जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

राजमेस के तहत बन रहे मेडिकल कॉलेज में गड़बड़ियों का खेल जारी है। विभिन्न मेडिकल कॉलेज में की जाने वाली फर्नीचर खरीद में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भरतपुर, भीलवाड़ा, चूरू, धौलपुर के लिए खरीदे गए एक ही तरह के आइटम में लाखों रुपए का अंतर है। उदाहरण के तौर पर भीलवाड़ा ने जहां प्रिंसिपल टेबल 1,20,000 रुपए की खरीदी वहीं चूरू ने यह 3,30,000 रुपए में खरीदी। इसी तरह दर्जनों आइटम की खरीद हुई, जिनमें हर मेडिकल कॉलेज की कीमतों का अंतर काफी है।

उधर, भरतपुर सहित करौली, दौसा व अलवर मेडिकल कॉलेज के लिए फर्नीचर की खरीद में नियमों को दरकिनार कर चहेती फर्म को लाभ पहुंचाने का मामला भी सुर्खियों में है। पत्थर काटने वाली एक फर्म को फर्नीचर सप्लाई के पात्र बनाने के लिए पहले तो नियम-शर्तों से टर्नओवर और अनुभव की बाध्यता हटाई गई, फिर उसे 1.76 करोड़ के कुर्सी-टेबल सप्लाई का ठेका दे दिया।

जब उसका टर्नओवर 1.76 करोड़ हो गया तो दूसरी खरीद में नियम संशोधित कर एक करोड़ के वर्कऑर्डर की शर्त शामिल कर दी। यानी उसी कंपनी को वापस पात्र बनाकर 1.20 करोड़ का ठेका और सौंप दिया गया। इसके अलावा करौली, दौसा और अलवर मेडिकल कॉलेज के लिए फर्नीचर खरीद की शर्तें भी गोलमोल रखी गई हैं। वहीं झालावाड़ मेडिकल कॉलेज में निविदा आइटम के निर्माता के साथ ही वितरक, डिस्ट्रीब्यूटर व दुकानदारों को भी पात्र कर दिया गया। किस मेडिकल कॉलेज में कौनसा आयटम किस कीमत में खरीदा गया.


स्पेशिफिकेशन एक जैसी, रेेट व गुणवत्ता अलग
सभी मेडिकल कॉलेज के लिए एक ही तरह के आइटम की खरीद के लिए सेम स्पेशिफिकेशन हो, लेकिन सप्लाई हुआ माल, गुणवत्ता और कीमतों में भारी अंतर है। ऐसे में सवाल यह है कि जब मेडिकल कॉलेज राजमेस के तहत बन रहे हैं ताे एक जैसी व्यवस्था क्यों नहीं है। जो भी कंपनी से माल लिया जाने वाला होता है, परचेज कमेटी सदस्यों को वहां की विजिट करनी होती है, वहीं नहीं की गई।

झालावाड़ में यह गड़बड़ियां
झालवाड़ मेडिकल कॉलेज ने निविदा की शर्त संख्या 4 मे संशोधन कर एक ओर एमएसएमई ईकाइयों को ही बोली मे भाग लेने के लिए योग्य कर दिया, वहीं विशिष्ट शर्तें डाल कर फर्नीचर आयटम बनाने वालों के साथ वितरक, डिस्ट्रीब्यूटर व दुकानदारों को भी पात्र कर दिया गया। ऐसे में कॉलेज की ओर से बनाई गई शर्तें ही आपस में विरोधाभासी हो गई।

दूसरी ओर नियमानुसार 1.5 करोड से अधिक राशि के टेंडर में प्री बिड मीटिंग रखी जानी चाहिए जो भी नहीं रखी गई। यहां तक कि निविदा में प्रथम अपील अधिकारी निविदा जारीकर्ता प्रिंसिपल ही बन गये जबकि आरटीटीपी नियमों के अनुसार अपील अधिकारी निविदा जारी करने वाले अधिकारी से ऊपर का अधिकारी होना चाहिए।

भरतपुर खरीदारी में गड़बड़ी, तीन टेंडरों से समझें
1. टर्न ओवर और एक्सीपीयरिसं शून्य हो तो भी निविदा में भाग ले सकते हैं। यह टेंडर 2करोड़ 34 लाख 60 हजार का था। कंपनी को दिया गया 1 करोड़ 76 लाख 64 हजार 950 रुपए का। जिस कंपनी को टेंडर दिया गया, उसने दस्तावेजों मेें पत्थर कटिंग का काम होना बताया है। बात यह भी है कि यह सारे सामान धौलपुर मेडिकल कॉलेज भेजे गए हैं।
2. इन्हीं सामान के टेंडर में तीन वर्ष का आैसत वार्षिक टर्न ओवर एक करोड़ रुपए का व कार्यानुभव में 50-50 लाख राशि के दो वर्कऑर्डर या एक करोड़ रुपए की राशि का एक वर्कआॅर्डर होना जरूरी है। अब जबकि एक कंपनी को पहले बिना शर्तों के टेंडर दे चुके थे तो वही कंपनी इन शर्तों के साथ आवेदन के योग्य हो गई और उसे ऑर्डर दे दिया गया। 3. सात करोड़ 85 लाख 65500 रुपए का टेंडर किया है। इस टेंडर में कुल निविदा राशि का 40 प्रतिशत औसत वार्षिक टर्न ओवर मांगा, जाे लगभग 3.14 करोड़ का हैै। इसमें भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह टर्न ओवर फर्नीचर का होना चाहिए या किसी अन्य काम करने वाली कंपनी का भी होेगा? वहीं निविदा में पूर्व कार्यानुभव 33 प्रतिशत राशि का मांगा है।