कोटा ब्यूरो रिपोर्ट। 

सांगोद से कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर ने नहरों में पानी नहीं छोड़ने पर सीएडी विभाग के अधिकारियों को निशाने पर लिया है।अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत में विधायक भरत सिंह ने कहा काफी लंबे समय से इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों ने अपने हित को ध्यान में रखते हुए किसानों का अनहित करते हुए खरीफ़ के मौसम में लगभग पानी देना बंद कर दिया। पानी देते ही नहीं। कुछ ना कुछ बहाना बना देते हैं। और सरकारें उसको गंभीरता से नहीं लेती। सरकार आती,जाती रहती है।मगर जो व्यवस्था चलाने वाले हैं। वो अपनी सुविधा को देखते हैं।

राजस्थान प्रदेश जो बूंद बूंद सिंचाई योजना पर निर्भर है। वहां यह शर्मनाक घटनाएं है। चंबल का पानी बिगाड़े, उसको व्यर्थ बहने दें उसका उपयोग नहीं हो। नहरों में पानी नहीं देने से किसानों को अपने बलबूते बिजली खर्च करनी पड़ रही है। जमीन में से पानी निकाल रहे है।

चंबल नदी में दायीं व बायीं नहर है। दोनो नहरें कोटा बैराज से शुरू होती है। दोनों नहरों में अभी पानी नहीं छोड़ा जा रहा। चंबल नदी में जो भी पानी आता है वो व्यर्थ बह रहा है। जबकि चंबल में पर्याप्त पानी है। फिर नहरों में पानी छोड़ने में क्या दिक्कत है। नहरों से जुड़े तालाबों का भविष्य खतरे में है। ये सब तालाब कचरा पात्र बनेंगे। नहर भी गटर बन चुकी है। सारा कचरा नहर में डाला जा रहा है।पानी इसलिए छोड़ा जाता है की गंदगी बहकर आगे चली जाए। नहर व तालाब गटर बन चुके है सारा कचरा इसमें डाला जा रहा है इसे कोई गम्भीरता से नहीं ले रहा।

भरत सिंह ने कहा कि इस व्यवस्था व पानी को बिगाड़ने में प्रमुख भूमिका सीएडी के जयपुर में बैठे उच्च अधिकारी व इस विभाग के मंत्रालय की है। सीएडी की भ्रष्ट व्यवस्था नहीं चाहती कि बारिश के मौसम में नहरों में पानी छोड़ा जावे। मंत्री स्तर का कोई मंत्री व मुख्य अभियंता कभी भी कोटा में सीएडी की बैठकों में भाग नहीं लेते हैं। सीएडी विभाग के करोड़ों के कार्य के ठेके मुख्य अभियंता जयपुर कार्यालय से होते हैं। भ्रष्टाचार होता है। मगर देखने वाला कोई नहीं है। यह मुद्दा 'काडा' की बैठकों में भी उठ चुका है। राजस्थान में सीएडी विभाग का मंत्री कौन है? कोटा के किसान नहीं जानते हैं। 5 साल में कभी सीएडी मंत्री ने कोटा में सीएडी की बैठक नहीं ली।

साल 2012 में सीएडी कोटा का संपूर्ण क्षेत्र अधिकार प्रमुख शासन सचिव ने अपने अधीन लेकर 'काडा' की कोटा में होने वाली बैठकों का अधिकार छीन लिए हैं। कोटा में होने वाली काडा की बैठक मात्र औपचारिकता बन गई है यह किसानों का अपमान है।