सदियों पहले एक नस्ल हुआ करती थी जो स्कैंडिनेविया में बसी हुई होती थी। इन्हें वाइकिंग कहा जाता है और ये आज के डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे के आदि बाशिंदे थे। लंबे तगड़े शरीर के मालिक ये भारी भरकम हथियार रखते थे और आदि युग में ये भारत तक भी पहुंचे थे। एक धारणा के अनुसार वाइकिंग स्काइथियन जाट थे और भारत तथा पाकिस्तान के जाट भी स्काइथियन जट्टी नामक कौम के ही वंशज कुछ शोधकर्ताओं द्वारा माने जाते हैं। वाइकिंग जब एक विशाल बर्फ के पहाड़ के पास उतरे तो उन्होंने इस जगह को आइसलैंड नाम दिया परंतु आगे इस भूभाग के अंदर जाने पर उन्हें दुसरा ही नजारा देखने को मिला। बर्फ के पहाड़ के पीछे मीलों तक ज्वालामुखी की आग और उनका लावा फैला हुआ था। इंसान के उपयोग के लिए इस भूभाग की समुद्र से लगी पट्टी मात्र ही थी। आज सदियों बाद भी आइसलैंड देश मात्र समुद्र तट पर बसा एक कस्बे की आबादी जितना देश ही है।
आइसलैंड में बर्फ की एक इतनी विशाल चट्टान है कि उसकी बर्फ यूरोप के सारे ग्लेशियर्स की बर्फ से भी ज्यादा है। यहां तक कि इसकी चोटी से ग्लेशियर्स बन कर नीचे फिसलते रहते हैं। इस बर्फीली चट्टान का नाम है वात्नसॉकुल जो क्षैत्रफल में चार हजार स्क्वायर माइल्स से भी ज्यादा है। इस चट्टान के नीचे काली मिट्टी, पत्थरों के टुकड़ों एवम् राख का एक तरह का रेगिस्तान है। आइसलैंड भुगौलिक दृष्टि से अभी बन रहा है। पूरा देश एक बासल्ट की 6.4 किलोमीटर मोटी चट्टान पर स्थित है जिसको बनने में 2 करोड़ वर्ष लगे हैं। यह बासल्ट अभी भी मध्य अटलांटिक रिज ( मेड़) द्वारा बनाया जा रहा है जिसकी ऊंचाई से बासल्ट भूमि पर गिरता रहता है। यह मेड़ यानि रिज यूरोप और उत्तर अमेरिका के बीच एक गहरी दरार है जहां से ये दोनों भूभाग एक दूसरे से अलग होते जा रहे है।
कोई दस हजार साल पहले आखिरी बर्फ युग समाप्त हुआ था और आइसलैंड में एक से दो किलोमीटर ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर्स ने यहां की चट्टानों को गढ़ा है। बर्फ की इन चट्टानों से सटे हुए ही यहां कोई 200 ज्वालामुखी हैं जिनके कारण यहां आग उगलती पहाड़ियां, खाईयां और लावा का जीवनविहीन वीराना है। कोई 2600 वर्ग किलोमीटर भूमि लावा से भरी पड़ी है जो अग्नि और बर्फ का एक लोमहर्षक दृश्य प्रदान करता है।
कोई 1500 सौ साल पहले संत ब्रैंडन नामक एक धर्मगुरु ने आइसलैंड के बारे में लिखा था लेकिन लोगों ने उसे संत का भ्रम मान कर विश्वास नहीं किया था। आगे चलकर जब समुद्र और धरती पर यात्रा के साधन विकसित हुए तो ब्रैंडन की बातों की सत्यता प्रमाणित हुई। संभव है ब्रैंडन किसी न किसी तरह इस भूभाग तक की यात्रा कर पाए हों जोकि उस समय एक अत्यंत अत्यंत दुष्कर कार्य था। आइसलैंड में सदा से ही ज्वालामुखीय विस्फोट जोरदार तरीके से होते रहते हैं जिसमें 500 वर्ग किलोमीटर क्षैत्र में खाइयों और पहाड़ियों से हर तरफ तपता हुआ लावा आग के गोलों की तरह बहता रहता है और ऐसा हजारों सालों से होता रहा है तथा आगे पता नहीं कितनी सदियों तक और भी होता रहेगा। 1703 में हुए एक अतिविशाल विस्फोट में यहां की तकरीबन सारी आबादी और पशुधन लावे की चपेट में आ कर मर गए थे। वाइकिंग स्वभाव से किसान हुआ करते थे पर आइसलैंड में खेती संभव नहीं थी परंतु फिर भी वे यहां बसे और आगे चलकर वृहद समाज में मिश्रित हो गए।
बर्फ की चट्टानों के बीच ज्वालामुखी फूटता है, आग हर तरफ फैल जाती है, बर्फ पिघलती है, ज्वालामुखी फिर कभी दुबारा फूटने के लिए शांत हो जाता है, बर्फ वापिस लौट आती है। प्रकृति का विचित्र चक्र अनंत काल से जारी है।
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