चित्तौड़गढ़ - गोपाल चतुर्वेदी 
कुछ वर्षों पूर्व तक  विश्व प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ के शहरी और दुर्ग क्षेत्र में करीब 200 वर्ष पुरानी 84 प्राचीन कुंड और बावडिया दुर्ग और शहरी क्षेत्र के निवासियों के लिए मुख्य जल स्रोत हुआ करते थे, जो की अब पुरातत्व विभाग और नगर परिषद प्रशासन की अनदेखी के चलते अब जर्जर हालत में पहुंचने के साथ कचरा पात्र में तब्दील हो रही है l 
राजकाज की टीम ने विश्व प्रसिद्ध चित्तौड़ दुर्ग और शहरी क्षेत्र में सदियों पुरानी 84 कुंड और बावडियों के हालात की जानकारी लेने के लिए इन सभी कुंड और बावडियों का निरीक्षण किया, जिसमें पाया कि अधिकांश प्राचीन धरोहर अब खंडहर होने के कगार पर पहुंचने के साथ कचरा पात्र में तब्दील हो गई है। वही इसके बारे में जब स्थानीय लोगों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि सभी 84 कुंड और बावडिया एक दूसरे से ड्रेनेज सिस्टम से जुड़े हुईं हैं। जिसके कारण सभी मैं पानी की आवक बनी रहती है। कुछ वर्षों पूर्व तक इन सभी कुंड और बावड़ीयों का पानी दुर्ग और शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के पेयजल का मुख्य स्रोत था। लेकिन अब इनकी देखरेख नहीं होने के कारण इसमें पानी का ठहराव नहीं होता है और इनमें वर्तमान परिस्थितियों में करीब 10 फीट तक कचरा भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
इसके बारे में जानकारी देते हुए दुर्ग निवासी संजय शर्मा ने बताया कि दुर्ग और शहरी क्षेत्र में बनी हुई सभी 84 कुंड और बावडियों का ड्रेनेज सिस्टम से जुड़ाव  है जिसके कारण बरसात के मौसम में हुई बारिश का पानी लगभग सभी स्थानों पर पहुंचकर वाटर लेवल को 12 महीनो तक रिचार्ज करता है। पिछले कुछ वर्षों से प्रशासनिक और पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते यह जिर्ण शीर्ण हालत में पहुंच गई है।
इस बारे में जानकारी देते हुए दुर्ग पार्षद अशोक वैष्णव ने बताया कि सभी प्राचीन धरोहरों के रखरखाव के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है तभी यह धरोहर बच पाएगी।
वही इसके बारे में अधिक जानकारी देते हुए पुरानी सब्जी मंडी चूड़ी बाजार में बनी तोषनीवाल जी की बावड़ी के मालिकाना हक रखने वाले रामनिवास तोषनीवाल ने बताया कि लगभग 200 वर्ष पूर्व संवत 1860 मैं करीब 150 फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण प्राचीन काल में करवाया गया था जिसका बापी पट्टा अंग्रेजों के समय में  बनवाया गया था। इस बावड़ी से आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ट्यूबवेल और हैंडपंप के माध्यम से 12 महीने तक पेयजल की सुविधा उपलब्ध हो रही है। वर्तमान हालात के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से नगर परिषद और प्रशासनिक अनदेखी इन प्राचीन धरोहरों के प्रति की जा रही है और यह धरोहर लगभग समाप्ति की ओर है। जिस के रखरखाव की समस्त जिम्मेदारी नगर परिषद की है और कई वर्षों से अधिकारियों ने इसकी सुध तक नहीं ली है और कई बार अपने स्तर पर इस बावड़ी की सफाई करवा कर इस को स्वच्छ और सुंदर रखने का प्रयास किया है। उन्होंने नगर परिषद और प्रशासन से आग्रह किया है कि इन प्राचीन धरोहर का रखरखाव से ढंग से करके इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी को भी इन धरोहर के प्रति जानकारियां मिल सके।