करौली ब्यूरो रिपोर्ट।
नदी से नदी जोड़ो अभियान के अंतर्गत किसी भी परियोजना को संबंधित राज्यों की सर्वसम्मति के बिना स्वीकृत नहीं किया जा सकता है, यह स्थापित तथ्य है, इसके उपरांत भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की ओर से पार्वती - कालीसिंध - चंबल (पीकेसी) का पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना से एकीकरण की स्वीकृति का राग अलापा जा रहा है I संविधानत: किसी भी राज्य में सिंचाई परियोजना तैयार करने का कार्य संबंधित राज्य का ही होता है। तब भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के मुखिया की ओर से भ्रम उत्पन्न करने के लिए स्वीकृति संबंधी वक्तव्य प्रसारित किया गया है। राष्ट्रीय वन्यजीव मंडल की 18 वीं बैठक दिनांक 12-4-2020 के निर्णय के अनुसार चंबल नदी के संबंध में कोई भी परियोजना स्वीकृत नहीं की जा सकती है। केंद्रीय मंत्री के रूप में इस प्रकार के तथ्यों को अनदेखा किया जाना आश्चर्यजनक है। इस एकीकरण के कारण पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना से प्राप्त होने वाली पानी की मात्रा 3510 मिलियन घन मीटर से घटकर 1775 मिलियन घन मीटर रह जायेगी। इस परियोजना की डी.पी.आर तैयार समय वर्ष 2017 में भारत सरकार के मनको के अनुसार पीने का पानी प्रतिदिन-प्रतिव्यक्ति-40 लीटर के अनुसार पानी की आवश्यकता 1723.5 मिलियन घनमीटर आंकी गई थी। अब नये मनको के अनुसार प्रतिदिन-प्रतिव्यक्ति 55 लीटर कर दी गई, इस 37.5 प्रतिशत बढोतरी होने से भारत सरकार के नए मानकों के अनुसार 13 जिलों में पीने के पानी के लिए 2369.81 मिलियन घन मीटर की आवश्यकता है।दूसरी ओर 2,02,482 हेक्टर नया सिंचित क्षेत्र विकसित होने की संभावना समाप्त जाएगी। वहीं 26 बांधों के लबालब नहीं होने से 80,878.44 हेक्टेयर में सिंचाई के पुनर्जीवित होने का सपना धूल धूसरित हो जाएगा। रोचक तथ्य है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री 40 हजार करोड़ के स्थान पर लागत 20-22 हजार करोड़ बता कर उसकी 90% राशि देने का बखान कर रहे हैं। जब पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना ही समाप्त हो जाएगी तो सूखा प्रभावित और वर्षा सिंचित कृषि भूमि को तो जल से वंचित होना पड़ेगा। यह तो खाने की टॉफी देकर सोने की चेन छीनने जैसा कार्य है। प्रधानमंत्री द्वारा पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के संबंध में वर्ष 2018 में सार्वजानिक सभाओ में की गई घोषणाओ को पूरी करने के लिए वर्ष 2019 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की कमान राजस्थान को संभलाई थी I इस मंत्रालय के मुखिया का पवित्र कर्तव्य था कि वे प्रधानमंत्री की घोषणाओ को पूरी करने के लिए समुचित प्रस्ताव बनाकर प्रधानमंत्री के समक्ष प्रभावी प्रस्तुतीकरण देते। इसके विपरीत मंत्रालय के मुखिया प्रधानमंत्री की घोषणाओ को पूरी नही कर उनकी इच्छा का सम्मान भी नहीं कर रहे हैं। बल्कि राजस्थान की जीवन रेखा इस परियोजना से राजस्थान वासियों को वंचित करने पर उतारू है।
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