नाश्ता शब्द हिंदी में फारसी भाषा से आया है जिसका मतलब है निराहार से नहार मुख होना यानि रात्रि के व्रत को तोड़ना यानि कलेवा करना जैसे किसी यात्री का अल्पाहार हो। 1960 के दशक में अमेरिका के भोजन सलाहकार एडेल डेविस ने नाश्ते की गरिमा में चार चांद लगा दिए जब उन्होंने कहना शुरू किया कि नाश्ता एक राजा के तरह करो, दोपहर का भोजन राजकुमार और रात का खाना कंगाल जैसा हो। यहां सवाल उठता है कि डेविस के कथन में सामान्य अवलोकन पर आधारित ज्ञान था या कोई गहन वैज्ञानिक अध्ययन ?

अभी निकट भूतकाल में कोई 30,000 लोगों पर अध्ययन किया गया जिनमें से 15 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो नियमित नाश्ता नहीं ले सकते थे। कई वर्षों के अध्ययन से पता चला कि नाश्ता करना एक लाभदायक आदत तो है पर ऐसा प्रमाण नहीं है जो इसको अनिवार्य घोषित किया जा सके। यदि कोई व्यक्ति अपनी ऊर्जा और पोष्टिक तत्वों को दोपहर के भोजन से प्राप्त कर लेता है तो उसमें और नाश्ता करनेवाले लोगों में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता है। अध्ययन में सुबह नाश्ता करने की आदत को अच्छा तो पाया गया है पर चमत्कारिक या आवश्यक होने की बात का समर्थन नहीं किया है। चूंकि एक बड़ा वर्ग नाश्ते की आदत को बेहतरीन आदत मानता है तो इस अध्ययन ने भी इसका खंडन नहीं किया है पर कहा है कि जो लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं उन्हें भयभीत और अपराधबोध ग्रसित होने की आवश्यकता नहीं है।

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि यदि दिन भर का कैलोरी उपभोग एक जैसा हो तो नाश्ता करने या न करने वाले लोगों के शारीरिक वजन पर कोई अलग प्रभाव नहीं पड़ता है और ना ही डायबिटीज, रक्तचाप आदि पर कोई महत्वपूर्ण असर पड़ता है। पर नाश्ता करने वाले समूह में विटामिन और मिनरल की कमी कम पाई गई है।

संक्षेप में, नाश्ता भोजन चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है पर इसके बिना भी जीवन आराम से चल सकता है। सुविधा और समय हो तो यह भोजन चक्र का बड़े महत्व का भाग हो सकता है पर यदि ऐसा ना हो तो बाकी भोजन में पोष्टिक तत्वों का समावेश जरूर करना चाहिए। संतुलित भोजन की प्राप्ति भारत जैसे देश में एक विकट समस्या बन चुकी है। ध्यान बेहतर खाद्य पदार्थों की तलाश की तरफ ज्यादा होना चाहिए। नाश्ता करें या ना करें इसकी बजाय स्वास्थ्यवर्धक भोजन कहां से प्राप्त करे इस बात पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।