नगर निगम जयपुर हेरिटेज की निलंबित मेयर मुनेश गुर्जर पर अब बर्खास्तगी की तलवार लटक गई है। राज्य सरकार ने तीन दिन पहले यानी 11 अगस्त को मुनेश गुर्जर को दो अलग-अलग आरोप पत्र जारी करके उस पर जवाब मांगा है। इसका जवाब उन्हें 17 अगस्त तक सरकार को पेश करना है। अगर मुनेश के जवाब से सरकार संतुष्ट नहीं होती है तो उन्हें न्यायिक जांच के बाद पद से बर्खास्त किया जा सकता है। न्यायिक जांच में दोषी पाए जाने पर बर्खास्त कर सकती है।
इन आरोप पत्रों पर मांगा स्पष्टीकरण
- 500 बिट्स (कर्मचारी) मामले में चली टेंडर फाइल में उपापन (स्टोर-परचेज) समिति ने दरों के नेगोशिएशन की अभिशंषा (सिफारिश) की थी। इस कारण फाइल तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त के पास लंबित पड़ी थी। उस फाइल को आपने तलब किया। बिना वजह उसको अपने पास लंबित रखा। इसके कारण फाइल पर नियमानुसार कार्यवाही नहीं की जा सकी। विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस मामले में प्रथमदृष्टया आपकी भूमिका संदिग्ध है। यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।
- इस मामले में आपने अतिरिक्त आयुक्त को अपने चैंबर में बुलाया। फिर आपकी उपस्थिति में अन्य पार्षदों ने मिलकर कुत्ता, चोर जैसे अभद्र शब्दों से उन्हें अपमानित किया। आपने किसी पार्षद को रोकने का प्रयास नहीं किया। इस प्रकार आपकी सहमति से सभी पार्षदों ने एकराय होकर अतिरिक्त आयुक्त के खिलाफ ऐसा अभद्र व्यवहार किया। लोक सेवक के कार्य में व्यवधान डाला।
- एक आवेदक ने एसीबी में शिकायत दर्ज करवाई कि उसने नगर निगम जयपुर हेरिटेज में पट्टे के लिए फाइल लगाई। पट्टा देने की एवज में आपके पति और आप द्वारा रिश्वत मांगी गई। रिश्वत नहीं देने पर आपने उसकी फाइल को बिना कारण अपने घर पर रोके रखा। समय पर पट्टा जारी नहीं होने दिया। इसके चलते आवेदक को पट्टे के लिए रिश्वत देने पर मजबूर होना पड़ा। यह कृत्य पद के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।
- आपके द्वारा कई पट्टों की फाइलें अपने घर पर लाकर रखी गई। बिना कारण उन्हें लंबित रखा। लंबित रखे जाने के दौरान आपके पति और दलालों ने आवेदकों से लाखों रुपए की रिश्वत मांगी। रिश्वत के लिए अलग-अलग तरीके से दबाव बनाए गए। इसी क्रम में एसीबी ने 4 अगस्त को आपके निजी निवास पर ट्रैप की कार्रवाई करते हुए आपके पति सुशील गुर्जर और एक अन्य व्यक्ति अनिल दुबे को 2 लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा। इस पूरे घटनाक्रम में प्रथमदृष्टया आपकी संलिप्तता प्रतीत होती है।
सौम्या गुर्जर के समय करवानी पड़ी थी न्यायिक जांच
सौम्या गुर्जर को जब नगर निगम जयपुर ग्रेटर की मेयर पद से बर्खास्त किया था, उस समय भी सरकार ने पद से बर्खास्त करने से पहले न्यायिक जांच करवाई थी। सौम्या ने सरकार के बर्खास्तगी के आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपना पक्ष नहीं सुनने का आरोप लगाया था। इस याचिका के बाद हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश जारी करके सौम्या का पक्ष सुनने और उसके बाद ही कार्रवाई करने के आदेश दिए थे।मेयर के घर से मिले थे 40 लाख रुपए
एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की टीम ने 4 अगस्त को नगर निगम जयपुर हेरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर के घर छापा मारा था। टीम ने मेयर के पति सुशील गुर्जर और दो दलालों को गिरफ्तार किया था। सुशील पर पट्टे बनाने की एवज में 2 लाख रुपए की घूस मांगने का आरोप है। मेयर के घर सर्च में 40 लाख रुपए नकद मिले थे। इन नोटों को गिनने के लिए मशीन मंगवानी पड़ी थी। इसके साथ ही एक दलाल के घर भी 8 लाख नकद बरामद हुए थे।ब्यूरो के अतिरिक्त महानिदेशक हेमंत प्रियदर्शी (अतिरिक्त चार्ज महानिदेशक) ने बताया था कि एसीबी की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट (एसआईयू) जयपुर इकाई को शिकायत दी गई कि पट्टा जारी करने की एवज में सुशील गुर्जर की ओर से दलाल नारायण सिंह और अनिल दुबे के मार्फत 2 लाख रुपए मांगे जा रहे थे। शक के घेरे में आने के बाद मेयर मुनेश गुर्जर को निलंबित कर दिया गया था।
हाईकोर्ट में लगा रखी है याचिका
मुनेश ने अपने निलंबन के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगा रखी है। याचिका में मुनेश ने कहा है कि सरकार ने उनके निलंबन से पूर्व कोई जांच नहीं की। वहीं, गलत तथ्यों के आधार पर आनन-फानन में उन्हें निलंबित किया गया है जबकि एसीबी ने FIR में याचिकाकर्ता को आरोपी भी नहीं माना है।सरकार ने दायर कर रखी है कैविएट
वहीं, दूसरी ओर इस मामले में राज्य सरकार ने पहले से ही कैविएट दायर कर रखी है। ऐसे में हाईकोर्ट मुनेश की याचिका पर कोई भी आदेश देने से पहले सरकार का पक्ष सुनेगा। सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल मेहता ने यह कैविएट दायर की है।
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