हर समाज में कुछ गिने चुने लोग होते हैं जो चाहे किसी विषय विशेष का अध्ययन कर रहे हों या फिर उसमें कार्यरत हों वे उसके बारे में स्थापित मान्यताओं से हट कर सोचते हैं, दूसरे नजरिए से देखते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति आज से 188 वर्ष पहले 1835 में आज के ओडिशा के खंडपाड़ा नामक राज्य में जन्मा था। ओडिशा भूभाग उस समय 26 छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। ये 26 राजा कहीं संघर्ष और कहीं स्नेह से एक दूसरे के साथ रहते थे। मन भावन पहाड़ियों के बीच बसा खंडपाड़ा कई नदियों वाला हरा भरा राज्य हुआ करता था। समय के उस दौर में न तो कोई शिक्षा होती थी और ना ही संचार आदि के कोई साधन हुआ करते थे।
यह बालक उस समय कुछ विशेष परिस्थितियों में जन्मा था। राज परिवार के ही एक सदस्य की प्रथम तीन संतानें जन्म के थोड़े थोड़े समय बात ही मृत्यु का ग्रास बन गई। ध्यान रहे कि भारतीय उपमहाद्वीप में उस समय बाल मृत्यु दर बहुत उच्च हुआ करती थी। इन परिस्थितियों में इस बालक को जन्म के साथ ही एक मुस्लिम फकीर को दे दिया गया जिसने इसे कुछ समय तक पाला। यही कारण था जिसकी वजह से लोग उसे पठानी सामंत कहने लगे परंतु इसका असली नाम सामंत चंद्रशेखर सिंह था हालांकि जन सामान्य में आज भी लोग इन्हें पठानी सामंत के नाम से ही जानते हैं ।
राज परिवार से संबंधित होने के कारण उसको गुरुकुल द्वारा संस्कृत की प्रारंभिक शिक्षा मिली। इसके पिता ज्योतिष में दिलचस्पी लेते थे तो बचपन में इस बालक को भी ज्योतिष की शिक्षा मिली। बचपन के इस काल में ही इस बालक ने भविष्य दर्शन, हाथ की रेखाओं में छुपे भाग्य आदि को नकारना प्रारंभ किया और उसका सोच खगोल विज्ञान की तरफ जाने लगा। बालक चंद्रशेखर सिंह बांस की लकड़ियों से पेड़ों एवम् भवनों की छाया मापने लगा, धरती से चांद और सूरज की दूरी की बातें करना लगा। उसने सूर्य घड़ी बनाने के प्रयास किया। पठानी की इस वैज्ञानिक सोच को खंडपाड़ा के राजा नटवर सिंह वाहियात बातें मानते थे। पठानी का विवाह भी बड़ी कठिनाई से हुआ क्योंकि वधु के पिता राजा अनुगुल और उनके परिवार के लोगों को पठानी देखने में राज परिवार के सदस्य जैसे व्यक्तित्व के स्वामी नहीं लगते थे परंतु उनके अद्वतीय ज्ञान के कारण आखिर में राजा अनुगुल मान गए।
सिर्फ बांस की लकड़ियों और अन्य पेड़ों के तनों से बनाए आकारों के द्वारा पठानी खगोल
विज्ञान में उस समय के बड़े ज्ञाताओं में थे। नग्न आंखों से पूरी रात जाग कर वे चांद
सितारों की गति का अध्ययन करते रहते थे इसलिए जीवन भर अनिंद्रा रोग के शिकार बने रहे।
अपनी रात्रिकाल की खोज को चाक द्वारा दीवारों पर अंधेरे में लिखते थे जिसे सुबह कागज
पर लिखा करते थे। चांद की तीन अनियमितताओं जानकारी देने वाले उपमहाद्वीप के वे पहले
व्यक्ति थे। पठानी आर्यभट्ट, वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त के स्तर के खगोल वैज्ञानिक थे।
खगोल विद्या भारतीय उपमहाद्वीप में हाथ की रेखाओं और जन्म पत्रिकाओं में भाग्य तलाशने
के चक्कर में अपने शैशव काल में ही समाप्त हो गई। उधर सालों पहले पश्चिम में कोपरनिकस
और गेलेलियो दूरबीन से आसमान देख रहे थे तो इधर उनके दो सौ वर्षों के बाद भी
सामंत पठानी बांस की लकड़ी में आंख को केंद्रित कर चांद सितारों की गतिविधियां देख
रहे थे।
चंद्रशेखर ने जब सिर्फ ब्रिटेन में घटने वाले सूर्य ग्रहण को शत प्रतिशत पहले से ही
बता दिया तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें महा महोपाध्याय की उपाधि और पचास रुपए प्रतिमाह
की पेंशन से सम्मानित किया। चूंकि राजा नटवर सिंह पठानी को बिल्कुल पसंद नहीं करते
थे तो उन्होंने उनको समय पर इस सम्मान को प्राप्त करने में रोड़े लगाए जिसके फलस्वरूप
अंग्रेजों ने राजा को बंदी बना लिया परंतु सामंत पठानी ने अंग्रेज अधिकारी कुक को राजा
का सम्मान करने और तुरंत रिहा करने की सलाह दी जिसे कुक ने मान लिया और राजा नटवर वापिस
अपने सिंहासन को प्राप्त कर सके। सामंत चंद्रशेखर की कितनी ही अवधारणाएं विज्ञान की
कसौटी पर खरी उतरी परंतु एक बात बिलकुल गलत सिद्ध हुई। वे मानते थे कि सौर मंडल का
केंद्र सूरज नहीं बल्कि धरती है। जीवनपर्यंत और ब्रिटिश खगोलशास्त्रियों की सलाह के
बावजूद वे गेलिलियो को गलत और स्वयं को सही मानते रहे। शायद वे अति प्राचीन ज्ञान के
प्रभाव व सम्मान के कारण पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हो पाए थे।
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