भारत में कोई एक करोड़ से भी ज्यादा लोग पैरों की एक विचित्र बीमारी के कारण चैन से सो नहीं पाते हैं। उनका पूरा जीवन अर्ध निंद्रा, थकान और चिड़चिड़ाहट में बीत जाता है। यह एक विकट समस्या है जिसकी जानकारी भी कम कम है और जन चेतना भी नहीं है क्योंकि इस रोग से मृत्यु तो होती नहीं है। इस रोग को रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या विलिस एकबोन डिजीज कहा जाता है। हिंदी में इसे अशांत पैर विकार कहा जा सकता है। पीड़ित व्यक्ति को सोने के लिए बिस्तर पर जाने के बाद पैरों में कुछ रेंगता सा लगता है, झुनझुनाहट हो सकती है, खिंचाव या धड़कन, दर्द, खुजलाहट या फिर बिजली के करेंट जैसी झनझनाहट आदि होने लगती है। यह एक विकट स्थिति होती है जब आंखें नींद से बोझिल हो रही होती हैं पर व्यक्ति मजबूर हो कर पैरों को उठा पटक रहा होता है क्योंकि पैरों की गतिशीलता ही राहत देती है। पर ऐसी गतिशीलता कब तक बनाए रखी जा सकती है। लोग गीत सुनते है, यू ट्यूब देखते रहते है, पैरों को सहलाते रहते है, कोई पुस्तक पढ़ने की कोशिश करते हैं पर बेचैनी जाती नहीं और नींद टिक नहीं पाती। व्यक्ति को लगने लगता है कि वह बिस्तर पर नहीं बल्कि किसी प्रताड़ना गृह में है।
रात जैसे तैसे काटने के बाद दिन का सामना करना पड़ता है पर काम कैसे किया जाए? नींद
की कमी सारी शारीरिक क्रियाओं को बोझिल किए रखती है यहां तक कि कभी तो कार्य से आपातकालीन
अनुपस्थिति दर्ज करवानी पड़ती है जो कार्य उन्नति में बड़ी बाधक होती है। चूंकि ऐसे
रोग के बारे में व्यापक जानकारी नहीं है तो व्यक्तिगत पीड़ा बड़ी कारुणिक हो सकती है
खासकर जब कोई मस्तिष्क संबंधित कार्य या फिर मशीन से जुड़ा हुआ हो। मुझसे कुछ रोगियों
में आत्महत्या करने तक की सोच को साझा किया है। यह एक ऐसा रोग है जहां पर पारिवारिक,
सामाजिक और कार्य स्थल पर सहयोग अपेक्षित होता है पर लोगों में जागरूकता की कमी के
कारण सहयोग मिल नहीं पाता और पीड़ित व्यक्ति एक कष्टपूर्ण जीवन यात्रा बहुत मुश्किल
से पूरी कर पता है। नींद और आराम की कमी से सिरदर्द , बदन दर्द भी होने लगते हैं जिनकी
दवाओं के सेवन से जी मिचलाने लगता है। इस तरह से हम देखते हैं यह रोग पीड़ा का एक चक्रव्यूह
है।
इस रोग में आनुवांशिकता भी होती है क्योंकि 50 प्रतिशत से भी ज्यादा मामलों में परिवार
के कुछ अन्य लोगों में भी यह तकलीफ पाई जाती है। महिलाओं में यह पुरुषों की बजाय दुगनी
संख्या में पाया जाता है और हर संतानोत्पति के बाद बढ़ जाता है। परेशानी दिन के बजाय
रात में ज्यादा होती है। चूंकि यह एक जटिल जेनेटिक रोग है तो बीमारी का निदान पूर्णतया
चिकित्सक की कुशलता पर निर्भर करता है वरना हजारों रुपयों की जांच से भी पता नहीं चलता।
जब इस तरह के लक्षण हों तो विटामिन की कमी, गुर्दे के रोग, डायबिटीज, रक्तहीनता और
हृदय रोग का भी ध्यान रखना चाहिए।
रोग का उपचार अति कठिन है। विगत कुछ वर्षों में कुछ दवाएं आई हैं जो कुछ राहत दे सकती
हैं। योग से भी थोड़ी राहत मिल सकती है पर रोग निवारण के दावे खोखले एवम् भ्रामक हैं।
योग और पिलाट्ट्स कसरतों से मांसपेशियों की जकड़न कम हो जाती है। चूंकि देश में एक
करोड़ से भी ज्यादा लोग इस रोग से पीड़ित हैं तो कार्यस्थल और घर पर इनके साथ सौहार्दपूर्ण
व्यवहार होना चाहिए ताकि ये लोग अवसाद में न जाएं और अपनी बीमारी से बेहतर तरीके से
मुकाबला कर सकें।
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