जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने नाबालिग से रेप के मामले में दो आरोपियों को बरी कर दिया है। दोनों को बूंदी की पोक्सो कोर्ट नं. 2 ने फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट में जस्टिस पंकज भंडारी की खंडपीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाया।

दोनों आरोपियों पर नाबालिग से रेप के बाद हत्या करने का आरोप था, लेकिन हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूरे मामले में पुलिस के पास कोई चश्मदीद गवाह नहीं था। इसके अलावा पुलिस सबूत जुटाने, सामान जब्ती के समय किसी भी स्वतंत्र गवाह को नहीं रखा। वहीं एफएसएल, मेडिकल और डीएनए रिपोर्ट से कहीं भी यह साबित नहीं होता है कि इन दोनों आरोपियों ने नाबालिग से रेप किया है। पोक्सो कोर्ट ने केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर सजा सुनाई है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर सजा तभी सुनाई जा सकती है, जब कड़ी से कड़ी मिले, लेकिन इस पूरे केस में कई जगह कड़ियां टूट रही हैं। मामले में न्यायमित्र अधिवक्ता रवि चिरानिया ने कहा कि पोक्सो कोर्ट ने भावनात्मक रूप से फैसला सुनाया जबकि फैसला कानून सम्मत होना चाहिए।

इन आधार पर कोर्ट ने किया आऱोपियों को बरी

पोक्सो कोर्ट के फैसले पर सवाल
हाई कोर्ट ने माना पूरे मामलें में एफएसल रिपोर्ट्स क्लीयर नहीं थी। मेडिकल रिपोर्ट स्पेसिफिक औऱ क्लीयर होनी चाहिए। अनक्लीयर रिपोर्ट को कंसीडर नहीं किया जा सकता है।
एफएसएल रिपोर्ट में कहा गया, डेड बॉडी से साथ रेप किया गया। इस आधार पर पोक्सो कोर्ट ने इस मामलें को रेयरेस्ट ऑफ रेयर माना था।
जबकि रिपोर्ट में केवल इस बारे में संभावनाएं जताई गई थी। इस बारे में कोई भी प्रमाण नहीं दिया गया था।
घटना का कोई चश्मदीद गवाह और ठोस सबूत पुलिस ने पेश नहीं किया। पोक्सो कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर सज़ा सुनाई।
परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर सज़ा सुनाई जा सकती है, लेकिन इसमें कड़ी से कड़ी जुड़नी चाहिए। लेकिन इस मामलें में ऐसा नहीं हुआ।

पुलिस की जांच पर सवाल
पूरे मामलें में पुलिस कोई चश्मदीद गवाह पेश नहीं कर पाई।
छोटे से गांव में घटना हुई, लेकिन पुलिस ने फर्द बनाने, सामन जब्ती में किसी को भी स्वतंत्र गवाह नहीं बनाया। सभी जगह पुलिस वालों को ही गवाह बनाया गया।
पुलिस ने घटना स्थल से मिले सेम्पल 5 दिन की देरी से एफएसल को भेजे।
जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि उसी दिन सेम्पल जांच के लिए भेजे जाए।
इससे कोर्ट ने माना की सेम्पल से छेड़छाड़ से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
62 वर्षीय आऱोपी छोटूलाल की जब्त धोती पर जो खून के निशान मिले। वो पीड़िता के नहीं थे। वो आऱोपी के खून से ही मैच होते है।
इसके अलावा छोटूलाल के खिलाफ कोई सबूत पुलिस ने पेश नहीं किए।
पुलिस का कहना है कि आऱोपी सुल्तान को घटना के अगले दिन पकड़ा गया।
जबकि आऱोपी की पत्नी ने कोर्ट में बयान दिया कि पुलिस घटना वाले दिन ही पकड़कर ले गई थी।
नाबालिग के वेजाइनल स्वाब की डीएनए प्रोफाइलिंग मिक्स नहीं आई।
मतलब उसके वेजाइना में किसी भी तरह का सीमन नहीं मिला।
आरोपी सुल्तान के पेनाइल स्वाब की रिपोर्ट भी क्लीयर नहीं थी।

आरोपियों के पास नहीं था केस लड़ने के लिए वकील
दोनों आरोपियों के पास हाई कोर्ट में केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं था। ऐसे में 15 जुलाई 2022 को हाई कोर्ट ने अधिवक्ता रवि चिरानिया को मामलें में न्यायमित्र नियुक्त किया। अधिवक्ता चिरानिया औऱ उनके दो जूनियर अधिवक्ता एसके पंवार व अधिवक्ता गौरव कुमावत ने मामलें में दोनों आरोपियों की ओर से पैरवी की। जिसका नतीज़ा निकला कि दोनों आऱोपी करीब डेढ़ साल बाद जेल की सलाखों से बाहर आ पाएंगे।

पुलिस ने 14 दिन में किया था चालान पेश

बूंदी जिले के खीण्या पंचायत के गांव काला कुआं के जंगल में बकरिया चराने गई नाबालिग की 23 दिसम्बर 2021 को डेड बॉडी मिली थी। पुलिस ने इस मामले में अगले दिन ही तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने मामले की जांच करके 14 दिन में कोर्ट में चालान पेश कर दिया था। एक आरोपी नाबालिग था, जिसका ट्रायल जुवेनाइल कोर्ट में अलग से चल रहा है। वहीं दो अन्य आरोपी सुल्तान और 62 वर्षीय छोटूलाल के खिलाफ बूंदी की पोक्सो कोर्ट नं. 2 में ट्रायल चला, जिसके बाद कोर्ट ने 28 अप्रैल 2022 को दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी।