मणिपुर में वृहद भारत के लोग नहीं जाते हैं और यदि चंद लोग पहुंच भी जाएं तो राजधानी इंफाल और उसके आसपास के इलाके तक जा कर वापिस आ जाते हैं। मणिपुर के 47 प्रतिशत लोग पहाड़ों और जंगलों में रहते है जोकि मणिपुर के कुल क्षैत्र का 90 प्रतिशत हिस्सा है। पहाड़ों और जंगलों का जीवन प्रथम दृष्टि में तो बड़ा रमणीक एवम् रोमांटिक लगता है पर पहाड़ों पर रहनेवाले ही जान सकते हैं कि कितना कठिन और खतरनाक हो सकता है। कहने को तो इस 90 प्रतिशत हिस्से पर मुख्यतया कुकी और कुछ नागा लोग रहते हैं पर इस नब्बे प्रतिशत भूभाग में सुरक्षित बसने लायक जमीन कितनी है इस पर कोई बात ही नहीं करना चाहता। राजधानी इंफाल और उसके आसपास की समतल भूमि पर मैती लोगों की बसावट है जहां पर तकरीबन शत प्रतिशत ये लोग ही रहते हैं।

मणिपुर विधानसभा में 60 विधायक होते हैं जिनमें से 19 विधान सभा क्षैत्र ट्राइबल के लिए आरक्षित हैं बाकी 40 विधायकों में से 39 विधायक मैती लोग हैं। इस तरह से शासन और प्रशासन दोनों पर सदा से ही मैती लोगों का अधिकार रहा है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तकरीबन सारे ही मैती लोग ही हैं। मैती, कुकी और नागा लोगों के बीच पारस्परिक संवाद या संपर्क न के बराबर होने का फायदा दूर दिल्ली में बैठे लोग उठाने लगे। धर्म, जो प्राथमिक तौर पर एक राजनीतिक शस्त्र से अधिक कुछ नहीं है, का सहारा लेकर सत्ता पर नियंत्रण का खेल खेला जाने लगा। पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोग उन्मादी होने को उतारू रहते हैं इसलिए सदैव किसी न किसी प्रायोजित हिंसा के काष्ठ पुतले बनाए जाते हैं। हिंसा के योजनाकार सदैव परदे के पीछे से मानवीय दरिंदगी को हवा देते हैं। घरों में सुरक्षित बैठे कुछ तथाकथित सभ्रांत लोग सोशल मीडिया के माध्यम से नफरत और विभक्ति को लगातार हवा देते रहते हैं। बांटो और राज करो नामक सिद्धांत को अंग्रेजों के मत्थे फोड़ कर ये लोग रात दिन देश की आम जनता को टुकड़ों में बांटने के खेल में सहर्ष शामिल हो रहे हैं।

झगड़े की असली जड़ राजनीतिक उद्देश्य की येन केन प्रकारण पूर्ति करना है पर उद्देश्य क्या है इसके बारे में इसके कर्ता स्वयं अनभिज्ञ लग रहे हैं क्योंकि जब महिलाएं जलील की जाती हैं, बच्चे जला दिए जाते है, जवानों का खून बहता है तो फिर ऐसे लोगों में एकता, राष्ट्रीयता और भाईचारा कभी भी विकसित नहीं हो सकता। मणिपुर अब पहले जैसा मणिपुर कभी भी नहीं होगा क्योंकि इस योजना के तहत करवाए गए नर संहार और महिला उत्पीडन में जो आधिकारिक तौर पर 140 लोग मरे हैं उनमें 80 कुकी थे, 40 पुलिस और सेना के जवान थे और अन्य मिश्रित लोग थे जिनमें कुछ मैती भी थे।

एक सवाल उठता है कि वे कौनसे कारण थे जिनके तहत एक दक्षिण भारतीय को मणिपुर उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया जो वहां की सामाजिक व्यवस्थाओं और जीवन की परिस्थिति से नावाकिफ थे। उन्ही के निर्देश से संविधान की व्यवस्था को बनाए रखने के आडंबर के पीछे ट्राइबल की परिभाषा पर विवेचना के निर्देश जारी हुए। इसी बात से भयभीत ऑल मणिपुर ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन के जुलूस पर हुई हिंसा आज तक आग की तरह धधक रही है। कुकी और मैती की यह दुश्मनी अब कभी समाप्त नहीं होगी। जिन लोगों ने ये दंगे करवाए हैं वे आज प्रभावशाली भूमिका में होते हुए सबकुछ परदे के पीछे रख सकते हैं पर भारत को एक राष्ट्र के रूप में कभी न कभी एक कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसा कब होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर हिंसा की घटनाएं स्मृति पटल से अदृश्य कभी भी नहीं होती हैं। उदाहरण के तौर पर 75 साल पहले के भारत विभाजन की हिंसा आज भी हिंदू मुसलमान के बीच एक न पाटी जाने वाली खाई बनी हुई है जो कभी भी नहीं भरेगी।

कुकी और नागा कभी भी हिंदू नहीं थे। वे जंगल पुत्र है, आदिवासी हैं, उनका कोई धर्म नहीं होता था। अधिक से अधिक कोई स्थानीय देवता होते थे। हिंदू पुजारी और संत सदा धनी और सत्ता पर बैठे लोगों के आसपास मंडराते रहे हैं। वे कब कच्ची बस्ती, जंगलों के बासिंदों, खतरनाक रास्तों, घर परिवार से दूर अपने धर्म प्रसार हेतु गए हैं? बात अति कड़वी हो सकती है पर धार्मिक व्यक्ति होना एक धंधा हो गया , सब सुविधाभोगी हो गए और मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन वाले सिद्धांत पर जीवन जीने लगे। ऐसे में ईसाई मिशनरी आए और कुकी को पढ़ाया, उसे आत्म सम्मान से अवगत करवाया और ईसाई बनाया। अब आप सिर्फ सत्ता के दम पर स्थितियां बदल नहीं सकते। अत्यधिक आक्रामक रुख सत्ताधारियों को सत्ता से उखाड़ फेंकता है। प्रजातंत्र में मतदाता की अंगुली एक शस्त्र है जिसका प्रहार दिग्गजों को धराशायी करने में सक्षम है।

जो कुछ मणिपुर में हुआ है और हो रहा है वैसा बहुत जगह होने वाला है। जो लोग इस माहौल को हवा दे रहे हैं वे स्वयं और अपने परिवार को तो आगे नहीं कर रहे हैं पर चंद भावुक, बेरोजगार युवकों या फिर अति महत्वाकांक्षी बाहुबलियों को आगे कर सारा खेल प्रायोजित कर रहे हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल या फिर विदेशों में शिक्षित कर गुरुकुल और मदरसों का गुणगान कर रहे हैं। ये सब कारण स्पष्ट इंगित कर रहे है कि जो कुछ आज मणिपुर में घटित हो रहा है वह स्थानीय घटना नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र पर फैलने की संभावनाओं को समेटे एक काला बादल है जो सिर्फ पूर्वाग्रहमुक्त नजरों से ही दिखाई पड़ सकता है। मणिपुर के बारे में बाकी सारा देश अंधकार में तीर चला रहा है इसलिए यहां एक सर्वदलीय सत्यता और सुलह आयोग गठित होना चाहिए ताकि सारे तथ्य देश के सामने आएं। यदि ऐसा न किया गया तो घाव का कैंसर में तब्दील होना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।