जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

सुप्रीम कोर्ट ने 104वें संविधान संशोधन अधिनियम-2019 के जरिए लोकसभा व राज्य की विधानसभाओं में जातिगत सदस्यों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2030 तक बढ़ाए जाने पर केंद्र सरकार व भारतीय निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है। मामले की आगामी सुनवाई संवैधानिक पीठ में करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार व निर्वाचन आयोग से पूछा है कि क्यों न याचिका के लंबित रहते हुए संविधान संशोधन-104 की क्रियान्विति और लोकसभा में सांसदों व राज्य की विधानसभा में विधायकों को दिए जा रहे जातिगत आरक्षण पर रोक लगा दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सिंह और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने यह आदेश शुक्रवार को समता आंदोलन समिति व दस अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

कोर्ट से संविधान संशोधन-104 को निरस्त करने की गुहार, केंद्र व निर्वाचन आयोग से जवाब तलब

याचिका: चुनाव में 20 से 30 साल के लिए एक सीट एक वर्ग के लिए रखना गलत
प्रार्थियों की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन, अधिवक्ता शोभित तिवाड़ी व पाराशर नारायण शर्मा ने कहा-लोकसभा व राज्यसभा में जातिगत सदस्यों के लिए बार-बार आरक्षण की अवधि बढ़ाना संविधान के मूलभूत ढांचे व उसकी विशेषताओं के विपरीत है। लोकसभा या विधानसभा की सीटों को आगामी 20-30 साल के लिए किसी एक वर्ग के लिए आरक्षित करना गलत है और यह एक पीढ़ी को खत्म करने के समान है।

ऐसे में वैकल्पिक तौर पर जब तक यह जातिगत आरक्षण पूरी तरह से बंद नहीं हो जाता तब तक सांसद व विधायकों काे भी आरक्षण पंचायत चुनाव की तर्ज पर रोटेशन से दिया जा सकता है। यह आरक्षण बंद नहीं होने तक राजनीतिक पार्टियां टिकटों के आधार पर भी आरक्षण को जारी रख सकती हैं। ऐसी प्रक्रिया से भी आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व का पर्याप्त मौका मिलेगा।