प्रायदीप धरती का एक लंबा और तुलनात्मक रूप में पतला हिस्सा होता है जो मुख्य भूमि से निकलता है और तकरीबन हर तरफ पानी से घिरा हुआ रहता है। रूस के पूर्वी भाग से ऐसा ही 1250 किलोमीटर लंबा और 270,00 वर्ग किलोमीटर क्षैत्रफल का भूभाग निकलता है जो प्रशांत महासागर और ओखोत्स्क सागर से घिरा हुआ है। इस प्रायदीप को केमचाटका कहा जाता है और इस विशाल भूखंड में मात्र पांच लाख लोग रहते हैं और वे भी इसकी राजधानी में। केमचाटका का अधिकतर हिस्सा मानव विहीन है और इसमें स्थित क्रोनोट्सकी बायोस्फीयर एक विश्व हेरिटेज है।

यहां पर दो पर्वत श्रृंखलाएं हैं, 300 से भी ज्यादा ज्वालामुखी हैं जिनमें 29 तो अति सक्रिय हैं। इसके सागर तट चट्टानों से भरे हैं और जंगल शंकुधारी ( कनिफरस ) और सनोवर ( बिर्च) पेड़ों से भरे हुए हैं। शंकुधारी में देवदार और चीड़ जैसे पेड़ होते हैं। इसके अलावा हरे भरे घास के मैदान और वृक्षविहीन पर्वतीय रास्ते जिन्हे टुण्ड्रा कहा जाता है आदि की भी भरमार है। यहां का वातावरण भी कई तरह का होता है। सागर तटों पर सामान्य, केंद्र में उष्ण और उत्तर के क्षैत्रो में लंबी तेज ठंड का मौसम।

यहां पर कई भूमि और समुद्र के स्तनधारी जीव रहते हैं, 150 तरह के पक्षी, सरीसृप ( रेप्टाइल्स ), उभयचर ( एंफीबियंस जैसे मेंढक ) और कितने ही अक्षेरुकीय ( जिनके रीड नहीं होती )जीव यहां पाए जाते हैं। केमचाटका एक विस्मयकारी भूमि है। यहां एक तरफ बर्फ से ढके पर्वत हैं जिनमें कितने ही ग्लेशियर्स हैं तो दूसरी तरफ सक्रिय ज्वालामुखी आग उगल रहे होते हैं। कई जगह तो बर्फ की गुफा से चिपका हुआ ज्वालामुखी भी होता है। इसलिए इस क्षैत्र को बर्फ और आग का संगम भी कहा जाता है। यहां गर्म झरने, जमीन से उफनता गर्म पानी, पर्वतों के कटाव में बसी झीलें, नदियां, जंगल, घास के मैदान, फूलों की वादियां और वनस्पति विहीन रास्ते आदि सब कुछ मिलते हैं।

गर्मियों में दूर दूर से सालमन मछली यहां अंडे देने आती हैं। अंडे देकर वापस जाती मछलियों का यहां के मनुष्य, भालू, समुद्री शेर और बाज जैसे पक्षी शिकार करते हैं। ज्वालामुखी की राख तरह तरह के पेड़ पौधों के लिए भूमि तैयार करती है। मई जून में समुद्री शेर और सील के नर यहां आकर भूमि पर कब्जा जमाने के लिए युद्ध करते हैं। दोनों के शक्तिशाली नर ही जमीन पर रह पाते हैं और कमजोर को भगा देते हैं। चंद दिन बाद जब मादा आती हैं तो शक्तिशाली नर पूरा हरम बसा कर प्रजनन करते हैं। प्रकृति की इन अठखेलियों के बीच में अब आने लगी है रूस के नौसेना जो यहां पर सागर में अपने अड्डे बना चुकी है। सेना यहां बैलेस्टिक मिसाइल के प्रयोग भी करती है और कितनी ही हवाई पट्टियां बना चुकी है। देखना होगा कि किसी युद्ध की स्थिति में प्रकृति की इस अद्भुत कृति की क्या हालत होगी !