हाईकोर्ट ने एक जेल आईजी को उनकी मृत्यु के 13 बाद रिटायरमेंट से एक दिन पहले 14 साल पुरानी घटना पर दी गई चार्जशीट को दुर्भावानापूर्ण मानते हुए चार्जशीट और सजा के तौर पर दो साल तक पांच फीसदी पेंशन रोकने के आदेश को निरस्त कर दिया है। जस्टिस अनूप ढंढ ने यह आदेश दिवंगत रामानुज शर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए। मामले में विशेष बात यह है कि सरकार के गैर कानूनी आदेश के खिलाफ लडते लडते याचिकाकर्ता रामानुज शर्मा की 2010 में मृत्यु हो गई थी बाद में उनकी पत्नी की भी मृत्यु हो गई थी। लेकिन,दिवंगत पिता को न्याय दिलाने के लिए उनकी ओर से उनकी चार बेटियों और एक बेटे ने अदालती लडाई लडी है।
दिवंगत रामानुज शर्मा जेल आईजी के पद से 30 जून,1991 को रिटायर हुए थे। इसके एक दिन पहले उन्हें 1977 के 14 साल पुराने एक मामले में चार्जशीट थमाकर अनुशानात्मक कार्रवाई शुरु कर दी थी। चार्जशीट के अनुसार जेल के दो गार्ड को 1976 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दोषी मानकर प्रोबेशन का लाभ दे दिया था। इस आदेश को डीजे कोर्ट ने भी बहाल रखा था। इस दौरान दोनों ही गार्ड निलंबित चल रहे थे। प्रार्थी ने दोनों का निलंबन समाप्त कर दोनों को नौकरी से बर्खास्त करने के संबंध में निर्णय करने के लिए मामला सक्षम अधिकारी को भेज दिया था। सरकार का कहना था कि बतौर जेल आईजी प्रार्थी ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर निलंबन समाप्त कर गलत किया था। आठ साल तक प्रार्थी के खिलाफ अनुशानात्मक कार्यवाही पर सुनवाई के बाद 1999 में उनकी पेंशन से दो साल तक पांच फीसदी राशि काटने की सजा से दंडित किया था।
एडवोकेट अरिहंत समदडिया ने अदालत को बताया कि प्रार्थी ने तो 1977 में ही दोनों गार्ड की बर्खास्तगी पर फैसला करने के लिए मामला सक्षम अधिकारी को भेज दिया था। पूरा मामला तभी से सक्षम अधिकारियों की जानकारी में था। यदि दोनों गार्ड के खिलाफ वास्तव में ही कोई कार्रवाई करनी थी तो उनके बीस साल बाद 1997 में दोनों की दो वेतन बढोतरी रोकने जैसी मामूली सजा क्यों दी गई।
ऐसे में जब दोनों गार्ड के खिलाफ बर्खास्तगी जैसी कोई कार्यवाही ही नहीं की गई तो दिवंगत रामानुज शर्मा को रिटायरमेंट से एक दिन पहले चार्जशीट देना,आठ साल तक मामले में सुनवाई करना और दो साल तक पांच फीसदी पेंशन रोकने की सजा का आदेश सहित पूरी कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण् और गैर कानूनी है। कोर्ट ने चार्जशीट और दिवंगत आईजी रामानुज शर्मा की पेंशन से दो साल तक पांच फीसदी राशि काटने के आदेश को रदध करते हुए काटी गई राशि उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को 9 फीसदी ब्याज सहित उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को लौटाने के आदेश दिए हैं।
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