लोग त्वचा को उज्वल और स्वस्थ रखने के लिए तरह तरह के सौंदर्य प्रसाधन उपयोग में लेते हैं जबकि समाधान उनकी अपनी बड़ी आंत से ही निकलना होता है। सौंदर्य प्रसाधन का कार्य मात्र स्वच्छ करना और चंद मिनिट्स की सुगंध पैदा करना होता हैं परंतु विज्ञापनों के प्रचार प्रसार ने हजारों करोड़ का व्यापार स्थापित कर दिया। आप को हमेशा याद रखने चाहिए कि आपके शरीर में एक धुरी होती है जिसे उदर त्वचा धुरी ( गट स्किन एक्सिस ) कहा जाता है और यही धुरी आपकी त्वचा ही नहीं बल्कि तकरीबन पूरे स्वास्थ्य को बना कर रखती है। यह धुरी हमारे मित्र सूक्ष्म जीवी जीवन द्वारा स्थापित होती है जिनमें बैक्टीरिया, फंगस, वायरस एवम् कुछ अन्य सूक्ष्म जीवन शामिल होते हैं। इस तरह से आप देखते हैं कि जिन जीवों तथा जीवाश्मों से आप हर समय डरते रहते हैं वे ही आपके जीवन, स्वास्थ्य और सौंदर्य के कर्ता धर्ता एवम रक्षक होते हैं। शरीर में इन जीवों की अनुपस्थिति मृत्यु का कारण भी बन सकती है।
हमारे शरीर में कीटाणुओं का एक पूर्ण विकसित तंत्र होता है जिसे माइक्रोबायोम कहा जाता
है जिसमें मुख्यतया मित्र श्रेणी के बैक्टीरिया होते हैं पर कुछ फंगस, वायरस और परजीवी
भी होते हैं। ये सब प्रमुखता से बड़ी आंत में रहते हैं जिसे उदर माइक्रोबायम ( गट माइक्रोबायोम
) कहा जाता है। उदर की तरह त्वचा माइक्रोबायोम भी होता है। उदर एवम् त्वचा के ये बैक्टीरिया
एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं और एक दूसरे से प्रभावित भी होते रहते हैं। इनके बीच
एक तरह का रसायनिक सूचनातंत्र होता है जो एक दूसरे के साथ संतुलन बनाए रखता है। इस
संतुलन में यदि कोई बिगाड़ आ जाए तो त्वचा में कई तरह के रोग पैदा हो जाते हैं जिनमें
एटोपिक डर्मेटाइटिस, एच. सप्पूरटीवा जैसे रोग शामिल हैं जो जीवन के लंबे समय तक परेशानी
का कारण बन सकते हैं।
स्वस्थ रहने के लिए इन बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवों में सिंबायोसिस यानि सहजीविता
का होना आवश्यक है। इसके विपरीत स्थिति को डिस्बियोसिस कहा जाता है जिसमें अच्छे बैक्टीरिया
की कमी हो जाती है या नुकसानदेह बैक्टीरिया की संख्या में तीव्र वृद्धि हो जाती है
या फिर अच्छे बैक्टीरिया की विविधता समाप्त हो जाती है। ऐसा होने पर हमारी आंतों से
नुकसानदेह और प्रज्वलन ( इंफ्लेमेशन ) पैदा करनेवाले पदार्थ रक्त में प्रविष्ट हो जाते
हैं और रोगों को जन्म देने लगते हैं। हमारे शरीर में बैक्टीरिया के फायदों की जानकारी
बहुत कम लोगों को है। अधिकतर लोग बैक्टीरिया को दुश्मन मानते हैं जबकि ये बैक्टीरिया
ही हमारे जीवन को बचाकर रखते हैं। ध्यान रहे 95 प्रतिशत बैक्टीरिया हमें जिंदा रखने
में प्रयासरत रहते हैं जबकि सिर्फ 5 प्रतिशत बैक्टीरिया हमारे लिए घातक होते हैं। हमारे
शरीर के वजन का तीन प्रतिशत भाग बैक्टीरिया से ही बना होता है। इन बैक्टीरिया को सहजीवी
कहा जाता है।
हमारी आंतरिक सहजीविता को नुकसान पहुंचाने में एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग बड़ा काम
करता है। बिना आवश्यकता एंटीबायोटिक्स का उपयोग दीर्घकाल में कई व्याधियों को जन्म
दे सकता है क्योंकि ये एंटीबायोटिक उदर माइक्रोबायोम को नष्ट कर देती हैं। इसके अलावा
सुबह खाली पेट लेनेवाली गैस (?) की दवा जैसे पैंटोप्राजोल, ओमप्राजोल, राबेप्रजोले
आदि सभी नुकसानदेह दवाएं हैं। कब्ज नाशक दवाएं, डायबिटीज की दवा मेटफार्मिन भी उच्च
मात्रा में लेने से नुकसान कर सकती है। सिजेरियन डिलीवरी से जन्मे बच्चों में उदर माइक्रोबायोम
कम विकसित होता है क्योंकि नवजात त्वरित गति से बाहर आता है। इसी तरह से जिन बच्चों
को मां के दूध की बजाय फॉर्मूला दूध पिलाया जाता है इनमें भी माइक्रोबायोम कम
विकसित होता है। जो बच्चे जन्म से ही अलग और सिर्फ अपने ही घर में बंद से रहते हैं
उनका माइक्रोबायोम तंत्र कमजोर विकसित होता है।
विटामिन डी की कमी भी इस तंत्र के विकास को रोकती है क्योंकि इस विटामिन की शरीर
के रोग प्रतिरोधक तंत्र और माइक्रोबायोम को स्थायित्व देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती
है। इन सबके अलावा बीड़ी, सिगरेट पीने या फिर निकोटिन का किसी भी तरीके से लंबे समय
तक उपयोग भी माइक्रोबायोम को नुकसान पहुंचाते हैं। फास्ट फूड और तनावपूर्ण जीवन भी
इस तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। ये सब शोध और अध्ययन बताते हैं कि चेहरे पर चमक सौंदर्य
प्रसाधनों से नहीं आती बल्कि आंत और त्वचा के संतुलन आती है जो भोजन और जीवनशैली से
ही बनाया जा सकता है।
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