अलवर ब्यूरो रिपोर्ट।
अलवर पर्यावरण संरक्षण के लिए अवैध खनन व रासायनिक कीटनाशकाें के इस्तेमाल काे राेकना जरूरी है। इसके लिए युवाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए। राजर्षि काॅलेज के तत्वावधान में पर्यावरण संरक्षण पर चिंतन काे लेकर अलवर में जुटे 12 देशाें के विद्वानाें सहित देश-प्रदेश के शिक्षाविदों ने यह बात कही। एनएसएस के राज्य समन्वयक डाॅ. सुरेंद्र सिंह ने अवैध खनन आैर रासायनिक कीटनाशकाें से पर्यावरण काे हाे रहे नुकसान के बारे में कहा कि इसका सीधा असर हमारे चाराें ओर हवा-पानी व सामान्य जीवन में देखने काे मिल रहा है।
इस पर चिंता करना बेहद जरूरी है। एमडीएस यूनिवर्सिटी अजमेर के पूर्व कुलपति डाॅ. केके शर्मा ने सांपाें की पहचान, पारिस्थितिकी तंत्र में उनका महत्व आैर उनके काटने पर उपचार के बारे में बताया। राजर्षि काॅलेज के डाॅ. लक्ष्मीकांत शर्मा ने अरावली पर्वतमाला के पारिस्थितिकी तंत्र की व्याख्या करते हुए इसे भारत की हरित क्रांति की दीवार बताया। राजर्षि काॅलेज प्राचार्य डाॅ. हुकम सिंह ने सतत विकास के लक्ष्य द्वारा भविष्य की पीढ़ियाें के लिए प्राकृतिक संपदा काे संरक्षित करते हुए पर्यावरण संरक्षण की बात कही।
उन्हाेंने काेराेना काल का जिक्र करते हुए कहा कि प्राणवायु की भयावहता के लिए काेई आैर नहीं मानव खुद जिम्मेदार है। जिला प्रमुख बलबीर छिल्लर ने माेबाइल के दुष्प्रभाव, कांंग्रेस नेत्री श्वेता सैनी ने पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भागीदारी, मत्स्य विवि कुलपति प्राे. शीलसिंधु पांडेय ने विषय पर चिंता जताते हुए काॅन्फ्रेंस काे अच्छी पहल बताया। इससे पहले अलवर माेटल में शुरू हुई 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय काॅन्फ्रेंस का उद॰घाटन जिला प्रमुख, मत्स्य विवि कुलपति, बीकानेर विवि कुलपति प्राे. वीके सिंह, लाॅर्ड्स विवि कुलपति प्राे. सुरेश जाेशी आैर प्राे. प्रदीप भटनागर ने दीप प्रज्जवलित कर किया। आयाेजन सचिव डाॅ. ममता शर्मा ने बताया कि काॅन्फ्रेंस में 34 सत्र हाेंगे। इनमें 24 ऑफलाइन व 10 ऑनलाइन सत्र शामिल हैं। 5 तकनीकी सत्र भी हाेंगे।
भारत काे बढ़ाने हाेंगे चार्जिंग स्टेशन, तभी ईवी पर शिफ्ट हाें : डाॅ. खान नाइजीरिया के प्राे. भाेला खान ने कांफ्रेंस में कहा कि कार्बन उत्सर्जन का इकाेनाॅमी, जनसंख्या व आैद्याेगिक ग्राेथ पर क्या असर है, इस तरह की अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में आने वाले शाेध से पता चलता है। यही शाेध सरकाराें के लिए पाॅलिसी बनाने में मदद करते हैं। उन्हाेंने कहा-दुनिया के विकसित देश हमें बताते हैं कि उत्पादन के क्षेत्र में कैसी तकनीकी इस्तेमाल की जाए ताकि कार्बन का उत्सर्जन कम से कम हाे। बड़े व विकसित देश डीजल-पेट्राेल के बजाए इलेक्ट्रिक वाहनाें का इस्तेमाल करने लगे हैं। हम जानते हैं कि कार्बन उत्सर्जन की अधिक दर से धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। अब सरकार काे पेट्राेल-डीजल के वाहनाें से इलेक्ट्रिक वाहनाें पर शिफ्ट हाेना पड़ेगा, लेकिन इससे पहले देश में चार्जिंग स्टेशन की संख्या बढ़ानी हाेगी।
साेलर एनर्जी के नाम पर विकास की पर्यावरणीय ऑडिट जरूरी-प्राे. छंगानी महाराजा गंगासिंह बीकानेर विवि के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्राे. अनिल छंगानी ने कहा-काेविड 19 ने बता दिया कि हमें परंपरागत संसाधन सहेजने हाेंगे। ऑक्सीजन बैंक रूपी वनाें काे बचाना हाेगा। हम शुरू से वन-ओरण या गाेचर के नाम से जमीन सुरक्षित रखते आए हैं। इससे इंसान सहित पशु व वन्यजीव भी निर्भर रहते थे। बदलते समय में मानवीय गतिविधि, खनन, अतिक्रमण व नदी-नालाें के ढकाव ने इसे नुकसान पहुंचाया है। अब साेलर एनर्जी या विंड एनर्जी के नाम से जाे चल रहा है उसकी पर्यावरणीय ऑडिट जरूरी है कि इससे हमने खाेया क्या है?
अगर 50 लाख खेजड़ी के पेड़ काटकर 5 हेक्टेयर में साेलर प्लांट लगा रहे हैं ताे साेचने वाला सवाल है कि उस पर काैन निर्भर था आैर उनका क्या हुआ? हमारा विकास से विराेध नहीं है, लेकिन उसका तरीका सही हाे। इन देशाें के विद्वानाें ने लिया भाग : कनाडा से डाॅ. राज नरनावरे, मलेशिया से डाॅ. प्र्रेम अधीश लेखी, जर्मनी से डाॅ. इल्सेकाेहलर, नाइजीरिया से डाॅ. भाेला खान, ओमान से राजशेखरन सिल्वाराजु, नेपाल से डाॅ. लक्ष्मण खनाल, दुबई, मुंबई, सिंगापुर, सिडनी व देश के अलग-अलग हिस्साें से डाॅ. राजेंद्र पुराेहित, डाॅ. निशिथ धारिया, प्राे. अनिल छंगानी, डाॅ. नगेंद्र सिंह, डाॅ. राकेश दुबे, डाॅ. प्रेम साेनवाल आदि माैजूद रहे।
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