जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

रेवेन्यू बोर्ड, अजमेर के दो सदस्यों व एक अधिवक्ता को जिस फोन रिकॉर्डिंग के आधार पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने गिरफ्तार कर कोर्ट में चालान पेश किया था। उस रिकॉर्डिंग को हाई कोर्ट ने मंगलवार को नष्ट करने के आदेश दिए हैं।

जस्टिस बिरेन्द्र कुमार की एकलपीठ ने यह रिर्पोटेबल जजमेंट शशिकांत जोशी की याचिका पर दिया। राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर बेंच ने कहा- बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी भी व्यक्ति का फोन सर्विलांस पर लेकर रिकॉर्ड करना निजता का हनन है।

हाई कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता का फोन सर्विलांस पर लेने के गृह सचिव के तीनों आदेशों को रद्द कर दिया। वहीं एसीबी को निर्देश दिए कि वह इस मामले में की गई रिकॉर्डिंग, मैसेज और उसकी समस्त कॉपी को नष्ट करें। इसके साथ ही याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले में इस रिकॉर्डिंग के इस्तेमाल करने पर भी रोक लगा दी है।

पब्लिक सुरक्षा व पब्लिक इमरजेंसी में ही फोन रख सकते हैं सर्विलांस पर

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम-1885 के तहत किसी भी व्यक्ति का फोन सर्विलांस पर तभी लिया जा सकता है, जब पब्लिक सुरक्षा व पब्लिक इमरजेंसी से जुड़ा मामला हो।

हर किसी मामले में फोन सर्विलांस पर रखना व्यक्ति की निजता का हनन माना जाएगा। यह संविधान के आर्टिकल 19 और 21 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ भी राइट टू प्राइवेसी को मूल अधिकार मान चुकी है। ऐसे में बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए फोन सर्विलांस पर रखना वैध नहीं माना जा सकता।

यह था पूरा मामला
एसीबी ने 10 अप्रैल 2021 को रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में पोस्टेड सीनियर RAS (राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस) बीएल मेहरड़ा, RAS सुनील शर्मा और दलाल वकील शशिकांत जोशी को गिरफ्तार किया था। इन पर आरोप था कि दोनों सदस्य रेवेन्यू बोर्ड में फैसले देने व फैसले बदलने की एवज में घूस लेते हैं।

आरोप के अनुसार, दलाल शशिकांत जोशी इसमें लिप्त था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता मोहित खंडेलवाल ने बताया कि एसीबी ने रिकॉर्डिंग के आधार पर सबसे पहले सुनील शर्मा के घर पर रेड मारी। वहां से उन्हें रिश्वत की कोई राशि बरामद नहीं हुई।

एसीबी ने रिकॉर्डिंग के आधार पर सुनील शर्मा व शशिकांत जोशी को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद बीएल मेहरड़ा को भी रिकॉर्डिंग के आधार पर गिरफ्तार किया।

फोन रिकॉर्डिंग की यह है कानूनी प्रक्रिया

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि किसी भी व्यक्ति का फोन सर्विलांस पर रखने की एक पूरी कानूनी प्रक्रिया है। इसे अपनाकर ही किसी का फोन सर्विलांस पर रखा जा सकता है।

  • फोन सर्विलांस पर रखने का आदेश गृह विभाग का प्रमुख सचिव ही दे सकता है।
  • जब भी ऐसा आदेश दिया जाता है तो इसे 7 दिन के अंदर रिव्यू कमेटी को भेजा जाएगा।
  • रिव्यू कमेटी में मुख्य सचिव, विधि सचिव व सरकार द्वारा नामित अन्य सचिव होगा।
  • कमेटी तथ्यों के आधार पर अपना फैसला लेगी।
  • पब्लिक सेफ्टी व पब्लिक इमरजेंसी में ही फोन सर्विलांस पर लिया जा सकता है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में फोन सर्विलांस पर लेने का आदेश प्रमुख सचिव ने नहीं देकर उनके अधीन गृह सचिव ने ही दे दिया। वहीं इसे रिव्यू कमेटी को भी नहीं भेजा गया। साथ ही जिस आधार पर फोन सर्विलांस पर लिया गया। वह पब्लिक सेफ्टी व पब्लिक इमरजेंसी से जुड़ा हुआ नहीं है।