जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

जयपुर में झोटवाड़ा फ्लाइओवर के पास बेशकीमती जमीन का नामांतरण गलत तरीके से खोलने का मामला सामने आने के बाद जयपुर कलेक्ट्रेट में हड़कंप मच गया है। ट्राइटन मॉल के पास स्थित 18 बीघा 7 बिस्वा जमीन का नामांतरण तहसीदार कोर्ट के निर्णय के बाद खोला गया। जबकि ये जमीन स्टार्च फैक्ट्री के नाम थी और तहसीलदार कोर्ट ने नामांतरण व्यक्ति विशेष के नाम कर दिया। मामला विवादित होने के बाद जयपुर कलेक्टर ने तहसीलदार को प्रथम दृश्या दोषी मानते हुए उसके निलंबित करने के लिए रेवेन्यू डिपार्टमेंट को पत्र लिखा है, जिसके बाद रेवेन्यू डिपार्टमेंट ने तहसीलदार संदीप बैरड़ को पद से निलंबित कर दिया। इससे पहले इस मामले में प्रशासन ने आईएलआर प्रमोद कुमार शर्मा को निलंबित किया है। इस मामले में निलंबित तहसीलदार संदीप बैराड का कहना है कि उन्होंने पक्ष और विपक्ष के सभी वाद-विवाद सुनने के बाद नियमानुसार फैसला सुनाया था। फैसले के बाद रेवेन्यू के नियमानुसार ही नामांतरण खोला गया है।

सूत्रों और दस्तावेजों के मुताबिक ये जमीन साल 1943 में स्टार्च फैक्ट्री के लिए आवंटित हुई थी। तब इस फैक्ट्री में रतन सिंह पुत्र स्व. लक्ष्मण सिंह और भरत सिंह पार्टनर थे। जब जमीन का नामांतरण खोला गया तो उस दौरान स्टार्च फैक्ट्री का नाम निर्धारित नहीं था तो सरकार ने नामांतरण स्टार्च फैक्ट्री कब्जा सेठ भरतसिंह के नाम से खोल दिया।

वारिसों ने अपने नाम करवा ली जमीन
भरतसिंह की 1964 में मृत्यु होने के बाद उनके वारिसान जयसिंह, वीरेन्द्र सिंह, मीना देवी, संतोष जैन, बेला गुप्ता, संजीव कुमार और रितू कुमार ने जमीन पर अपना हक जमाते हुए इस मामले का नामांतरण खोलने के लिए जयपुर तहसीलदार कोर्ट में एक याचिका लगाई। इस कोर्ट में विपक्षी पक्ष रतन सिंह ने भी आपत्ति जताई। साल 2022 में दर्ज हुए विवाद की सुनवाई पूरी होने के बाद तहसीलदार ने वारिसान के पक्ष में फैसला करते हुए जमीन का नामांतरण वारिसान के पक्ष में खोलने के आदेश जारी कर दिए। इसी आदेशों के आधार पर वारिसो के नाम विरासत के आधार पर नामांतरण खोला दिया। इससे सरकार को मिलने वाली स्टाम्प ड्यूटी भी बच गई।

शिकायत के बाद हरकत में आया प्रशासन
नामांतरण खुलने के बाद वारिसान ने इस जमीन को 20 करोड़ रुपए में एक पार्टी को बेच दिया। जमीन के बेचान के बाद जब रजिस्ट्री के लिए दस्तावेज पंजीयन एवं मुद्रांक कार्यालय में गए तो वहां से डिप्टी रजिस्ट्रार ने पंजीयन के लिए डीआईजी स्टाम्प से मार्ग दर्शन मांगा। क्योंकि 50 लाख रुपए से ज्यादा की सम्पत्ति होने पर जब मौका निरीक्षण किया तो वहां जमीन पर फैक्ट्री मिली और बेचान के दस्तावेज में रीको की आरक्षित दरें लगाई गई। जबकि प्रशासन ने मार्ग दर्शन मांगा की इसमें डीएलसी दर से रजिस्ट्री की जाए या रीको की आरक्षित दर से। इस दौरान विपक्ष पार्टी ने रजिस्ट्रार ऑफिस में आपत्ति लगा दी।

350 करोड़ रुपए से ज्यादा है कीमत

इस जमीन की वर्तमान बाजार कीमत 350 करोड़ रुपए से ज्यादा मानी जा रही है। लेकिन जब नामांतरण खुलने के बाद जमीन का बेचान किया गया तो इसकी विक्रय मूल्य 20 करोड़ रुपए दर्शाया गया, जो रीको की आरक्षित दर के बराबर है। इस तरह सरकार को इस जमीन के बेचान से मिलने वाली स्टाम्प ड्यूटी में भी भारी नुकसान हो रहा था।