चाहे चिकित्सा विज्ञान हो या पोषण संबंधी विशेषज्ञ की बात हो, दोनों ही जगह एक बात स्पष्ट रूप में दिखाई देती है। यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो वह और उसका परिवार कर्ज लेकर भी इलाज करवाते हैं और पैसा पानी की तरह बहने लगता है। दूसरी तरफ कोई भी स्वस्थ व्यक्ति इस बात के लिए न्यनतम धन भी नहीं व्यय करेगा कि इस स्वास्थ्य को आगे भी ऐसा ही बेहतर कैसे बनाया जा सकता है। इस मानवीय स्वभाव का सीधा प्रभाव यह पड़ा कि मातापिता और संतानों में डॉक्टर बनने की होड़ मच गई, अधकचरी मेडिकल कॉलेजों की भरमार हो गई, शिक्षा अति महंगी होने और लालच पनपने के कारण इलाज की महंगाई सामान्य महंगाई से कई गुना अधिक हो गई। डॉक्टर्स को दोष देते लोग फिर भी एक स्वस्थ और युवापन लिए हुए जीवन की कला सीखने से दूर ही रहे हैं। ऐसे हालातों में स्वस्थ जीवन पर कार्य करनेवाले लोगों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में ही गिरावट आई है क्योंकि बिना अनुभव और अपनी स्वयं की आर्थिक सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हुए ये लोग भी कोई मौलिक परिवर्तन नहीं ला सकते हैं।
इस मनःस्थिति का फायदा उठाते हुए व्हाट्सएप पर फर्जी ज्ञान बांटने वालों की बाढ़ आ गई। आयुर्वेद के नाम पर लोग करोड़ों का व्यापार करने लगे जहां कृत्रिम तरीके से पेड़ पौधे लगा कर गुणविहीन सामानों से बाजार की दुकानें सजने लगी। वास्तविकता को छिपाने के लिए एक पैथी के लोग दूसरों को आरोपित करने लगे और शरीर को स्वस्थ बनाए रखने का मुद्दा नेपथ्य में होता गया।
हमारा शरीर जन्म से लेकर पच्चीस वर्ष तक विकसित होता है। पच्चीस वर्ष के बाद शरीर प्रौढ़
होने लगता है। अब यहां यदि भोजन में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा मिलती रहे तो शरीर
पर उम्र का प्रभाव कम होता है वरना चालीस वर्ष की उम्र में शरीर आंतरिक तौर से बूढ़ा
होने लगता है। यदि जीवन के इन वर्षों में पर्याप्त प्रोटीन और सूक्ष्म पौष्टिक तत्व
मिलते रहें तो व्यक्ति पूरी शताब्दी तक स्वस्थ जीवन जी सकता है जैसे एक अच्छी तरह से
रख रखाव वाली कार जीवनपर्यंत साथ देती है। खाने में प्रोटीन चाहे मांसाहार से हो या
वनस्पति प्रोटीन हो शरीर के लिए एक समान होता है क्योंकि शरीर को तो आवश्यक और उपलब्ध
दोनों ही अमीनो एसिड चाहिए होते हैं जिसकी श्रृंखला से प्रोटीन निर्मित होते हैं।
उम्र बढ़ने के साथ हमारी मांसपेशियों में कमजोरी आने लगती है जिसे सार्कोपेनिया कहा
जाता है। 50 वर्ष की उम्र के बाद एक सामान्य व्यक्ति हर साल 0.5 - 2 प्रतिशत तक मांसपेशियां
खोने लगता है जिसकी वजह से चलने में उसका संतुलन बिगड़ने लगता है। ऐसे में बुजुर्ग
व्यक्ति के गिरने की संभावना बढ़ जाती है, हड्डी टूटने से जीवन अति कठिन हो सकता है
और कभी तो असामयिक मृत्यु भी हो सकती है। इन सब व्याधियों से बचाव के लिए बचपन से ही
पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का सेवन करने की सावधानी बरतनी चाहिए।
इसके अलावा साल में दो बार किसी अनुभवी और विश्वस्त चिकित्सक से स्वस्थ रहने की कला
सीखने का प्रयास करना चाहिए। आपने धन एवम् नाम कमाने के मोह में युवा ह्रदय रोग विशेषज्ञों
को युवावस्था में हार्ट अटैक से मरते हुए सुना होगा। नैसर्गिक और बहुआयामी जीवनशैली
और पर्याप्त प्रोटीन तथा अन्य पौष्टिक तत्व आपको स्वस्थ और युवा रखने में सहायक हो
सकते इस बात को कभी भूलना नहीं चाहिए फिर आप चाहे हृदय रोग विशेषज्ञ हों या
चिकित्सा विज्ञान से अनजान नागरिक हो।
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