जयपुर के सिटी पैलेस से तीज माता की शाही सवारी निकाली गई। तीज माता को सोने की ज्वेलरी से सजाकर चांदी के रथ में नगर भ्रमण कराया गया। तीज की शाही सवारी में शामिल होने के लिए स्थानीय लोगों के साथ बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक भी परकोटे में पहुंचे।
तीज माता की त्रिपोलिया गेट पर पूजा-अर्चना के साथ ही 296 साल से चली आ रही परंपरा बदल गई। पूर्व राजपरिवार के सदस्य अब तक जनानी ड्योढ़ी से निकलने वाली तीज की सवारी के दर्शन और आरती चीनी की बुर्ज से करते थे। परंपरा बदलने का कारण चीनी की बुर्ज पर अब ज्यादा भीड़भाड़ होना बताया जा रहा है। इसी साल गणगौर की सवारी के भी उन्होंने त्रिपोलिया गेट से ही दर्शन किए थे।
बैंड बाजा, सजे हुए ऊंट-घोड़े और शाही लवाजमे के साथ तीज माता चांदी की पालकी पर सवार होकर त्रिपोलिया गेट से रवाना हुईं, जो छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार, चौगान स्टेडियम होते हुए तालकटोरा स्टेडियम पहुंचकर सम्पन्न हुई। इस तीज फेस्टिवल कार्यक्रम के दौरान प्रदेश की अलग-अलग जगहों से आए 150 से ज्यादा कलाकारों ने प्रदेश की लोक कला और संस्कृति की छटा बिखेरी।
राजस्थान के प्रसिद्ध कालबेलिया, गैर नृत्य, बहरूपिया, मशक वादन, कठपुतली नृत्य, कच्छी घोड़ी और अलग-अलग बैंड ग्रुप व अनेक लोक कलाकारों के समूह तीज की शाही सवारी में शामिल होकर प्रस्तुतियां दीं। पर्यटन विभाग की तरफ से विदेशी मेहमानों के लिए त्रिपोलिया गेट के सामने हिंद होटल की छत पर बैठने की व्यवस्था की गई।
400 किलो चांदी की पालकी में विराजमान हुईं तीज माता
महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1727 में तीज की सवारी भव्य लवाजमे के साथ निकालना शुरू किया था। तीज माता की भव्य मूर्ति यानी देवी पार्वती स्थायी रूप से सिटी पैलेस में ही रहती हैं।
साल में 2 दिन तीज माता की सवारी निकलती है। सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर तीज माता कहा जाता है और सावन शुल्क पक्ष चतुर्थी को उन्हें ‘बूढ़ी’ (पुरानी या वरिष्ठ) तीज माता माना जाता है। चांदी की पालकी में तीज माता विराजमान होती हैं। पालकी का वजन करीब 400 किलो है।
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