जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
राजस्थान हाईकोर्ट से एकल पट्‌टा प्रकरण में आईएएस जी एस संधू समेत तीन अधिकारियों को राहत मिल गई है। अब इन अधिकारियों के खिलाफ केस नहीं चलेगा। इस मामले में हाईकोर्ट ने सरकार की ओर से केस वापस लेने की याचिका स्वीकार कर ली है।एसीबी कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है। जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने यह आदेश आईएएस जीएस संधू, निष्काम दिवाकर और ओंकारमल सैनी की याचिकाओं पर सुनाया। इन अधिकारियों की ओर से दलील पेश की गई थी कि एसीबी मान चुकी है कि मामले में विवादित भूमि सरकारी नहीं है और मूल पट्टेधारियों ने कोई शिकायत नहीं दी थी। इसके अलावा इस मामले में राज्य सरकार और जेडीए ने भी एसीबी में कोई शिकायत पेश नहीं की थी। ऐसे में यदि अधिकारियों को अनावश्यक अभियोजन का सामना करना पड़ेगा तो इससे अफसरों का मनोबल गिरेगा। यही वजह है कि राज्य सरकार ने एसीबी कोर्ट ने मुकदमा वापस लेने की अजी लगाई थी, लेकिन एसीबी कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। इसके साथ ही निजी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को यह भी बताया गया है कि हाईकोर्ट पूर्व में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के खिलाफ एसीबी कोर्ट में चल रही कार्रवाई को रद्द कर चुकी है। वहीं दूसरी ओर मामले के शिकायतकर्ता रामशरण सिंह ने भी कोर्ट के समक्ष कहा है कि वे मुकदमा नहीं चलाना चाहते हैं। उन्हें मामले में कोई आपत्ति भी नहीं है। इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ केस वापस लेने की इजाजत दे दी है। अब इन पर एकल पट्‌टा मामला वाला केस नहीं चलेगा।
क्या है मामला।
एसीबी ने साल 2014 में परिवादी रामशरण सिंह की ओर से गणपित कंस्ट्रक्शन कंपनी को एकल पट्‌टा जारी करने में धांधली की शिकायत पर मामला दर्ज किया था। इसमे कंपनी के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग, यूडीएच के पूर्व सचिव जीएस संधू, जेडीए जोन-10 के तत्कालीन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, निष्काम दिवाकर सहित गृह निर्माण सहकारी समिति के पदाधिकारियों अनिल अग्रवाल और विजय मेहता को आरोपी बनाया था। इस मामले में एसीबी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र पेश करते हुए यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, सचिव एनएल मीणा को क्लीनचिट देकर तत्कालीन जेडीसी ललित के पंवार व अतिरिक्त आयुक्त वीएम कपूर के पक्ष में एफआर लगा दी थी। सरकार ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लंबित मामले वापस लेने की अनुमति मांगी थी, लेकिन एसीबी कोर्ट ने इस प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।