जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

प्रदेश के आर्ट एंड कल्चर को इंटरनेशनल पहचान देने के लिए बनाए गए राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में चर्चित प्रस्तुतियां होने लगी है। यहां वीकेंड थिएटर की शुरुआत हो चुकी है। इस मौके पर बाॅलीवुड के जाने--माने एक्टर और रंगकर्मी अमोल पालेकर ऑडियंस से रूबरू हुए। उन्होंने अपनी जर्नी भी इस सेंटर में बयां करते हुए थिएटर को खास बताया। पालेकर ने कहा कि रंगमंच की दुनिया वो दुनिया है, जहां इमेनिजेशन की बड़ी भूमिका है। यह फिल्म से अलग है। रंगमंच अपनी इमेज को शब्दों से उभार देता है। यहां बड़े-बड़े सेट यानी राजमहल बनाने की जरूरत नहीं होती है। शब्दों से ही कलाकार राजमहल सजा देता है। रंगमंच तकनीक से भी आगे की चीज है। लाइव परफॉर्मेंस देखेन में आनंद आता है।

थिएटर हर दिन नई ऊर्जा देता है। ये हमेशा चलते रहना चाहिए। इसमें तकनीक को ज्यादा नहीं लाना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने अपने रंगमंच के दिनों को याद किया और बताया किस तरह वे थिएटर में आए। वे आनंदवर्धन के साथ चर्चा कर रहे थे। कार्यक्रम संयोजक दोलत वैध ने बताया कि इस दौरान आरआईसी में वरिष्ठ थिएटर डायरेक्टर राम गोपाल बजाज का निर्देशित नाटक लैला-मजनू की परफॉर्मेंस खास रही, जिसमें कलाकारों ने मंच पर जीवंत आर्ट को पेश किया। यह मोहब्बत की एक ऐसी शायरी है, जिसमें लैला मजनूं के अफसाने को फिर से एक रिवायती शायरी और ड्रामे के अन्दाज में बयां किया गया। जिसमें 7वीं सदी के शुरुआती सालों में मिडिल ईस्ट की खानाबदोश बेडू कौम की आबो-हवा में पल रहे दो जवान बाशिन्दों की जिन्दगी का मुख्तसर पता चलता है।

नाटक की शुरुआत में औरतों का एक कोरस इस अफसाने को दर्शकों के सामने पेश करता है। वो इस दास्तान की सरसरी बैकग्राउण्ड बताता है कि कैसे इन दो जवान दिलों में प्यार पनपा जिसके जुनून और शिद्दत ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कैस पर किसी बुरी रूह का साया है। नाटक में आगे लैला के वाल्देन को यह बात करते हुए पाते हैं कि कैस और लैला के बीच पनप रही मुहब्बत ने उनके खानदान को शर्म के अलावा और कुछ नहीं दिया इसलिए लैला को अब घर पर ही नजरबन्द रखा जाना चाहिए और उसे एक बावकार खानदान के किसी बावकार इंसान की बीबी बनाने की तैयारी की जानी चाहिए।

गौरतलब है वीकेंड थिएटर की शुरुआत में 7-9 जुलाई तक यहां राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली रंगमण्डल की तीन नाट्य प्रस्तुतियों का मंचन किया जाएगा। शनिवार को शाम 7 बजे अजय कुमार निर्देशित नाटक माई री कासे कंहू का मंचन होगा। नाटक के बाद प्रतिदिन अमोल पालेकर दर्शकों से रूबरू होंगे। 9 जुलाई को नाट्य निर्देशक भानु भारती और राघवेंद्र रावत स्वर्गीय मोहन महर्षि राजस्थान के आधुनिक रंगमंच के प्रणेता के व्यक्तित्व व रंगमंच पर चर्चा करेंगें।