राजनीति से जुड़े लोगों की सत्ता से चिपके रहने की नीति के फलस्वरूप सभ्यताएं नष्ट हो जाती हैं। सामान्य नागरिक बिना किसी जानकारी और गहन विचार के नेता लोगों की दुंदुभी बजाता रहता है और अपने ही जीवन की संभावनाओं को नष्ट करता रहता है। ऐसा सदियों से होता आया है। आज के समय में व्हाट्सएप फॉरवर्ड, यूट्यूब विडियोज और फेक न्यूज का प्रचार प्रसार समाज के समझदार लोग भी अंधभक्ति के चलते करते हैं जिसका दुष्परिणाम हमारा देश मणिपुर में देख कर भी अनदेखा कर  रहा है। ऐसे में हमें मणिपुर के बारे में बहुत कुछ जानना चाहिए।

मणिपुर, हाल ही की राजनीति जनित बर्बरता से पहले, सांस्कृतिक विविधता एवम् परंपराओं की विरासत वाला प्रदेश हुआ करता था। यहां कोई 30 तरह के आदिवासी समुदाय रहते हैं। इन सब की अपनी अपनी परंपराएं होती हैं, अपनी अलग बोली, रीति रिवाज, अवधारणाएं, उत्सव और जीवन शैली आदि होते हैं। लोग अपने नृत्य, संगीत और पारंपरिक आयोजनों में मस्त रहा करते थे परंतु चिरकालीन सत्ता पाने के लालची लोगों ने सबकुछ समाप्त कर दिया है। हिंसा का नंगा नाच देखती इस धरती के बारे में फिर भी हमें जानकारी होनी चाहिए क्योंकि यह हमारा ही एक अंग है।

संगाई हिरण मणिपुर का राजकीय जानवर है। इस जानवर का प्राकृतिक निवास कैबुल लामजो राष्ट्रीय पार्क है जो दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय पार्क है। यह पार्क लोकटक झील पर तैरता हुआ पार्क है। इस हिरण के अलावा यहां हॉग हिरण, अटेर, वाटर फाउल्स, और कितनी ही चिड़िया रहती हैं।

यह मणिपुर का मोइरांग कस्बा था जहां भारतीय उपमहाद्वीप पर आजाद हिन्द फौज का पहला झंडा 1944 के 14 अप्रैल को फहराया गया था। आजाद हिन्द फौज और जापान की सेना ने मिलकर यहां अंग्रेजी सेना को हराया था और इसमें मणिपुर के लोग भी शामिल हुए थे। यहां का आई एन ए म्यूजियम इसका मूक गवाह आज भी है। आजादी के इन परवानों की आज की दुर्दशा एक राष्ट्रीय शर्म की बात है।