यदि थोड़ा ठहर कर सोचें तो यही लगेगा कि इक्कीसवीं सदी का भारत तेज रफ्तार जिंदगी की दौड़ से थका हुआ पगला सा गया। अभी देश के कई हिस्सों में आईफ्लु फैला हुआ है। मैने देखा है कि मेरे पास आने वाले या फिर व्हाट्सएप पर सलाह लेने वाले तकरीबन शत प्रतिशत लोग आईफ्लु में स्टेरॉइड और एंटीबायोटिक के मिश्रण वाली आई ड्रॉप धनाधन अपनी आंखों में डाल कर तुरंत आईफ्लु को समूल नष्ट करना चाहते हैं। किसी को भी एक मामूली सी बीमारी को पांच सात दिन झेलने का समय नहीं है परंतु परंतु तुरंत फायदे का लालच एक काफी नुकसान की संभावनाओं से भरा प्रयास है और एक तरह से शरीर के साथ किया जाने वाला अपराध है।

क्यों यह देश हर समय एंटीबायोटिक और स्टेरॉइड पर अंधा विश्वास करता है? क्यों हर क्षैत्र में अंधभक्ति का साम्राज्य फैल रहा है? जैसा कि नाम से इंगित हो रहा है आईफ्लु एक वायरल रोग है जिसमें एक सामान्य स्थिति में एंटीबायोटिक और स्टेरॉइड का कोई उपयोग नहीं होना चाहिए। इस तरह के दुरुपयोग के फलस्वरूप एंटीबायोटिक बैक्टीरिया रेसिस्टेंट पैदा कर कभी भी कोई खतरनाक " सुपर बग " पैदा कर सकती है और स्टेरॉइड आंख की स्थानीय रोग प्रतिरोधक क्षमता का नुकसान पहुंचा सकते हैं जिसके कारण आंखों को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है।

आईफ्लु 99 प्रतिशत लोगों में एक सप्ताह के समय के उपरांत अपने आप ठीक हो जाता है तो लोग यह मानने लगे  हैं कि उनके द्वारा उपयोग में लाई गई दवा बहुत प्रभावशाली है परंतु वास्तव में ऐसा है नहीं। भारत के लोगों को जरा ठहर कर तर्क और विज्ञान के आधार वाला जीवन जीना चाहिए।