श्रीगंगानगर - राकेश मितवा 
श्रीगंगानगर सूचना केन्द्र में प्रेस क्लब के संवाद कार्यक्रम में आज आइएमए के सक्रेटरी डॉ. हरीश रहेजा, आर्थो सर्जन डॉ. सुभाष राजोतिया व नर्सिंग होम एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. दीपक चौधरी ने प्रेस से रूबरू होकर उनके सवालों के जवाब दिये। 
स्वागत अभिनंदन के बाद डॉक्टर्स ने कहा कि 'राइट टू हेल्थ' में ढेरों विसंगतियां हैं। डॉ. सुभाष राजोतिया ने कहा कि राजस्थान सरकार स्टेट में आरटीएच शुरू करने जा रही है जो अपनी नामाकियों को छुपाने के लिए प्राइवेट सेक्टर पर थोपा जा रहा है। इसमें सबसे बड़ी खामी यह है कि यदि कोई भी इमरजेंसी का मरीज किसी भी प्राइवेट अस्पताल में जाता है, तो उसे अस्पताल भर्ती करने से मना नहीं कर सकता। सोचने वाली बात यह है कि जो हड्डी का डॅाक्टर है, उसके पास यदि आंख की चोट का मरीज आता है, तो वह कैसे भर्ती कर उसका ईलाज कर सकता है। दूसरी बात इसमें इमरजेंसी को कहीं परिभाषित नहीं किया गया है।  छोटी मोटी बीमारी का मरीज भी यह आकर कह सकता है कि इमरजेंसी है और उसकी सारी जांच फ्री की जानी चाहिए। 
आइएमए के सचिव डॉ. हरीश रहेजा ने कहा कि सरकारी अस्पताल में इमरजेंसी के नाम पर कुछ भी सेवाएं नहीं हैं। जो भी मरीज यहां आता है, वह अपना समय बर्बाद करता है, उसे किसी भी प्रकार की सुविधाएं नहीं मिलती और उसे रेफर कर दिया जाता है। उसके बाद वह सुविधाओं के लिए प्राइवेट अस्पताल की तरफ भागता है। सरकारी अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरो सर्जरी के मरीज, ट्रोमा, एक्सीडेंट केस, हैड इन्जयूरी के मरीज जाते हैं, वहां उसका सिटी स्कैन होता है और उसके बाद रैफर कर दिया जाता है यानी केवल और केवल मरीज का समय बर्बाद होता है और वह आखिरकार प्राइवेट हॉस्पीटल की ओर रूख करता है। सुविधाओं के अभाव में सरकारी हॉस्पीटल चल नहीं रहे और आरटीएच लाकर प्राइवेट हॉस्पीटल पर बोझ डाल रहे हैं।  अगर सरकार को करना है तो सरकारी अस्पतालों को अपग्रेड करें, वहां ऐसी सुविधाएं दी जानी चाहिए, जिससे इमरजेंसी केस को संभाला जा सके। सरकार ने अपनी वाहवाही करवाने के लिए बिना सोचे समझे ये एक्ट लागू कर दिया है। एक्ट लाने से पहले जिले के आइएमए के पदाधिकारियों से राय ली जानी चाहिए थी।
डॉ. दीपक चौधरी ने कहा कि आरटीएच जैसे एक्ट के बोझ तले प्राइवेट अस्पताल जब अपना खर्चा ही नहीं निकाल पाएंगे तो अस्पताल बंद हो जायेंगे। एक्ट में हमारे अधिकारों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करके लागू किया जाना चाहिए। 
मरीजों को आ रही समस्याओं के सवाल पर डॉक्टर्स ने कहा कि हमने भी मजबूर होकर यह काम किया है। हम भी सरकार से इसके लिए करीब एक-डेढ माह से प्रयासरत थे, लेकिन हमारी कहीं सुनवाई नहीं हुई। हमारे पास ओर कोई रास्ता नहीं था, इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है। हमें भी इस बात का दुख है कि गरीब आदमी का ईलाज नहीं हो रहा। उन्होंने कहा कि अब जाकर सीएम से इस बारे में मीटिंग हुई है और शायद दो-तीन दिन में इसका हल निकल आयेगा।