चित्तौड़गढ़ - गोपाल चतुर्वेदी रिपोर्ट

सरकार प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए लगातार प्रयासरत है जिसमें सरकार की ओर से कई नवाचार भी किया जा रहे हैं। हाल ही में सरकार ने कई सरकारी विद्यालयों को अंग्रेजी महात्मा गांधी विद्यालयों में परिवर्तित कर क्रमोन्नत भी किया है जिससे कि प्रदेश में बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधर सके। दूसरी ओर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र मे संचालित चिकसी सहित कई अन्य सरकारी विद्यालयों के संस्था प्रधान और अध्यापक अपने कार्य के प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं।  जिसमें कई संस्था प्रधान और अध्यापक मुख्यालय पर बैठकों के बहाने सवेरे से ही स्कूल जाने से परहेज कर रहे है। स्कूल मे अधीनस्थ अध्यापक भी उनके अनुपस्थित रहने के कारण स्पष्ट नही कर पा रहे है और विभाग के उच्च अधिकारीयों को भी बैठक के बारे मे जानकारी नही होने की बात सामने आई है l 

जानकारी के अनुसार प्रदेश में लगातार शिक्षक के स्तर को सुधारने और बालक बालिकाओं को शिक्षा के लिए विद्यालयों से जोड़ने के साथ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयास और नवाचार कर रही है लेकिन चित्तौड़गढ़ मैं शिक्षा विभाग के अधीनस्थ सरकारी विद्यालयों में कार्य करने वाले विद्यालयों के संस्था प्रधान और अध्यापक सरकार की मंशा को पलीता लगाने में लगे हैं। सामने आया है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में संचालित हो रहे विद्यालयों में कार्यरत संस्था प्रधान और अध्यापक पूरी लगन से अपने मुख्य अध्यापन कार्यों को करने से परहेज कर रहे हैं। किसी ने किसी बहाने से विद्यालय से दूरी बनाने में बहाने बाजी कर रहे हैं। हमारी टीम ने कई विद्यालयों का आवश्यक निरीक्षण किया तो पाया की कई विद्यालयों से संस्था प्रधान मुख्यालय पर बैठकों के बहाने स्कूल से  गोत मार रहे हैं। उस बैठक की जानकारी विभाग के  उच्च अधिकारियों और अधीनस्थ अध्यापकों और कर्मचारियों को भी नहीं होती है। जब अधीनस्थ अध्यापकों से बात की जाती है तो उनका घिसा पिटा जवाब मुख्यालय पर बैठक होने के कारण संस्था प्रधान आज स्कूल नहीं आएंगे निकल कर सामने आता है।   पर जब इसके बारे में हमारे टीम ने विभाग के उच्च अधिकारियों से बात की तो उनकी तरफ से किसी भी तरह की बैठक होने से इनकार कर दिया। 

प्रश्न यह उठता है कि मोटी पगार पाने वाले शिक्षकों को आखिर अपने मूल शिक्षण कार्य से लापरवाही करने की क्या कारण है। जबकि सरकार ने सबसे अधिक सुविधा सरकारी अध्यापकों पर शिक्षा विभाग के अन्य कार्मिकों को दी हुई है।  तो फिर मूल शिक्षण कार्य के प्रति लापरवाही के क्या कारण है। दूसरी ओर अभिभावक इस भरोसे पर अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में शिक्षा लेने के लिए भेजते हैं की सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सरकार के प्रयासों से सुधार रहा है लेकिन अभिभावकों को यह जानकारी नहीं है कि विद्यालयों से अध्यापक ही उनके बच्चों को शिक्षा देने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।  जिसके लिए शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों को लापरवाह संस्था प्रधानों और शिक्षकों के प्रति कड़ा रुख अपनाना होगा वरना सरकारी शिक्षण संस्थानों में लगातार गिर रहे प्रवेश मैं और भी गिरावट होगी इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।