानना था कि चुनाव में वसुंधरा राजे को कोई न कोई बड़ी भूमिका जरूर मिलेगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। इस कारण उनके समर्थकों का धैर्य टूट गया। वसुंधरा राजे के समर्थक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल की बयानबाजी और उनके सस्पेंड करने का प्रकरण भी पिछले दिनों जमकर छाया रहा।
मेघवाल का यह बयान देना कि वसुंधरा खेमे की अनदेखी की जा रही है, चर्चा में है, जो पार्टी को अखर गया। इस बयान से पहले भी राजे को नजरअंदाज करने की बातें पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं व जनता के बीच चर्चाओं में थी। अब तो राजे की भूमिका को लेकर सभी के मन में सवाल और तेज उठने लग गए हैं। यह भी तय है कि राजे के साथ अगर कोई भी अनुचित व्यवहार होने पर राजे समर्थक खुले में अपनी नाराजगी दिखाने में नहीं चूकेंगे।
राजे हार कर भी पार्टी का झंडा ऊपर रखती रही हैं।
वसुंधरा राजे प्रदेश में में दो बार मुख्यमंत्री रहीं और खुद के नेतृत्व में 4 चुनाव की रणनीति देख चुकी हैं। करीब ढाई दशक की परफॉर्मेंस को देखें, तो उनकी कप्तानी में लड़े जाने वाले चुनाव में भाजपा को फिफ्टी-फिफ्टी परिणाम हासिल हुआ। भाजपा दो बार जीती और दो बार हारी। हालांकि भाजपा हारी भी तो सम्मान जनक सीटें झोली में जरूर आईं। कांग्रेस की तुलना में भाजपा की हार बहुत बुरी नहीं हुई। कांग्रेस एक बार 56 पर तो एक बार 21 सीटों पर सिमट गई थी।
भाजपा की ओर से राजे के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव
2003 - जीत : भाजपा ने 39.20% वोट लेकर कांग्रेस को सत्ता से निकाला। भाजपा को 120, कांग्रेस को 56 सीटें मिलीं।
2008 - हार : कांग्रेस ने 36.82% वोट लिए और 96 सीटें जीतकर सरकार बनाई। भाजपा को 78 सीटें मिलीं।
2013 - जीत : मोदी लहर में भाजपा ने 46.05% वोट और 163 सीटें लेकर कांग्रेस को 21 सीटों पर समेटा।
2018 - हार : कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर वापसी की। भाजपा को 73 सीटें मिलीं।
वसुंधरा राजे को फिलहाल रीप्लेस करना संभव नहीं
राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि वसुंधरा राजे दो बार की सीएम है, 25 साल से प्रदेश भाजपा का बड़ा फेस रही हैं और इससे भी पहले से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं। राजस्थान के वर्तमान भाजपा के नेताओं को देखें, तो उनकी जगह फिलहाल कोई नहीं भर सकता हैं। उनकी भूमिका को केन्द्रीय नेतृत्व नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि राजे की भूमिका को लेकर भाजपा आलाकमान भी खुल कर स्पष्ट नहीं बोल पा रहा। भले ही अंदरखाने किसी और तरह की राजनीति चल रही हो।
प्रदेश भाजपा की पहली राजे विहीन राजनीतिक यात्रा
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अब तक राजस्थान में तीन यात्राएं निकाल चुकी हैं। वहीं, चार से पांच बार देव दर्शन यात्रा भी कर चुकी हैं। पहली बार राजे ने साल 2002 में यात्रा निकाली थी। इस यात्रा को परिवर्तन यात्रा का नाम दिया गया था। राजे की यह सबसे लंबी यात्रा थी। इस यात्रा में राजे ने एक साल में 200 विधानसभा सीटों को कवर किया था। वहीं, पहली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी थीं।
दूसरी यात्रा राजे ने साल 2013 में निकाली थी। इसे सुराज संकल्प यात्रा का नाम दिया गया था। यह यात्रा चारभुजा मंदिर से ही शुरू हुई थी। यह यात्रा प्रदेश की सभी 200 सीटों पर गई। दिसंबर-2013 में भाजपा ने राजस्थान में रिकॉर्ड बहुमत (163 सीट) हासिल किया। इसके बाद भाजपा ने लोकसभा चुनावों में 2014 में सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की।
तीसरी यात्रा राजे ने मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2018 में निकाली थीं। यह यात्रा भी चार भुजा मंदिर से ही शुरू हुई थी। इस यात्रा को गौरव यात्रा का नाम दिया गया था। 2018 के चुनावों में बीजेपी की हार हुई थी। वहीं, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी।
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