सवाई माधोपुर - हेमेंद्र शर्मा
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में जिला मुख्यालय से महज 14 किलोमिटर की दुरी पर अरावली र्पवत मालाओं से घिरे रणथम्भौर दुर्ग में त्रिनेत्र गणेश मंदिर स्थित है । जहाँ हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी त्रिनेत्र गणेश का तीन दिवसीय लक्खी मेला पूरे हर्सोल्लास के साथ भरेगा । 18 सितंबर से 20 सितंबर तक आयोजित होने वाले मेले में लाखों की तादाद में उमड़ने वाले श्रद्धा के सैलाब को देखते हुए जिला प्रशासन एंव मन्दिर ट्रस्ट द्वारा युद्ध स्तर पर बड़ी तैयारीयो को अंजाम दिया जा रहा है।
जन जन के आराध्य देव रणथंभौर के त्रिनेत्र गणेश का लक्खी मेला रणथंभौर में तीन दिवस तक आयोजित होगा ,18 सितंबर की सुबह से त्रिनेत्र गणेश के लक्खी मेले का विधिवत रूप से आगाज होगा । जिसके चलते रणथंभौर में बड़ी तैयारी को अंजाम दिया जा रहा है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्जनों भंडारे लगाए जाने की तैयारी की जा रही है। पग पग पर भंडारे लगाने के लिए भंडारा संचालक तैयारी में जुटे हुए हैं। लगभग 14 किलोमीटर का सफर श्रद्धालु पैदल तय करते हैं ।इसको देखते हुए जगह-जगह श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बेरिगेटिंग की जा रही है । मंदिर में सुगमता से दर्शन हो सके इसका भी खास ख्याल रखा जा रहा है।
रणथंभौर के त्रिनेत्र गणेश की महिमा को कौन नहीं जानता। इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। मंदिर रणथंभौर दुर्ग में स्थित है।रणथम्भौर के त्रिनेत्र गणेश को लेकर लोगों में कई प्रकार किदवन्तीयां प्रचलित है । कई लोगों का मानना है की भगवान गणेश की इस प्रतिमा कि उत्पत्ती अपने आप हुई थी । जमीन में से अपने आप इस प्रतिमा के निकलने से भी लोगों में इसके प्रति अथाह आस्था है तो कई लोगों का मानना है की भगवान शिव ने जब बाल्य अवस्था में गणेश जी का शिश काटा था तो वो शिश यहा आकर गिरा था । तब से ही यहा भगवान गणेश के शिश की पूजा की जाती है । साथ ही कुछ लोगों का कहना है की यह मंदिर पांडवों के समय से भी पहले का है । लोगों का कहना है की जब भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था उस समय भगवान गणेश अपना विवाह नही होने को लेकर नाराज हो गये थे और अपनी मुसा सैना के द्वारा भगवान कृष्ण की बारात के रास्ते में बाधाऐं उत्पन्न कर दी थी । तो कृष्ण भगवान ने रणथम्भौर की ही रिद्धी सिद्धी के साथ भगवान गणेश का विवाह सम्पन्न करवाया था और यही कारण है इस मंदिर में भगवाने गणेश रिद्धी सिद्धी के साथ विराजमान है ।
इस के अलावा अगर मंदिर महन्त की माने तों उनके अनुसार जब रणथम्भौर दुर्ग पर राजा हमीर का शासन था तक दिल्ली के सुल्तान अल्लाउद्धीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण कर दिया था तो उस समय राजा हमीर कई महिनों तक किले में ही रहा था और राजा के भण्डार खाली हो गये थे तो भगवाने गणेश ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिये थे और सुबह के समय राजा के सारे भण्डार भरे हुवे मिले थे उसी दौरान यहॉ रणथम्भौर की जमीन से अपने आप गणेश की प्रतिमा अवतरित हुई थी और तब से ही इसकी पूजा की जाती है । बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण दसवीं सदी में रणथंभौर के राजा हम्मीर ने करवाया था। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार पत्नी रिद्धि और सिद्धि दो पुत्र शुभ व लाभ के साथ विराजमान है। कहा जाता है कि 1299 में राजा हम्मीर और अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध चला। युद्ध शुरू हुआ तो हमने प्रजा और सेना की जरूरत को देखते हुए ढेर सारा खाद्यान्न और जरूरत की वस्तुओं को सुरक्षित रखवा लिया था ।पर युद्ध लंबे अरसे तक चलने की वजह से हर चीज की तंगी होने लगी। तब राजा हमीर के सपने में भगवान गणेश ने आकर आश्वासन दिया कि उनकी विपत्ति जल्द ही दूर हो जाएगी। तब हमीर द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की व्यवस्था के मध्य नजर चार दर्जन से अधिक रोडवेज बसे मेले हेतु लगाई गई है। आसपास के सभी जिलों से पर्याप्त पुलिस जाता बुलवाया गया है। रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश मेले में इस बार 8 से 10 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। समूची तैयारी को आज रात्रि तक अंतिम रूप प्रदान किया जा सकेगा।
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