अलवर ब्यूरो रिपोर्ट। 

भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के तत्वावधान में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के समर्थन में गोविंदगढ़ की मालपुर मोड़ पर 119 दिन से लगातार धरना प्रदर्शन जारी है।

भाकियू (चढूनी) के जिला प्रधान विरेंद्र मोर ने बताया कि क्षेत्र में लंबे समय से ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाने और ईआरसीपी की डीपीआर में संशोधन करवाकर छूटे नदी नालों को जुड़वाने की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे है।

आपको बता दे कि ईआरसीपी प्रोजेक्ट 2017 में तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया था। जिसमे चंबल, कालीसिंध, पार्वती और कुन्नू जैसी नदियों का पानी अलवर समेत पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में लाना था। जिससे पेयजल, सिंचाई और उद्योगों के लिए पानी की आपूर्ति की जा सके।

प्रदर्शन पर बैठे लोगों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट में अलवर जिले के किसानों के साथ अनदेखी की गई है। ईआरसीपी की डीपीआर के तहत अलवर जिले का सिर्फ जयसमंद बांध जोड़ा गया है जिसमें अलवर शहर की पेयजल आपूर्ति और डीएमआईसी इंडस्ट्रीज को पानी उपलब्ध करवाया जाएगा जो को किसानों के साथ धोखा है। चंबल के पानी पर पहला हक किसान का है। लेकिन सरकारें हमारे हिस्से का पानी औद्योगिक क्षेत्र को देना चाह रही है।

प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार भी पिछले 7 साल से ईआरसीपी पर कोई काम नहीं कर रही है। 2017 से 2023 तक ईआरसीपी प्रोजेक्ट को 3 चरणों में पूरा होना था। 2018 में जयपुर और अजमेर की सभा में ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की बात कही थी। लेकिन केंद्र सरकार के ही जलशक्ति मंत्री और केंद्र सरकार लोकसभा में ईआरसीपी प्रोजेक्ट को रद्द करने की बात कह चुके है जो को किसानों के साथ धोखा है। पूर्वी राजस्थान के किसानों चंबल के पानी से ही खेती किसानी को नहरी पानी मिलने की संभावना है। लेकिन अगर अब राज्य और केंद्र सरकार ईआरसीपी प्रोजेक्ट पर इस तरह की राजनीति करेंगे तो क्षेत्र के किसानों को जमीन छोड़ कर पलायन करना पड़ेगा।