यह धरती का इकलौता जीव है जो अपने शरीर को शून्य से 3 डिग्री सेल्सियस कम कर सकता है। इस तापमान पर पानी भी पत्थर जैसे बर्फ में बदल जाता है पर यह जीव फिर भी जिंदा रहता है जबकि किसी भी अन्य जीव का खून जम कर उसे तुरंत मृत्यु में धकेल देगा। इतना ही नहीं, है तीन सप्ताह बाद यह अपने शरीर को कमरे के तापमान जितना गर्म करता है जिसे यह 12-15 घंटे बनाए रखता है और फिर वापिस शून्य से नीचे ले जाता है। ऐसा यह साल में सात महीने तक करता रहता है और अपने बिल में पड़ा रह कर भयानक ठंड का मुकाबला करता है। इस जीव का नाम है आर्कटिक गिलहरी जो बर्फ से ढके साइबेरिया, अलास्का और कनाडा की हडसन खाड़ी पाई जाती है। यहां के तकरीबन सब जीव इन महीनों शीत निंद्रा में जाते हैं परंतु  किसी के शरीर का तापमान -3 डिग्री नहीं जाता। वैज्ञानिक अभी तक समझ नहीं पाए हैं कि यह गिलहरी इस शारीरिक तापमान पर जिंदा कैसे रहती है।

भयानक सर्दी के बाद अप्रैल या मई के प्रारंभ में यहां बसंत दस्तक देता है तो सारी नर गिलहरियां बिल से बाहर आकर आपस में प्रतिद्वंदिता करती हैं। जो नर विजेता बन कर सामने आता है वोही सब मादाओं से संसर्ग कर पिता बनता है। हारे हुए नर चुपचाप सहन करते हैं। बच्चे सब अंधे जन्म लेते हैं जिसकी आंखें बीस दिन बाद खुलती हैं। थोड़े से ताकतवर होते ही नर अपनी कॉलोनी छोड़ कर कहीं दूर चले जाते हैं जबकि मादा वहीं अपनी मां के पास ही बिल बना कर रहने लग जाती हैं। इस तरह से एक बस्ती में 50-60 कोई 20 मीटर लंबे बिल होते हैं जो आपस में जुड़े हुए भी होते हैं ताकि यदि बाज या फिर भालू हमला करे तो गिलहरी अपने आप को बचा सके।

ये मुख्यतया शाकाहारी होती हैं पर मौका लगने पर अंडे, कीड़े और मांस के टुकड़ों को भी गटक लेती हैं। इनके मुंह में एक पाउच होता है जिसमें गिलहरी भोजन इकट्ठा कर लेती है जिसे वह अपने बिल में जाकर आराम से खाती है। इसी प्रकार अपनी शीत निद्रा के लिए भी यह अपने बिल में काफी सारी पत्तियां, कई तरह के फल, तिनके, मांस के टुकड़े आदि इकट्ठा कर लेती है जो तकरीबन सात महीने तक काम आते रहते हैं। कुछ संकेत इंगित करते हैं कि यह गिलहरी अति प्राचीन बर्फ युग में भी अस्तित्व में थी।