देखा जाता है कि घर में छोटे बच्चे को पहली खांसी आने के साथ ही घर का कोई व्यक्ति  दौड़ कर मेडिकल स्टोर से खांसी की दवा ले आता है और अपनी पीठ थपथपाने लगता है मानो उसने कोई बहुत समझदारी का कार्य कर बच्चे को तकलीफ से बचा लिया है। मनुष्य जाति के बहुमत को पुरानी अवधारणाओं से चिपके रहने की आदत होती है क्योंकि उसे बचपन से ही बताया जाता है कि अब तो जमाना बहुत खराब हो चला है, जो कुछ बेहतर था वह तो भूतकाल में ही था। लोग बेवजह मानते हैं कि भविष्य अंधकारमय है और वर्तमान में हालात बहुत खराब हैं। इन विचारों के चलते खांसी को एक रोग मान लिया गया है जबकि यह शरीर की एक रक्षात्मक क्रिया है।

बच्चे के श्वसन तंत्र में एलर्जी, इन्फेक्शन या कोई वस्तु के अटक जाने से शरीर उस क्षैत्र में आई सूजन को कम करने के लिए खांसी पैदा करता है ताकि बैक्टीरिया, वायरस, वस्तु या एलर्जी पैदा करने वाले तत्व शरीर से बाहर चले जाएं। शरीर अपने प्रयासों में कोई दो सप्ताह में सफल हो जाता है। आपने अनुभव किया होगा कि बच्चों की खांसी अधिकतर मामलों में दो सप्ताह बाद समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे खांसी अधिसंख्य मामलों में एलर्जी या वायरस संक्रमण से होती है और समय से अपने आप ठीक हो जाती है परंतु स्वास्थ्य उद्योग के महारथियों ने इस साधारण सी घटना को अरबों रुपए के व्यापार में बदल डाला और घातक दवाओं से बाजार भर दिया।

अब आपकी मानसिकता ऐसी बन गई है कि बच्चे को यदि कोई चिकित्सक खांसी की दवा नहीं लिखे तो आप उसके इलाज पर भरोसा नहीं करते हैं। अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियंस, अमेरिकन पीडियाट्रिक अकादमी और यूएस एफडीए आदि सभी बच्चों को खांसी की दवा देने के मामले में चेतावनी देते रहते हैं फिर भी भारत जैसे देशों में खरबों रुपए की दवाएं बिक रहीं हैं जिनके उपयोग का कोई औचित्य नहीं है और कई मामलों में नुकसान देह भी हो सकती हैं।

खांसी अपने आप में कोई रोग नहीं है। यह रोग का लक्षण है। रोग को पहचाने और उसका इलाज करवाने के लिए चिकत्सक की सलाह ली जाती है। ध्यान रखिए, रोग मिटा तो खांसी मिटी। दवा या सलाह रोग के बारे में होनी चाहिए। जहां तक संभव हो खांसी को रोकने के लिए साधारण उपाय ही करने चाहिएं। इनमें पानी का पर्याप्त सेवन, गले को तर रखना, भाप या ह्यूमिडीफायर का उपयोग, कमरे के तापमान को सामान्य रखना, कम बोलना आदि कदम काफी राहत देते हैं। कुछ बच्चों को शहद या मामूली गरम पानी में शहद से आराम मिलता है परंतु 12  महीने तक की उम्र के बच्चे को शहद कभी नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें बोटलिज्म नाम की गंभीर बीमारी हो सकती है।

यदि उपरोक्त तरीकों के बाद भी खांसी बच्चे को अत्यधिक परेशान करती हो तो डेक्सट्रो मेथोर्फेन नामक साल्ट को पानी के साथ रात को दिया जा सकता है ताकि बच्चा अपनी नींद पूरी कर सके। विभिन्न अनुसंधान बताते हैं कि घरेलू नुस्खे और खांसी की दवा दोनों द्वारा प्रदत्त आराम में घरेलू नुस्खे ज्यादा प्रभावकारी होते हैं इसलिए बच्चों के शरीर को रसायनों से मत भरिए। रोग का निदान आवश्यक है जिसके लिए किसी अनुभवी चिकित्सक की सलाह लीजिए पर वहां खांसी की दवा लिखवाने के बारे में दबाव मत डालिए। याद रखिए, चिकित्सा विज्ञान भी है और व्यापार भी।