जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

राजस्थान में किसी भी नगरीय निकाय (नगर पालिका, नगर निगम या नगर परिषद) से रिटायर्ड होने वाले कर्मचारी या अधिकारी को रिटायरमेंट बेनफिट की फाइल पर अब निकाय मुखिया (मेयर, सभापति या चैयरमेन) सिग्नेजर लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सरकार ने आज से इस प्रावधान को खत्म कर दिया है। सरकार का ये निर्णय निकाय प्रमुखों के अधिकारों में एक और कटौती के तौर पर देखा जा रहा है।

दरअसल अभी तक सेवानिवृत (रिटायर) होने वाले कर्मचारी के रिटायमेंट बेनीफिट (परिलाभ) की फाइल पर नगर निगम के कमिश्नर या अधिशाषी अधिकारी के साथ-साथ निकाय प्रमुख के भी सिग्नेचर होते है। लेकिन अब सरकार ने इस बाध्यता को खत्म कर दिया है।

स्वायत्त शासन निदेशालय की ओर से जारी नए आदेश के तहत अब ऐसे कर्मचारी जिन पर सेवानिवृत होने तक किसी तरह की विभागीय जांच, कोर्ट केस या विभाग की ओर से रोक संबंधि आदेश के मामले लंबित नहीं है तो ऐसे कर्मचारी-अधिकारी के रिटायरमेंट के बेनीफिट्स की फाइल पर निकाय मुखिया के हस्ताक्षर की जरूरत नहीं है।

कानून पास करके भी निकाय प्रमुखों को किया था कमजोर

इससे पहले मार्च में विधानसभा सत्र के दौरान भी सरकार ने एक कानून पास करके निकाय प्रमुखों को कमजोर किया था। सरकार ने अपने आदेशों में अयोग्य मेम्बरों को अपने ही स्तर पर हटाने का अधिकार लिया था। अभी तक ऐसा प्रावधान था कि कोई मेंबर अगर अयोग्य होते हुए भी चुनाव जीत गया, जीतने के बाद एक महीने के अंदर याचिका दायर नहीं हुई तो वह 5 साल बना रहता था। लेकिन सरकार ने नया कानून लाकर अब ऐसे मेंबर को हटाने का अधिकार अपने पास ले लिया। इस कानून के तहत अगर किसी मामले में सरकार को एक महीने बाद पता लगता है कि कोई व्यक्ति डिसक्वालिफाइड है और चुनाव लड़ने के काबिल नहीं था तो उसे जांच के बाद हटा सकती है।