राजस्थान ब्यूरोक्रेसी की सबसे बड़ी कुर्सी मुख्य सचिव (सीएस) पर 30 जून को किसी नए अफसर की ताजपोशी होने वाली है। रेस में दिल्ली से लौटी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी शुभ्रा सिंह और राज्य की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने वाले अफसर अखिल अरोड़ा की एंट्री ने नई चर्चा छेड़ दी है।
इस कुर्सी पर अभी उषा शर्मा काबिज हैं, जो 30 जून को रिटायर होने वाली हैं। उनके बाद इस कुर्सी पर किसी और आईएएस अफसर की नियुक्ति होगी। नियुक्ति पूरी तरह से सीएम अशोक गहलोत की इच्छा पर निर्भर करेगी। ब्यूरोक्रेसी में यही एक मात्र ऐसी कुर्सी है, जिसके लिए कोई तय नियम-कायदे नहीं हैं। सीएम जिस भी आईएएस अफसर को चाहे, उसे इस कुर्सी पर बिठा सकते हैं। चुनावों में केवल 5 महीने का समय शेष है, ऐसे में गहलोत इस कुर्सी पर अपने सबसे विश्वसनीय अफसर को ही लगाना चाहेंगे।
महीने भर पहले तक राजस्थान में 10 आईएएस अफसरों के नाम सीएस की रेस में थे। अब जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है तो रेस में केवल 5 अफसरों के नाम ही रह गए हैं। इन अफसरों के नाम हैं वीनू गुप्ता, सुबोध अग्रवाल, शुभ्रा सिंह, अभय कुमार और अखिल अरोड़ा।
सीएस बनने की दौड़ में क्यों चर्चित चेहरा बन गई हैं शुभ्रा सिंह?
शुभ्रा सिंह साल 1988 बैच की आईएएस हैं और प्रदेश काडर में उनकी सीनियरिटी चौथे नंबर है। वे पिछले 12 सालों से दिल्ली में ही रही हैं। हाल में वहां राजस्थान की रेजिडेंट कमिश्नर थीं। अब वे दिल्ली से जयपुर लौटी हैं। उनका लौटना ही सबको चौंका रहा है कि अगर उन्हें सीएस नहीं बनाया जा रहा है, तो फिर उन्हें दिल्ली से वापस जयपुर क्यों लाया गया है?
उनका दिल्ली से जयपुर ट्रांसफर भी सीएम के एक पुराने रिटायर्ड विश्वस्त आईएएस अफसर के प्रयासों से हुआ है, जो कभी देश की सबसे ताकतवर महिला राजनेता के सलाहकार भी रहे हैं। ऐसे में सचिवालय के गलियारों में यह चर्चा है कि शुभ्रा सिंह, जिनका सीएस के लिए पिछले 10 सालों में कभी एक बार भी नाम तक नहीं चला वे ठीक दो महीने पहले जयपुर क्यों लौटी हैं?
अखिल अरोड़ा सीनियरिटी में 12 नंबर पर, सीएम की निजी पसंद में उनका पहला नंबर
वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं अखिल अरोड़ा। उनका नंबर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में 12वें नंबर की सीनियरिटी पर है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि सीएम गहलोत की निजी पसंद की लिस्ट में उनका नंबर पहला है। वह पिछले चार साल से वित्त विभाग संभाल रहे हैं और यह पहला अवसर है, जब राजस्थान की वित्तीय-आर्थिक स्थिति बहुत समृद्ध है।
सीएम अपनी जिन फ्लैगशिप योजनाओं को पूरा कर चुके हैं और जिन्हें पूरा करना चाह रहे हैं, उनकी कामयाबी में अरोड़ा के वित्तीय प्रबंधन की खास भूमिका रही है। ऐसे में सीएम उन्हें 11 अफसरों के ऊपर से लाकर सीधे सीएस की कुर्सी पर बैठा सकते हैं। आज से करीब तीन साल पहले सीएम गहलोत ने अपने पसंदीदा अफसर निरंजन आर्य के मामले में ऐसा ही किया था। गहलोत ने आर्य को उनसे सीनियर 10 अफसरों की मौजूदगी के बावजूद सीएस बना दिया था। गहलोत अरोड़ा के लिए भी ऐसा कर सकते हैं।
एक बार फिर महिला सीएस के लिए बन रहा संयोग
संयोग कुछ ऐसा बन रहा है कि उषा शर्मा के बाद सबसे सीनियर आईएएस अधिकारी भी महिला ही हैं। उनका नाम है वीनू गुप्ता और शुभ्रा सिंह। गहलोत सरकार में पिछले 4 सालों से जिस तरह के पदों पर वीनू गुप्ता रही हैं, उससे वे मुख्य सचिव की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। अगर उनके नाम की घोषणा होती है तो राजस्थान पहला राज्य होगा, जहां तीसरी महिला मुख्य सचिव होंगी। साल 2009 में कुशल सिंह और 2022 में उषा शर्मा सीएस बनी थीं।
रेस में सबसे आगे नजर आ रही हैं वीनू गुप्ता (1987 बैच)
वीनू गुप्ता वर्तमान में उद्योग विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) हैं। उद्योग और निवेश एक ऐसा विभाग है, जहां कोई भी सीएम अपने विश्वस्त अफसर को ही कमान सौंपते हैं। वीनू के साथ कोई राजनीतिक-प्रशासनिक विवाद भी नहीं है और वे उषा शर्मा के बाद ब्यूरोक्रेसी में दूसरे नंबर पर हैं।
वह पूर्व मुख्य सचिव डी. बी. गुप्ता की पत्नी हैं। डी. बी. गुप्ता राजे सरकार में सीएस बने थे और गहलोत सरकार में भी मुख्य सचिव पद पर रहे। मुख्य सचिव पद से रिटायर्ड होने पर गहलोत ने उन्हें कुछ समय के लिए अपना सलाहकार भी बनाया था और बाद में उन्हें राजस्थान का मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) नियुक्त किया गया।
बड़े विभागों के अनुभव से पलड़ा भारी है सुबोध अग्रवाल (1988 बैच) का
अग्रवाल वर्तमान में जलदाय और जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं और दिसंबर 2025 में रिटायर होंगे। इससे पहले वे बिजली और खान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे हैं। उन्हें मुख्य सचिव की रेस में करीब डेढ़ साल पहले तब भी माना जा रहा था, जब उषा शर्मा को मुख्य सचिव बनाया गया था। उनके पास हमेशा महत्वपूर्ण विभाग रहे हैं, ऐसे में वह सीएम के नजदीक बने रहते हैं। उन्हें इस सबसे बड़ी कुर्सी की रेस में प्रमुख दावेदार माना जा रहा है।
अभय कुमार (1992 बैच) को मिल सकती है सबसे बड़ी कुर्सी
अभय कुमार फिलहाल पंचायत राज विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। इससे पहले वह सीएम गहलोत के विभाग गृह के अतिरिक्त मुख्य सचिव थे। उनका वहां से तबादला हुआ और पंचायती राज विभाग मिला। मेरिट के हिसाब से मुख्य सचिव बनने में उनकी सीनियरिटी का ग्राफ थोड़ा नीचे जरूर है, क्योंकि उषा शर्मा के रिटायर होने के बाद भी 9 अफसर उनसे सीनियर हैं।
पॉलिटिकल उठापटक के दौर (जुलाई 2020 से अक्टूबर-2022) तक उनके काम-काज से सीएम काफी सुविधाजनक स्थिति में रहे। अब चुनावी साल है, ऐसे में सीएम उन्हें सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठाकर प्रशासनिक मशीनरी की तरफ से पूरी तरह से निश्चिंत हो सकते हैं। वह ऐसा करना भी चाहेंगे क्योंकि चुनावी साल में उनका ध्यान, समय और ऊर्जा राजनीतिक कार्यों में ज्यादा खर्च होगी। ऐसे में उन्हें प्रशासनिक स्तर पर कोई मजबूत और अनुभवी अफसर की सख्त आवश्यकता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सीएम की गुड बुक में होना सीएस बनने के लिए सबसे बड़ी योग्यता
राजस्थान में करीब 40 साल तक आईएएस अफसर रहे पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव पी. एन. भंडारी का कहना है कि मेरिट की सीनियरिटी लिस्ट में जो भी 8-10 सीनियर अफसर होते हैं, आमतौर पर उन्हीं में से किसी को सीएस बनाया जाता है।
चयन सीनियिरिटी के हिसाब से ही तय होता है, फिर भी सोशल-पॉलिटिकल पसंद प्रमुख तो रहती ही है
राजस्थान की राजनीति और ब्यूरोक्रेसी पिछले छह दशक से लगातार लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सन्नी सेबेस्टियन का मानना है कि वैसे तो सीएस की पोस्ट ब्यूरोक्रेटिक सीनियरिटी के हिसाब से ही तय होती है।
फिर भी हर मुख्यमंत्री अपनी निजी पसंद और सोशल-पाॅलिटिकल परिस्थितियां भी अपनी भूमिका निभाते ही हैं। मेरिट में जो अफसर टॉप पर होते हैं, उन्हें सुपरसीड (लांघ कर) करके भी किसी को बना दिया जाता है, क्योंकि वो सरकार की जातिगत, क्षेत्रवाद और राजनीति संबंधी सोच और संदेश को मजबूत करता है।
पहली महिला मुख्य सचिव थीं कुशल सिंह, तब भी सीएम गहलोत ही थे
राजस्थान में पहली बार साल 2009 में मुख्य सचिव पद पर महिला आईएएस अफसर कुशल सिंह नियुक्ति हुई थी, तब भी सीएम अशोक गहलोत ही थे। गहलोत की तब पूरे देश में सराहना हुई थी कि उन्होंने इस भ्रम को तोड़ा कि ब्यूरोक्रेसी की सबसे ऊंची कुर्सी केवल पुरुषों के लिए ही होती है। एक बार फिर गहलोत ने ही बतौर सीएम जनवरी-2022 में उषा शर्मा को दिल्ली से लाकर मुख्य सचिव बनाया।
देश में दो बार महिला मुख्य सचिव केवल राजस्थान में ही बनी हैं। अब विधानसभा चुनाव में अब केवल सात-आठ महीने बचे हैं। वीनू गुप्ता का रिटायरमेंट भी दिसंबर-2023 में होना है। ऐसे में गहलोत एक बार महिला सशक्तिकरण की भावना के साथ ब्यूरोक्रेसी की सबसे ऊंची कुर्सी महिला आईएएस अफसर को सौंप सकते हैं।
उषा शर्मा को सीएम गहलोत देंगे कोई पॉलिटिकल नियुक्ति
अगर सीएम गहलोत चाहें तो वे चुनावी साल होने के कारण उषा शर्मा को ही मुख्य सचिव के पद पर कार्य विस्तार दे सकते हैं। यह कार्य विस्तार छह माह (30 जून-23 से 30 दिसंबर-23) तक दिया जाता है, लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार की इजाजत लेनी जरूरी है। केंद्र सरकार ने विगत 9 सालों में देश के किसी भी राज्य में सीएस के कार्यकाल को बढ़ाया नहीं है। ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम ही है।
अब चर्चा यह है कि सीएम गहलोत उषा शर्मा को किसी बोर्ड-निगम-आयोग-अथॉरिटी में चेयरमैन बना सकते हैं। हाल ही में रेरा के चेयरमैन पद से निहाल चंद गोयल रिटायर हुए हैं। गोयल भी मुख्य सचिव रहे हैं। गोयल के जाने के बाद रेरा में अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं हुई है।
संभवत: उषा शर्मा को सीएस पद से रिटायर के बाद रेरा का चेयरमैन बनाया जाएगा। सीएम गहलोत और शर्मा के बीच जबरदस्त प्रशासनिक समझ देखी गई है। चाहे कोरोना प्रबंधन हो, इन्वेस्टमेंट समिट हो या कलेक्टर-एसपी के साथ सरकारी कामकाज हो, सीएम हर जगह शर्मा की कार्यशैली से खुश दिखे हैं।
सीएम गहलोत शर्मा से पहले 4 पूर्व मुख्य सचिवों निरंजन आर्य, निहाल चंद गोयल, राजीव स्वरूप और डी. बी. गुप्ता को मुख्य सचिव रहने के बाद भी इस तरह की नियुक्ति दे चुके हैं। आर्य उनके सलाहकार हैं तो गुप्ता राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त हैं। राजीव स्वरूप एनवायरमेंट एसेसमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन बनाए गए थे। सीएम गहलोत अब तक करीब 26 आईएएस-आईपीएस अफसरों को रिटायरमेंट के बाद पॉलिटिकल अपॉइंटमेंट दे चुके हैं।
दिल्ली वाले अफसरों में से किसी को नहीं बुलाया है राजस्थान
राजस्थान के मुख्य सचिव की रेस में दिल्ली में प्रतिनियुक्ति का एक अलग ही पेच है। दिल्ली में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर संजय मल्होत्रा, सुधांश पंत, रोहित कुमार सिंह, वी. श्रीनिवास समेत कई अफसर हैं, जो प्रदेश काडर में टॉप-10 सीनियर आईएएस अफसरों में शामिल हैं। सभी की प्रतिनियुक्ति की समय सीमा खत्म होने में अभी एक से तीन साल बकाया हैं। उनमें से किसी भी अफसर की सेवाएं राज्य सरकार ने अब तक वापस नहीं मांंगी हैं।
उषा शर्मा भी मुख्य सचिव बनने से पहले दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर ही थीं, लेकिन उनकी सेवाएं तीन महीने पहले (30 जनवरी-2022 से पहले अक्टूबर-2021) वापस मांग ली गई थी। दिल्ली में प्रतिनियुक्ति वाले किसी भी आईएएस की सेवाएं वापस मांगने की लंबी प्रक्रिया है और केंद्र व राज्य सरकार दोनों की सहमति की जरूरत पड़ती है।
ऐसे में दिल्ली में प्रतिनियुक्त आईएएस अफसरों को अब इस रेस में शामिल नहीं माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में गए अफसरों में से कोई भी फिलहाल राजस्थान लौटने के लिए इच्छुक भी नहीं है। शुभ्रा सिंह भी वापस इसलिए जयपुर लौट पाई हैं, क्योंकि उनकी नियुक्ति दिल्ली में राजस्थान की पोस्ट पर ही थी, केंद्र सरकार के अधीन नहीं।
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