जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
रोजगार गारंटी, किसानों की कर्जमाफी और नकल माफिया को उम्र कैद की सजा जैसी सरकार के महत्वाकांक्षी घोषणाओं पर फिलहाल कानून बनाना मुश्किल है। क्योंकि शुक्रवार को विधानसभा में सत्र फिर शुरू हो गया, लेकिन सरकार ने जिन कानूनों को लाने की घोषणा की थी, उनके ड्राफ्ट ही संबंधित विभागों ने अब तक तैयार नहीं किए हैं।
इन सभी विषयों पर कानून बनाने की बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कही थी। जिसके बाद सीएम अशोक गहलोत ने बजट में इसकी घोषणा भी की। नकल मामले में सख्त कानून लाने की मांग हाल ही में सचिन पायलट ने जन संघर्ष पद यात्रा में की थी। सीएम गहलोत ने पेपर लीक के माफियाओं के खात्मे के लिए उम्रकैद का कानून लाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक विधानसभा में इन कानूनों को बनाए जाने पर बीएसी ने कोई मंजूरी नहीं दी है।
विधानसभा के उप मुख्य सचेतक (सरकारी) महेन्द्र चौधरी ने मीडिया को बताया कि फिलहाल 5 विधेयकों को ही पेश करना तय हुआ है।
आखिर क्यों है कानून बनना मुश्किल
सूत्रों के अनुसार सरकार के वित्त, कृषि, श्रम व रोजगार, कौशल विकास, सहकारिता, उच्च शिक्षा, विधि, प्रशासनिक सुधार, गृह आदि विभागों को इन कानूनों के मसौदे (प्रारूप) तैयार करने थे, जो फिलहाल विधेयक के रूप में पूरी तरह से तैयार नहीं हो सके हैं। अगर आनन-फानन में विधेयक पेश किए जाएंगे तो सदस्यों द्वारा उन पर पर्याप्त विमर्श की संभावना नहीं रहेगी।
त्रुटियां रहने पर विपक्ष के किसी सदस्य की गंभीर आपत्ति हुई तो विधेयक पास नहीं हो पाएगा। पास होने पर भी राज्यपाल के पास अटकने की आशंका रहेगी। त्रुटियां रहने पर न्यायालय में भी उन्हें चुनौती दी जा सकेगी।
कौन-कौन से विधेयक पेश करने में है चुनौती
किसानों की कर्जमाफी और जमीनों को कुर्क नहीं करने संबंधी कानून
राजस्थान में 22 लाख किसानों के कर्जे माफ किए गए हैं, फिर भी 19,422 किसानों की जमीनें कुर्क होने के मामले सामने आए हैं, क्योंकि शेष नेशनल या प्राइवेट बैंकों के कर्जे सरकार माफ नहीं करती है। बैंकों का कर्जा न चुकाने के चलते 19,422 किसानों की जमीनों के कुर्क होने के मामलों को प्रदेश में भाजपा चुनावी मुद्दा बना रही है।
हाल ही उदयपुर में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह औऱ् बीकानेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह मामला उठाया था। तीन दिन पहले झुंझुनूं में भाजपा की ओर से हुए किसान सम्मेलन भी यह मामला गूंजा था।
किसानों के कर्जे माफ करने का वादा राजस्थान में ही वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने किया था। उसी के तहत सीएम गहलोत ने राजस्थान में सहकारी बैंकों से कर्जा लेने वाले किसानों का कर्जा माफ भी किया गया है।
अड़चन कहां : लगभग सभी प्रावधान तय हो चुके हैं, लेकिन नेशनल और प्राइवेट बैंकों के कर्ज माफ करने का कोई तरीका फिलहाल नहीं सूझ रहा है। साथ ही जब बैंकों और किसानों के बीच कोई विवाद होता है, तो उसके लिए सरकार के पास कोई बॉडी नहीं थी सुनवाई के लिए। अब यह काम एक आयोग करेगा, जिसकी अध्यक्षता किसी हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज को सौंपी जा सकती है।
पेपरलीक करने वालों को उम्रकैद की सजा देने का कानून
राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम-एक्ट -2022 के तहत पेपर लीक करने वालों और नकल माफियाओं को नियंत्रित करने के लिए अभी तक अधिकतम सजा 7 साल की कैद है। अब इसे बढ़ाकर उम्र कैद किया जाना प्रस्तावित है।
अड़चन कहां : उच्च शिक्षा विभाग ने इसे तैयार किया है। सूत्रों के अनुसार यह अभी केबिनेट तक ही पहुंचा है।
मिनिमम इनकम गारंटी योजना में 1000 रुपए प्रतिमाह पेंशन
वित्त विभाग के स्तर पर इस संबंध में कानून का प्रस्ताव बनाया जा रहा था। जिसके तहत प्रत्येक बुजुर्ग, विधवा व एकल महिलाओं आदि को प्रतिमाह 1000 रुपए की पेंशन स्वीकृत की जाए और उसमें स्वत: ही प्रत्येक वर्ष 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जाए। एक अप्रैल-2023 से पहले तय यह पेंशन 750 रुपए थी, जिसे बढ़ाकर 1000 रुपए कर दिया गया है, लेकिन उसमें 15 प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोत्तरी अब की जानी है।
अड़चन कहां : वित्त विभाग के स्तर पर वित्तीय प्रावधानों को जोड़ना शेष है।
डिलीवरी बॉय और गर्ल्स के लिए कानून
गिग वर्कर्स उन डिलीवरी बॉय-गर्ल को कहा जाता है, जो मोटरसाइकिल या स्कूटी पर गली-गली घूम-घूम कर विभिन्न कंपनियों-एजेंसियों के सामान ऑनलाइन डिमांड पर लोगों तक पहुंचाते हैं। राजस्थान के भी सभी बड़े शहरों में लाखों की संख्या में यह गिग वर्कर्स काम करते हैं।
जब राजस्थान से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गुजरी थी, तब उनके कुछ प्रतिनिधि राहुल से मिले थे। राहुल ने तब राजस्थान में ऐसे वर्कर्स की आर्थिक सुरक्षा, भविष्य निधि, मेडिकल आदि सुनिश्चित करने और उन्हें कम्पनियों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कानून बनाने की बात कही थी। सीएम गहलोत ने भी घोषणा की थी कि गिग वर्कर्स के लिए करीब 200 करोड़ रुपए का कल्याण कोष भी बनाया जाना है।
अड़चन कहां : श्रम विभाग के स्तर पर पहले से लागू श्रम कानूनों के प्रावधानों को शामिल करना शेष है।
लेकिन अब भी सरकार के पास ये तीन रास्ते
- पहला रास्ता : सरकार इस मौजूदा सत्र को आठ से 12 दिन तक बढ़ाए। फिलहाल सूत्रों के अनुसार यह सत्र 17 से 21 जुलाई तक चलेगा। अगर इस सत्र को 8-12 दिनों तक बढ़ा लिया जाए तो फिर यह संभावना बन जाएगी कि सरकार 10-12 और विधेयकों को भी पारित करवा सके।
- दूसरा रास्ता : सरकार विधेयक लाने के बजाए ऑर्डिनेंस (अध्यादेश) लाए। यह एक सरकारी आदेश की तरह होगा, जिसे बाद में सरकार विधेयक का रूप दे सकेगी। इससे सरकार जिस विधेयक को नहीं भी पारित कर पाएगी तब भी वो उसके प्रति वो अपना आशय और इच्छा स्पष्ट कर सकेगी।
- तीसरा रास्ता : अगर सरकार इस सत्र में किसी विधेयक को नहीं भी ला सके तो वो इस सत्र के बाद भी चुनाव आचार संहिता लगने (अक्टूबर तक संभव) से पहले तक विधानसभा का सत्र दोबारा भी बुला सकती है।
0 टिप्पणियाँ