सन 1780 के किसी दिन अफ्रीका की भूमि पर एक गडरिया भटक कर एक अदृश्य सी गुफा में संयोगवस प्रविष्ट हो गया। वहां उसने जो देखा तो उसकी आंखे विश्वास नहीं कर पाई और वह दौड़ कर अपने मालिक के पास गया। किसान अपने कुछ नौकरों के साथ मशालों की रोशनी के साथ गुफा में प्रविष्ट हुआ तो सब लोग भौचक्के रह गए। वे लोग एक 320 फीट लंबे और 50 फीट ऊंचे गुफा कक्ष में थे जिसके मध्य में एक खंबेनुमा स्टलागमाइट 30 फीट की ऊंचाई लिए खड़ा था जो एक अद्वतीय कृति थी। आगे चलकर इसे क्लियोपेट्रा की सुई नाम दिया गया। वैसे यदि ऐसी कोई कृति भारत में होती तो निश्चित तौर पर इसे शिवलिंग मान कर पूजा जाता।


स्टलागमाइट किसी गुफा में टपकते पानी के साथ जमा होनेवाले कैल्शियम से बनता है। यह गुफा के फर्श से एक स्तंभ के रूप में उभरता हुआ प्रतीत होता है और अक्सर एक स्टैलेकटाइट के साथ जुड़ा होता है। स्टैलेकटाइट किसी गुफा के फर्श पर उभरी हुई चट्टान को कहा जाता है जो उसकी छत से टपकते लवणों के जमाव से बनती है। इस तरह की निर्मितियों को बनने में एक लाख पचास हजार साल या उससे भी कुछ अधिक समय लग जाता है। उपरोक्त कृतियां जिस स्थान पर स्थित हैं वह आज का कांगो राष्ट्र है।
 दक्षिण अफ्रीका की स्वार्टबर्ग पर्वतमाला का निर्माण कोई दो लाख साल पहले से प्रारंभ हुआ। इस पर्वत श्रृंखला में चूना पत्थर की गुफाओं का एक अनूठा संसार है जहां झीलें, गहरी घाटियां और एक दूसरे से जुड़ी हुई असंख्य खाईयां हैं। कितनी ही गुफाओं के द्वार अदृश्य होते हैं और संयोगवश ही किसी के अंदर प्रविष्ट करने की कोई पतली सी जगह नजर आ सकती है। यही कारण है अभी चंद वर्ष पहले जब कुछ वैज्ञानिक अफ्रीका के सूखे पर अध्ययन कर रहे थे तो कुछ अति सुंदर गुफाओं की खोज हो सकी। यहां की एक गुफा इतनी सुंदर है और सजी हुई है कि उसे थ्रोन चेंबर ( राजसी कक्ष ) कहा जाता है। दूसरी सतरंगी गुफा को रेनबो चैंबर ( इंद्रधनुष कक्ष ) और तीसरी को क्रिस्टल फॉरेस्ट कहा जाता है। एक गुफा ऐसी बनी है मानो चार पायों का चमकीला बिस्तर हो। इसे ब्राइडल चैंबर ( दुल्हन का कक्ष ) कहा जाता है।