जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के बनाए कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द करने पर नाराजगी जताई। धनखड़ ने कहा कि ससंद ने जो कानून बनाया है, क्या उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी, तभी कानून होगा ? उपराष्ट्रपति धनखड़ ने गुरुवार को जयपुर में ऑल इंडिया स्पीकर कॉन्फ्रेंस में उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए कहा कि 1973 में एक बहुत गलत परंपरा चालू हुई। केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि ससंद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं। कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि इससे मैं सहमत नहीं, हाउस बदलाव कर सकता है। यह सदन बताए कि क्या इसे किया जा सकता है ? क्या ससंद को यह अनुमति दी जा सकती है कि उसके फैसले को कोई और संस्था रिव्यू करे ? उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जब मैंने राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया तब कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। ससंद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं। उन्होंने कहा कि 2015 में ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी कानून पारित किया, सर्वसममति से पारित हुआ। 16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया। दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के सामने ससंद की संप्रभुता से समझौता कैसे हो सकता है? उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आज ससंद और विधानसभाओं में जो माहौल है, वह बहुत निराशाजनक है। हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बर्ताव संसद और विधानसभा सदनों में बहुत गिरता जा रहा है। इस निराशाजनक माहौल का समाधान निकाला जाए, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। ससंद और विधानसभा सदनों में जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय बर्ताव से जनता नाराज है। धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा का सभापति बनने के बाद देश भर के लोगों से मेरी चर्चा हुई है। लोगों ने कहा कि यह क्या कर रहे हो, क्या यह कल्पना थी हमारी ? यह समझ से परे है, गले नहीं उतरता कि संविधान की शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधि ऐसे आचरण करते हैं। लोग सोचते हैं कि हमारे चुनकर भेजे हुए जनप्रतिनिधि रास्ता दिखाएंगे, समस्याओं का हल निकालेंगे, लेकिन वे नियमों का पालन नहीं करते। धनखड़ ने कहा कि सदन को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना गलत है। हमारी संविधान सभा के वक्त को देखिए, कितनी तरह की अलग अलग विचारधाराओं के लोग थे, लेकिन इस तरह आचरण नहीं हुआ।
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