आपने देखा होगा कि पेंगुइन हो या फिर विशालकाय पक्षी ऑस्ट्रिच हो ये सब या तो बहुत
तेज दौड़ते हैं या फिर तैरते हैं पर उड़ते नहीं हैं। यहां तक कि मुर्गा भी छोटी मोटी
उछलकूद की करता है परंतु लंबी उड़ान कभी नहीं भरता। धरती पर ऐसे अनेक पक्षी हैं जो
अपने उड़ने की क्षमता खो चुके हैं और धरती पर ही चलते फिरते हैं। चूंकि धरती शिकारियों
से भर गई है तो इनमें से कितने ही पक्षी लुप्त हो गए हैं और अन्य कई लुप्त होने के
कगार पर हैं जिनको यदि संरक्षण नहीं मिला तो निकट भविष्य में उनका नामोनिशान नहीं रहेगा।
यह जानना रोचक हो सकता है कि वे क्या कारण हैं जिनकी वजह से ये पक्षी अपनी उड़ने की
क्षमता खो बैठे हैं और अब विलुप्त होने के आसपास आ गए हैं। यहां सवाल उठता है कि वह क्या कारण हुआ जिसकी वजह से ये पक्षी उड़ना ही नहीं भूल गए
बल्कि उड़ने की एक अति विशिष्ट कला को खो भी दिया ? इस सब बातों की गहराई में जाने
आवश्यकता है। एक अति प्राचीन कहावत है कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है। मुर्गे को
उसका मालिक दाना डालता हैं ताकि वह हष्टपुष्ट रहे और महंगे भाव में बिके। अब मुर्गे
ने भोजन की तलाश में लंबी दूरियां नापना बंद कर दिया जिसके फलस्वरूप उसकी उड़ने की
मांसपेशियां कमजोर होते होते अक्षम हो गई। इन्ही हालातों में शुतुरमुर्ग, पेंगुइन,
गैलापागोस, वेका आदि ने लंबी दूरी उड़ने की क्षमता पूरी तरह खो दी और एक तरह से मनुष्य
के हाथों अपने आप को गिरवी रख दिया।
आज से कोई 1000 साल पहले न्यूजीलैंड में सिर्फ पक्षी ही रहते थे। इस भूमि पर न तो कोई
शिकारी जानवर रहता था और ना ही मनुष्य। यहां की कुछ पक्षी प्रजातियां 200 किलो वजन
तक की होती थी। यहां के कुछ गिने चुने पक्षी ही उड़ते थे बाकी सभी धरती पर चलते थे।
जब यहां मनुष्य आया तो उसने तथा उसके साथ आए जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली आदि ने आकर
इन जानवरों में से अधिकतर का सफाया कर दिया क्योंकि उड़ नहीं पाने के कारण ये सब बड़े
आसान शिकार थे।
स्वाभाविक कुतुहल होता है कि ये पक्षी उड़ने की क्षमता क्यों खो देते हैं? पक्षी भोजन
की तलाश तथा सुरक्षा के लिए उड़ते हैं। जब इनको धरती पर ही पर्याप्त भोजन मिलने लगता
है तो ये उड़ना बंद कर देते हैं। समय के साथ इनके पंखों की बनावट बदलने लगती है। पंख
छोटे, मोटे और कम फैलाव वाले होते जाते हैं। पंखों को लगातार चलाने वाली मांसपेशियां
कमजोर पड़ने लगती हैं और जल्द ही थकने लगती हैं। अब ये सब जीव मनुष्य और दूसरे हमलावरों
के रहमों करम पर जिंदा रहते हैं और यदि मुर्गे की तरह पालतू और उपयोगी नहीं बन सके
तो समय के साथ विलुप्त हो जाते हैं।
यहां यही बात मनुष्य के साथ लागू होती है। आप यदि मुफ्त के ज्ञान और फोरवर्डेड वीडियो
या संदेशों पर अंध विश्वास करते रहते हैं, निष्क्रिय जीवनशैली अपनाते हैं, तजुर्बा
हासिल करने का उत्साह त्याग देते हैं तो तेजी से बदलती दुनिया में आप भी कमजोर पंखों
वाले पक्षी जैसे हो जाते हैं।
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