भरतपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
एयरफोर्स के लड़ाकू विमान 'सुखोई-30' और 'मिराज-2000' की टक्कर शनिवार सुबह मुरैना (मध्य प्रदेश) में हो गई थी। इसमें एक नई जानकारी सामने आई है। क्रैश होने के बाद सुखोई का एक हिस्सा वहीं (मुरैना) गिर गया था, दूसरा हिस्सा करीब 90 किलोमीटर दूर भरतपुर के पिंगोला इलाके में गिरा। भरतपुर के पिंगोला रेलवे स्टेशन से करीब एक किमी आगे नगला तेरह गांव में अब भी आर्मी और एयरफोर्स की टीम कैंप कर रही है। घटनास्थल को सील कर दिया गया है। हादसे से पहले ही सुखोई के पायलट निकल गए थे। विमान ऑटो पायलट मोड में भरतपुर के नगला तेरह गांव के एक खेत में गिरा। जहां विमान गिरा है, वहां से कुछ ही दूरी पर आबादी क्षेत्र है। थोड़ा सा आगे गिरा होता तो जानमाल का बड़ा नुकसान हुआ होता। करीब 1200 आबादी वाले इस गांव में घटना के बाद हड़कंप मच गया था। विमान का एक पाट्र्स गांव की राजवती के पैर पर गिरा था, जिससे वह चोटिल भी हो गई है। बताया जाता है कि सुखोई दो टुकड़ों में बंट गया था। एक हिस्सा विंग्स और टेल (पीछे वाला जहां ब्लैक बॉक्स होता है) मुरैना में गिर गया था। बीच वाला दूसरा हिस्सा नगला तेरह गांव में गिरा था। हादसे के बाद सुखोई प्लेन के पुर्जे नगला तेरह गांव के आस-पास करीब 1 बीघा एरिया में फैल गए थे। रविवार को भी सेना और गांव वाले सर्च ऑपरेशन में जुटे रहे। मौके पर लोगों ने बताया कि रातभर सर्च ऑपरेशन चलाया गया था। रविवार देर शाम तक सेना की टीम और स्थानीय लोग सर्च ऑपरेशन में जुटे रहे। घटना के करीब 2 घंटे बाद ही पहुंचे सेना के अधिकारियों ने पूरे इलाके को सील कर दिया था। एयरफोर्स ने सुखोई के ब्लैक बॉक्स और पार्ट्स को ढूंढने के लिए शनिवार देर शाम ड्रोन उड़ाया था। 1 बीघा में कोई बड़ा पुर्जा नहीं मिला तो ड्रोन को रोक दिया गया। इसके बाद गांव वालों के साथ सर्च ऑपरेशन शुरू किया था।सेना के अधिकारियों ने बताया कि ब्लैक बॉक्स मुरैना में मिल गया है। एयरफोर्स के जवानों के साथ 40 से 50 ग्रामीण रातभर जुटे रहे। जैसे-जैसे पाट्र्स मिलते गए, उसे सेना के कैंप में लाते रहे। नगला तेरह गांव के सरपंच सुभाष मदेरणा ने बताया कि घटना के बाद गांव का कोई व्यक्ति सोया नहीं है। एयरफोर्स के अधिकारियों के नेतृत्व में दुर्घटनाग्रस्त विमान के पाट्र्स ढूंढते रहे। नगला तेरह गांव के सरपंच सुभाष मदेरणा ने बताया कि रात भर चले सर्च ऑपरेशन में जो भी सुखोई के पाट्र्स मिले, उसे 4 ट्रकों में रखकर ग्वालियर बेस भेजा गया है। इसमें कई पाट्र्स इतने वजनी और बड़े हैं कि 10-10 लोग मिलकर भी नहीं उठा पा रहे हैं। ग्रामीणों और क्रेन की मदद से इन पाट्र्स को कैंप में लाया गया।
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